कोरोना के कारण 1 करोड़ से ज्यादा बच्चे छोड़ देंगे पढ़ाई, इस रिपोर्ट ने किया दावा
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कोरोना के कारण 1 करोड़ से ज्यादा बच्चे छोड़ देंगे पढ़ाई, इस रिपोर्ट ने किया दावा

कोरोना वायरस महामारी की वजह से बंद हुए स्कूलों का दुनिया भर के करीब 1 करोड़ बच्चों पर असर पड़ सकता है.

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली: कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी की वजह से बंद हुए स्कूलों का दुनिया भर के करीब 1 करोड़ बच्चों पर असर पड़ सकता है. एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि लॉकडाउन के कारण करीब 1 करोड़ बच्चे हमेशा के लिए स्कूल छोड़ सकते हैं. ‘सेव द चिल्ड्रन’ नाम की ब्रिटिश संस्था ने ‘अभूतपूर्व शिक्षा आपातकाल’ की चेतावनी दी है.

कोरोना वायरस महामारी ने दुनिया को ठहरा सा दिया है. ज्यादातर व्यापार अभी भी बंद है और शिक्षा संस्थान सुरक्षा उपायों के साथ फिर से खुलने को लेकर मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. ‘सेव द चिल्ड्रन’ नाम की ब्रिटिश संस्था ने ‘अभूतपूर्व शिक्षा आपातकाल’ की चेतावनी दी है, जिससे 97 लाख से अधिक बच्चों की शिक्षा खतरे में पड़ जाएगी जो कभी भी स्कूल नहीं लौट सकेंगे. 1 करोड़ 60 लाख बच्चों के पास शिक्षा की नहीं पहुंच रही है.

यूनेस्को के डाटा का हवाला देते हुए संस्था की रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे अप्रैल 2020 में 1 करोड़ 60 लाख बच्चों को कोरोना वायरस महामारी की वजह से स्कूल और विश्वविद्यालय छोड़ने पड़े. ये एक बड़ा आंकड़ा था क्योंकि जो दुनिया भर के स्टूडेंट्स की 90 प्रतिशत आबादी का उल्लेख करता है.

‘सेव अवर एजुकेशन’ नाम की नई रिपोर्ट यह दावा करती है कि मानव इतिहास में पहली बार दुनिया भर के बच्चों की एक पूरी पीढ़ी की शिक्षा बाधित है. इसके साथ ही वायरस के बाद होने वाले सुधारों के दौरान 90 लाख से 1 करोड़ 17 लाख बच्चे गरीबी की भेंट चढ़ जाएंगे, जिसकी वजह से स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या में और भी कमी आएगी. 

वित्तीय और सामाजिक तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट ने दावा किया कि 97 लाख बच्चे हमेशा के लिए स्कूल छोड़ देंगे. उन्होंने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि ज्यादा बच्चे अब अनौपचारिक बेरोजगारी में धकेल दिए जाएंगे और कई स्थितियों में लड़कियों को शादी करने के लिए मजबूर किया जा सकता है.

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2021 के अंत तक निचले और मध्यम आय वाले देशों में संकट को और गहराते हुए कोरोना वायरस महामारी शिक्षा क्षेत्र में 5 लाख करोड़ से रुपये से ज्यादा के नुकसान और कम बजट का कारण बन सकती है.

संस्था के चीफ एग्जीक्यूटिव इंगर एशिंह ने कहा, ‘करीब 10 मिलियन बच्चे कभी स्कूल नहीं लौट सकेंगे, ये अभूतपूर्व शिक्षा आपातकाल है और सरकारों को तत्काल ही शिक्षा में निवेश करना चाहिए.’

लड़कों और लड़कियों के बीच असमानता के बढ़ने की भी उम्मीद है. इसके साथ ही हमें ज्यादा बजट में कटौती का खतरा है, जो मौजूदा असमानता को अमीर और गरीब व लड़कों और लड़कियों के बीच विस्फोट के रूप में दिखेगा. 

रिपोर्ट में संस्था ने शिक्षा के क्षेत्र में और ज्यादा पैसे लगाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया. जिससे बच्चों को स्कूल में आना, विशेषकर विकासशील देशों के स्कूलों में वापस आना सुनिश्चित किया जा सके.

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एशिंह ने कहा, ‘हम जानते हैं कि सबसे गरीब बच्चे जो पहले से ही पिछड़े थे, उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. करीब आधे शैक्षिक वर्ष तक के लिए दूरस्थ शिक्षा या किसी भी तरह की शिक्षा उनकी पहुंच में नहीं है.’

संस्था ने गरीब देशों के लिए ऋण अदायगी को रद्द करने का भी सुझाव दिया जिससे दुनिया भर के शिक्षा कार्यक्रमों में लगने वाले 1 लाख करोड़ से ज्यादा रुपये ‘फ्री’ हो जाएंगे. एशिंह ने आगे कहा, ‘अगर हम इस शिक्षा संकट को हल कर लेते हैं तो बच्चों का भविष्य सुधर सकता है. दुनिया ने सभी बच्चों को साल 2030 तक अच्छी शिक्षा पहुंचाने के लिए जो वादा किया है वो सुनिश्चित हो जाएगा.’

रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान, चार्ड, नाइजर, माली, लाइबेरिया, मॉरिटानिया, यमन, नाइजीरिया, पाकिस्तान, गिनी, आइवरी कोस्ट और सेनेगल के बच्चे सबसे अधिक जोखिम में हैं.

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