कहते हैं एक सच्चे कलाकार को आप उसकी मृत्यु के समय भी उसकी कला से दूर नहीं कर सकते. एक कलाकार की कला उसकी आत्मा बन जाती है.
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आजकल हर सुबह की शुरुआत मृत्यु की खबरों से ही हो रही है . बुधवार को अभिनेता इरफान ख़ान की मृत्यु का समाचार आया था और गुरुवार को ऋषि कपूर की मृत्यु की खबर आ गई . ऋषि कपूर 67 वर्ष के थे और वो भी इरफान ख़ान की तरह ही कैंसर से पीड़ित थे . ऋषि कपूर का जाना दुखदायी जरूर है...लेकिन उनका जीवन और उनकी मृत्यु एक सच्चे कलाकार के संपूर्ण सफर की कहानी है. ऋषि कपूर एक सच्चे एंटरटेनर थे, यानी वो जीवन भर लोगों का मनोरंजन करते रहे और उन्होंने अपनी इस कला का साथ आखिरी दम तक नहीं छोड़ा.
ऋषि कपूर के परिवार ने उनके निधन के बाद एक संदेश जारी किया . इस संदेश में लिखा है कि अस्पताल के स्टाफ के मुताबिक ऋषि कपूर आखिरी समय तक उन्हें हंसाते रहे और उनका मनोरंजन करते रहे . कहते हैं एक सच्चे कलाकार को आप उसकी मृत्यु के समय भी उसकी कला से दूर नहीं कर सकते . एक कलाकार की कला उसकी आत्मा बन जाती है . जीवन समाप्त होने के बाद भी कोई कलाकार अपनी कला के दम पर ही अमर बन जाता है .
ऋषि कपूर बहुत जिंदादिल इंसान थे. इसी से जुड़ी एक और कहानी हम आपको बताते हैं. ये कहानी देश के पूर्व वित्त मंत्री और दिवंगत अरुण जेटली से जुड़ी है. ऋषि कपूर और अरुण जेटली दोनों ही कैंसर से पीड़ित थे. पिछले वर्ष ऋषि कपूर न्यूयॉर्क के जिस हॉस्पिटल में अपना इलाज करवा रहे थे, वहां पर अरुण जेटली का भी इलाज चल रहा था. अरुण जेटली के बेटे रोहन जेटली ने बताया कि न्यूयॉर्क में इलाज के दौरान अरुण जेटली को ऋषि कपूर खूब हंसाते थे. अरुण जेटली का पिछले वर्ष अगस्त में निधन हो गया था. आज ऋषि कपूर भी दुनिया से चले गए.
'बॉबी' की दीवानगी
ये ऋषि कपूर के प्रति लोगों की दीवानगी ही थी कि 1977 में आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी मशहूर फिल्म बॉबी का प्रसारण दूरदर्शन पर सिर्फ इसलिए किया था, ताकि लोगों को इंदिरा गांधी के विरोधी जय प्रकाश नारायण की रैली में जाने से रोका जा सके . फिल्म बॉबी (1973) में रिलीज हुई थी . रैली के लिए जो समय निर्धारित किया गया था ठीक उसी समय दूरदर्शन पर बॉबी का प्रसारण हुआ था .
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ऋषि कपूर जब फिल्मों में आए..तब हिंदी सिनेमा में एंग्री यंग मैन की आंधी चल रही थी..लेकिन ऋषि कपूर ने उस दौर में भी अपनी पहचान एक रोमांटिक हीरो की बनाई, वो चार्मिंग थे, यानी वो लोगों को लुभाना जानते थे . जिस दौर में अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता, क्रोध, बदले और संघर्ष की कहानियां पेश कर रहे थे,,ऋषि अपने स्टाइल में लोगों को रोमांस का पाठ पढ़ा रहे थे.
ऋषि कपूर ने अपना ये चार्म बरसों तक कायम रखा और जब उन्होंने रोमांटिक हीरो वाले किरदार करने बंद कर दिए तब उन्होंने खुद को नए दौर के सिनेमा के लिए तैयार किया . ऋषि कपूर चुनौतियों से घबराते नहीं थे..इसलिए कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी आखिरी दम तक उनका हौसला नहीं तोड़ पाई. ऋषि कपूर के जीवन का सार भी है..क्योंकि उन्होंने भी मेहनत से कभी मुंह नहीं मोड़ा और काम के प्रति उनकी ईमानदारी में कभी कोई कमी नहीं आई .
