नई दिल्ली. 1989 में अमेरिका में 34 वर्षीय ब्रोकली (बदला हुआ नाम) का लिवर सही से काम नहीं कर रहा था. क्योंकि ब्रोकली के लिवर के आंतरिक हिस्से में ब्लीडिंग शुरू हो गई थी. इसके बाद जब उन्होंने जांच करवाई तो पता चला कि उन्हें हेपेटाइटिस बी, एड्स सहित कई बीमारियां हुईं हैं. दुर्भाग्य कहें या फिर भगवान का लिखा, इसी दौरान उनका एक्सीडेंट भी हो गया. जिसकी वजह से स्पलीन (तिल्ली) में काफी घाव हुए और बाद में उनकी स्पलीन को भी निकालना पड़ा.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

जानें क्या है FIR दर्ज कराने का प्रोसेस? अगर न दर्ज हो तो यहां करें शिकायत


इस दौरान इलाज कर रहे डॉक्टरों ने उन्हें लिवर ट्रांसप्लांट करने की सलाह दी. लेकिन ब्रोकली को कई सारी बीमारियां थीं कि कोई डॉक्टर लिवर ट्रांसप्लांट के लिए तैयार नहीं हुआ. इसके बाद ब्रोकली जनवरी 1992 में पिट्सबर्ग आ गए. वहीं, पीलिया, लिवर में परेशानी, हेपेटाइटिस और एड्स की वजह से उनकी हालत दिन-ब-दिन गिरती जा रही थी.


लेकिन उनकी हालत को देखते हुए आखिरकार पिट्सबर्ग के डॉक्टर थॉमस स्टार्जल और डॉक्टर जॉन फंग लिवर ट्रांसप्लांट करने को राजी हो गए. ये दोनों डॉक्टर उस समय अमेरिका में ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए मशहूर थे. दोनों ने तय किया वे ब्रोकली को लंगूर का लीवर ट्रांसप्लांट करेंगे. 


1992 में माना जाता था कि लंगूर के लिवर पर HIV (AIDS) वायरस का कोई असर नहीं होता है. इसके बाद टेक्सास के साउथवेस्ट फाउंडेशन फॉर रिसर्च एंड एजुकेशन से 15 साल के एक लंगूर को लाया गया. इस लंगूर और थॉमस का ब्लड ग्रुप एक था. 


डॉक्टरों की टीम ने एक जटिल ऑपरेशन के बाद आज ही के दिन यानी 28 जून को लंगूर के लिवर को ब्रोकली के शरीर में ट्रांसप्लांट कर दिया. इसके 5 दिन बाद डॉक्टरों ने ब्रोकली को खिलाना और चलाना शुरू किया. दो से तीन सप्ताह में लिवर का आकार बढ़ गया और सही से काम भी करने लगा. 


AU Admission 2021: इन कोर्सों में प्रवेश को मंजूरी, जानें रजिस्ट्रेशन से जुड़ी डिटेल


एक महीने के इलाज के बाज जब ब्रोकली ठीक हो गए तो डॉक्टरों ने उन्हें छुट्टी दे दी. इस लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी को पूरा चिकित्सा जगत एक बड़ी उपलब्धि मान रहा था. हालांकि जानवरों से इंसानों में ये पहला ट्रांसप्लांट नहीं था. क्योंकि इससे पहले भी सूअर और लंगूर के अंगों को इंसानों में ट्रांसप्लांट किया गया था, लेकिन उनमें से ज्यादातर लोगों की मौत ट्रांसप्लांट के एक महीने के भीतर ही हो गई थी.


अस्पताल से छुट्टी मिलने के 20 दिन बाद ही ब्रोकली के पूरे शरीर में संक्रमण फैल गया. जिसकी वजह से गुर्दे ने काम करना बंद कर दिया. उन्हें वापस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया और डायलिसिस शुरू किया गया. थॉमस के शरीर में धीरे-धीरे संक्रमण बढ़ता गया और ट्रांसप्लांट के 70 दिनों बाद थॉमस की ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई.


WATCH LIVE TV