काका के ठीहा: कबीर...! गुरु पूरा ज्ञान के बाद तू आखिरी पर अटका देला
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काका के ठीहा: कबीर...! गुरु पूरा ज्ञान के बाद तू आखिरी पर अटका देला

 मगहर त जानते होगे न बे? नाहीं जानत हउवा? का कइला यार जीवन में? अरे यार मगहरे में न अपने अंतिम समय कबीर चल गयल रहलन

संत कबीर

गुरु कबीर क 620वां पाकट्य उत्सव 28 अगस्त के मनल. रज्जा! ऐ बार देश के प्रधानमंत्री पहुंच गइलन उनकरे निर्वाण स्थली मगहर. मगहर त जानते होगे न बे? नाहीं जानत हउवा? का कइला यार जीवन में? अरे यार मगहरे में न अपने अंतिम समय कबीर चल गयल रहलन. अब ई बतावा मगहर क किस्सा जानेला कि नाहीं? वहू नाहीं? सुना यार...! जइसे कहल जाला कि काशी में मरे वाला सीधे स्वर्ग सिधारे ला, वइसही कहल जाला कि मगहर में मरे से नर्क मिले ला. अबे! अगला जनम में आदमी गदहा बन जाला... कबीर रहलन सच्चा बनारसी. चल गइलन मगहर अउर कहलन कि ऐतना दिन अपने मन-मंदिर में राम के बसइली, सच्चा जीवन जीले हई, खाली मगहर में मरले से नरक जाब... ई सब भ्रांति (अफवाह) ह. अंतिम सांस लेलन वहीं. गुरुवा ओकर लोगन में ऐतना असर रहल कि हिंदू- मसुलमान लड़ गइलन कि कबीर हमार हउवन-हमार हउवन. लेकिन असर देखा सब मान गइलन और एक तरफ समाधि बनल त दूसरे तरफ मजार. जबर आदमी रहल गुरुवा.

गुरु एक बात बतावा. कबीर के डिटेल में जानेला कि नाहीं? 
भक्त कवि रहलन. निर्गुण भक्ति धारा वाला. 'साखी' रचना जानेला? अरे वही आंखों देखी...! मतलब जवन एकदम जांचल-परखल हो. गुढ़ बात करत रहलन. ज्ञान अउर भक्ति सब रहल उनकरे दोहे में. जइसे... 

'या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत. गुरु चरनन चित लाइये, जो पुराण सुख हेत.' मतलब, ई संसार क झमेला दूई दिना क ह रज्जा! ऐसे मोह संबंध मत जोड़ा. सद्गुरु के चरण में समर्पित हो जा गुरु और पूरा मन वहीं लगाव... फिर देखअ मजा! बात मानअ, पूरा सुख भोगब गुरु पूरा..

गुरुवा काशी में रहलन. परंपरा से पुराना शहर, दुनिया के सबसे पुरान शरह अउर इहां क सुख का ह? एक तरफ ढोल-नगाड़ा-शंख-घड़ियाल बजत ह त दूसरे तरफ आवत ह अजान क आवाज. सब अपन-अपन भक्ति में. कबीर सबके मस्ती में. भोर में बाबा के मंगला आरती हो या गंगा पर पड़त सूरज के सूर्ख अक्स. शाम के मौज हो या चकल्लस. मदनपुरा-बजरडीहा हो पक्का महाल-अस्सी. दीपावली अउर होली भी वइसही मनत ह जइसे ईद-बकरीद. ई सब जवन ह कबीर इहे सब में रमत रहलन अउर चाहत रहलन. जइस कबीर कहत रहलन...
 
'देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह. निश्चय कर उपकार ही, जीवन का फन येह.' .. अर्थ भी सुन ला.. मरे के बाद के कही तोहसे कुछ देवे के बारे में यार? यही बदे जेतना समय मिलल ह ओम्मे परोपकार करा... जिंदगी क फल यही में ह रज्जा.
 
