'ब्योमकेश बख्शी' को खुद को जासूस कहलाना नहीं था पसंद, अब तक बन चुकी हैं इतनी फिल्में- जानिए अनसुने तथ्य
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'ब्योमकेश बख्शी' को खुद को जासूस कहलाना नहीं था पसंद, अब तक बन चुकी हैं इतनी फिल्में- जानिए अनसुने तथ्य

इसकी रचना आर्थर कोनन डायल द्वारा रचित महान साहित्यिक जासूस शरलोक होम्स से प्रेरणा लेकर हुई है. 

'ब्योमकेश बख्शी' को खुद को जासूस कहलाना नहीं था पसंद, अब तक बन चुकी हैं इतनी फिल्में- जानिए अनसुने तथ्य

नई दिल्ली: एक्टर रजत कपूर का लोकप्रिय सीरियल 'ब्योमकेश बक्शी (Byomkesh Bakshi)' भी महाभारत, रामायण के साथ दूरदर्शन पर शुरू हो चुका था. 90 के दशक में इस डिटेक्टिव शो ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं. यूं कहें कि टीवी जगत में जासूसी की परिकल्पना इस धारावाहिक ने लिखी थी तो गलत न होगा. यह क्राइम डिटेक्‍शन सीरीज शरदिंदु बंदोपाध्याय के नॉवेल पर बेस्‍ड है. ब्योमकेश बक्शी शरदेन्दु बन्द्योपाध्याय द्वारा रचित बांग्ला जासूसी कहानियां का संग्रह है. इसकी रचना आर्थर कोनन डायल द्वारा रचित महान साहित्यिक जासूस शरलोक होम्स से प्रेरणा लेकर हुई है. शरदिंदु जी ने 1942 से 1970 के मध्य ब्योमकेश बक्शी की 32 कहानियां लिखी किन्तु असमय मृत्यु होने के कारण 33वीं कहानी अपूर्ण रही.

सत्य की खोज करने वाला ब्योमकेश
ब्योमकेश बक्शी की पहली कहानी "सत्यान्वेशी" ( सत्य की खोज करने वाला ) है तथा 32वीं कहानी "लोहार बिस्किट"( लोहे का बिस्किट) है. ब्योमकेश की मुलाकात 10वीं कहानी मे शरदिंदु द्वारा रचित " बरोडा - द घोस्ट हन्टर " से होता है. ब्योमकेश के पहली कहानी मे खलनायक के रूप में डॉ अनुकूल बाबू सामने आते हैं. इसी कहानी में ब्योमकेश की मुलाकात अजित बनर्जी से होती है जो अन्य कहानी मे ब्योमकेश के परम मित्र के रूप में सामने आता है. डॉ अनुकूल बाबू 8वीं कहानी मे खलनायक के रूप में फिर वापसी करते हैं.

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अजीत और ब्योमकेश

ऐसा है इस जासूस का परिवार
यूं तो जासूसी की दुनिया में ब्योमकेश बक्शी के साथ उनका असिस्टेंट अजीत हमेशा नजर आता है. आइये आपको मिलाएं इनकी पत्नी और बच्चे से भी. इस प्रसिद्ध जासूस की पत्नी का नाम सत्यावती था. इन दोनों के एक बेटा भी था, जिसका नाम इन्होंने खोका रखा था. सत्यावती और खोका दोनों ब्योमकेश के साथ उनकी हर एक कहानी में नजर आए हैं और आगे भी नजर आते रहेंगे.

ब्योमकेश को पसंद नहीं था जासूस कहलाना
रचना के अनुसार ब्योमकेश जासूसी जरूर करते थे, लेकिन उन्हें खुद को जासूस कहलाना बिल्कुल भी पसंद नहीं था. ऐसे में इन्होंने अपने पेशे को नाम दिया 'सत्यनवेशी' का. 'सत्यनवेशी' का हिंदी में अर्थ होता है 'सच को खोजने वाला'. ऐसे में जो लोग ब्योमकेश के ज्यादा करीबी होते थे वो उन्हें इसी नाम से बुलाते थे 'सत्यनवेशी ब्योमकेश बक्शी'.

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'चिड़ियाखाना' का एक दृश्य 

नौ फिल्में बनी है ब्योमकेश पर
इस जासूस को हमारे रंगमंच ने काफी भुनाया है. फिर चाहे वो बात हिंदी रंगमंच या सिनेमा की हो या फिर बंगाली फिल्मों की. 1967 से अब तक इनको कई फिल्मी रूपों में दर्शक देख चुके हैं.
जासूस ब्योमकेश बक्शी का सबसे पहला रूप सामने आया था फिल्म 'चिड़ियाखाना' में. निर्देशक सत्यजीत राय और प्रोड्यूसर हरेंद्रनाथ भट्टाचार्ज्या ने मिलकर इनके रूप को सबसे पहले रंगमंच पर उतारा. 'चिड़ियाखाना' के बाद ब्योमकेश बक्शी का अगला रूप सामने आया फिल्म 'शजरूर कांता' में. 1974 के बाद अगला ब्योमकेश बक्शी नजर आया निर्देशक स्वपन घोषाल के क्रिएशन में मैगनो मायनक नाम से.

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ब्योमकेश बख्शी के किरदार में सुशांत सिंह राजपूत

2010 में ब्योमकेश के नाम से इस किरदार की ये पहली फिल्मी और इस सीरीज की चौथी फिल्म थी, फिल्म के निर्देशक थे अंजन दत्त और नाम था ब्योमकेश बक्शी. फिल्म 'अबर ब्योमकेश' में भी एक बार फिर एक्टर अबीर चटर्जी ने ब्योमकेश बक्शी के किरदार को जीवंत किया. 2014 में ब्योमकेश फिर ऐलो आई. 2013 में सत्यनवेशी फिल्म भी आई तो 2015 में सुशांत सिंह अभिनीत ब्योमकेश बक्शी.

 

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