अपूर्वा असरानी ने कहा, 'अगर लोगों को फिल्म की कहानी पसंद नहीं है तो उसे न देखें.
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मुंबई: ‘पद्मावती’ को लेकर चल रहे विवाद पर लेखक अपूर्वा असरानी ने अपने विचार व्यक्त किए है. उन्होने कहा कि एक कलाकार को ऐतिहासिक या पौराणिक शख्सियतों का अपने अंदाज में विवेचन करने का अधिकार है और अगर किसी को इसपर एतराज हो तो उसे न देखे. इससे पहले असरानी ने ‘एस दुर्गा’ को समर्थन किया था, जिसे भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2017 से बाहर कर दिया गया था.
उन्होंने कहा कि उन्हें यह बेहद हास्यास्पद लगता है जब प्रदर्शन कर रहे लोगों को शांत करने के लिये कोई फिल्म निर्माता यह कहता है कि ‘पहले आप फिल्म देखिये उसके बाद फैसला कीजियेगा.’ असरानी ने अपनी पोस्ट में कहा, ‘मुझे ‘क्या आपने प्रतिबंध/सिर कलम करने का आह्वान करने से पहले पद्मावती का एक भी दृश्य देखा है’ जैसे स्पष्टीकरण दिए जाने की जरूरत बेहद हास्यास्पद और खुद को हराने जैसी लगती है.’ उन्होंने लिखा कि फिल्म की कहानी क्या है यह मायने नहीं रखता, एक कलाकार के ऐतिहासिक या पौराणिक शख्सियतों के विवेचन को अस्तित्व में रहने को पूर्ण अधिकार है....धमकी या हिंसा को नहीं (अस्तित्व में रहने का अधिकार नहीं है). अगर लोगों को सामग्री पसंद नहीं है तो उसे न देखें.
‘अलीगढ़’ के पटकथा लेखक ने कहा, ‘अगर उनकी आस्था केवल एक फिल्म से ही डगमगा जाए तो उन्हें यह जांचने की जरूरत है कि उनकी आस्था थी भी या नहीं.’ असरानी ने पोस्ट का अंत करते हुए लिखा, ‘आईए, असली लड़ाई लड़ें.’ पिछले दिनों, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के मलयालम फिल्म ‘एस दुर्गा’ और मराठी फिल्म ‘न्यूड’ को आईएफएफआई की ‘इंडिया पैनोरमा सेक्शन’ से बाहर किए जाने के कदम का विरोध करने के बाद असरानी खबरों में आए थे.
This reasoning ‘Have you even seen 1 shot of #Padmavati before calling for a beheading?’ is in itself ridiculous & self defeating. No matter what, an artists interpretation of historical/mythological figures has every right to exist. Threats & violence dont! Fight the real fight!
— Apurva Asrani (@Apurvasrani) November 21, 2017
असरानी ज्यूरी का हिस्सा थे और बाद में ज्यूरी अध्यक्ष सुजॉय घोष और ज्ञान कोरिए के साथ उन्होंने इस्तीफा दे दिया था.