पूरा दुनिया कहेला कि पढ़ ला... कहे ला कि नाहीं. पढ़ाई जरूरी ह भी... लेकिन यार आज के जमाने में पढ़ाई केतना महंगा ह... लाख-डेढ़ लाख त नर्सरी में लग जात ह. कबीर ईहां भी उलटबांसी कह गयल हउवन. उनके पढ़े-लिखे क मौका नाहीं मिलल. लेकिन गुरुवा रहल चतुर. ज्ञानियन के बीच ही बइठत रहलन. लिखलन भी...

'मसि कागद छूवो नहीं, कलम नहीं हाथ...! मतलब कागज छूली नाहीं और हाथ में कलम नाहीं आयल... लेकिन, गुरु ऊ साधु-संतों के संगत में शास्त्र अउर धर्म के बारे में जान गइलन. रम गइलन भक्ति काव्य में. 

हम लोग ऐ समय का करीला. फेसबुक-व्हाट्सऐप ई सब से दूसरे के दुन्या में झाकीला. के का करत ह, कइसे करत ह. यही में परेशान रहीला. लेकिन कबीर गुरु समझदार रहलन. कहत रहलन कि अपने भीतर झांको. उसी में सत्य मिलेगा. देखा आज के जमाने में हम लोग टेक्नॉलजी से खालिये नाहीं होत हई त का ताकत अपने अंदर. कहां से मिली सत्य. बस अइसही कहत रहल जाई कि जमाना खराब हो गयल ह. यार हम लोग त ढंग से कोई से बतिया नाहीं पावल जाला. अउर कबीर कहत रहलन...
 
'ऐसी बनी बोलिये, मन का आपा खोय. औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय.' मतलब समझला कि नाहीं. अरे! मन में जवन भी अहंकार अरे वही ईगो, वही मिटा द. कोई से अइसे मीठा बात करा, जइसे दूसरा केतनो दुख में हो खुश रहे... आजमा के देखा तोहू सुखी रहबा.

आज क समस्या का ह..! धर्म, जाति... यही में लोग परेशान हउवन. कबीर ई सब तोड़ देले रहलन. सबकरे बदे ऊ रहलन. उनकरे बदे सब कोई रहल. उनकरे एक थे विचार रहल न यार, जेकरे वजह से अमर हो गइलन. केतना आसान बात बोलत रहलन...

'जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय. जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय.'
देखा यार, कबीर सामान्य गृहस्वामी क भी जीवन जी लेलन और अउस सूफी क भी. लेकिन सब संतूलित रहल. कहीं डउल-लफ्फाजी नहीं. कबीर पूरा जीवन साधना कइलन. कोई चीज कोई कह दे त ओके मान नाहीं लेत रहलन. ओके जाने क कोशिश करत रहलन. अउर एक व्यवहारिक प्रक्रिया में जानत रहलन. सत्य क खोज करत रहलन अउर झूठ-आडंबर सबकर खंडन. का कहत रहलन कि...

'धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर. अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर. मतलब, धर्म करा अउर धर्म में का, परोपरकार, दान, सेवा करा. ऐसे तोहार धन न घटी. देखा नदी हमेशा बहती है. पानी घटेला...?

बस पूरा ज्ञान के बीच सामने वाला टोक देलस... आधा घंटा से ज्ञान देत हउवा. पूरा बौद्धिक समझा देला. गंगा नाही घटत हईं का. देखा चारो तरफ रेता ह कि नाहीं. पानी देखा, आचमन करबा? दिल्ली में रहेला. पीयबा यमुना क पानी. घटल ह की नाहीं पानी... 

इधर से फिर डपेटली. यार ऐतना में एक्के चीज पर आकर रुकला ऊ हौ नदी का जल... बाकी जीवन का सार नाहीं समझ में आयल... चला तोहके महीना दूई महीना में कबीरचौरा मठ में छोड़ आवत हई.

 लेखक- राघवेंद्र मिश्रा

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