1977 में एक फिल्म आई थी- इस फिल्म का नाम था अमर अकबर एंथनी . इस फिल्म में अमर का किरदार विनोद खन्ना ने, अकबर का किरदार ऋषि कपूर ने और एंथनी का किरदार अमिताभ बच्चन ने निभाया था . हिंदी सिनेमा की इस मशहूर तिकड़ी का जिक्र करते हुए 2018 में आई अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर की एक फिल्म याद आ रही है . इस फिल्म का नाम था 102 Not Out . इसमें अमिताभ बच्चन ने ऋषि कपूर के पिता का किरदार निभाया था.
अंतिम विदाई
ऋषि कपूर को अंतिम विदाई देने वालों में उनके परिवार के कुछ सदस्य और कुछ करीबी मित्र ही शामिल थे, क्योंकि लॉकडाउन के नियमों की वजह से ज़्यादा लोग इकट्ठा नहीं हो सकते थे. ऋषि कपूर एक बहुत बड़े स्टार थे, उनके करोड़ों चाहने वाले थे..लेकिन कुछ गिने-चुने लोगों को छोड़कर कोई उनकी अंतिम यात्रा का हिस्सा नहीं बन पाया . उनके करोड़ों फैंस ने उन्हें सोशल मीडिया पर ही श्रद्धांजलि दी . हैरानी की बात ये है कि ऋषि कपूर को लोगों से घुलना मिलना बहुत पसंद था . वो अक्सर दोस्तों और परिवार वालों के साथ समय बिताते थे, पार्टी करते थे . लेकिन जिस ऋषि कपूर को सोशल होना इतना ज्यादा पसंद था..उनकी अंतिम यात्रा में सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से ज्यादा लोग शामिल नहीं हो पाए . जीवन की ये बड़ी विडंबना और विरोधाभास है, कि यही ऋषि कपूर तीन वर्ष पहले इस बात पर नाराज़ हो गए थे, जब अभिनेता विनोद खन्ना के निधन पर कुछ बड़े फिल्म स्टार्स नहीं पहुंचे थे.
उन्होंने ट्वीट कर था कि विनोद खन्ना के अंतिम संस्कार में आज की पीढ़ी का कोई भी फिल्म स्टार नहीं आया, ये शर्मनाक बात है. ऋषि कपूर ने ये भी लिखा था कि आजकल के तथाकथित स्टार्स पर उन्हें बहुत गुस्सा आ रहा है. ये सब देखकर उन्होंने खुद के लिए भी कहा था कि जब उनकी मौत होगी तो उन्हें भी तैयार रहना चाहिए, कि कोई उन्हें कंधा देने वाला नहीं होगा. ऋषि कपूर ने इन ये भी बताया था कि एक दिन पहले फिल्म इंडस्ट्री के कई बड़े चेहरे...एक बड़े Star की पार्टी में दिखे थे, लेकिन अगले दिन विनोद खन्ना के निधन पर इनमें से कुछ लोग ही पहुंचे थे. ऋषि कपूर ने तब कहा था कि एक अभिनेता किसलिए काम करता है, क्या उसे अंतिम विदाई और सम्मान भी नहीं दिया जा सकता.
विनोद खन्ना के लिए उन्होंने कहा था कि जिस व्यक्ति ने चार दशक फिल्मों में काम किया, 150 से ज़्यादा फिल्में की, उसे अंतिम विदाई देने के लिए भी लोग नहीं पहुंचते तो इससे ज़्यादा दुख की बात क्या होगी. ये अजीब संयोग हैं कि तीन वर्ष पहले विनोद खन्ना का निधन भी अप्रैल के महीने में ही और गुरुवार के ही दिन हुआ था. ऋषि कपूर का निधन भी अप्रैल के महीने में और गुरुवार के दिन हुआ है.
विनोद खन्ना और ऋषि कपूर दोनों को ही कैंसर था और दोनों की ही मौत मुंबई के एक ही अस्पताल में हुई. दोनों की मौत जिस उम्र में हुई, उसमें भी ज़्यादा अंतर नहीं है. विनोद खन्ना का निधन 70 वर्ष की आयु में हुआ था, तो ऋषि कपूर का निधन 67 वर्ष की आयु में हुआ. विनोद खन्ना, ऋषि कपूर और अमिताभ बच्चन की जोड़ी अमर, अकबर, एंथनी के नाम से जानी जाती है. इसमें अमर यानी विनोद खन्ना और अकबर यानी ऋषि कपूर अब इस दुनिया में नहीं रहे.
ये कोरोना काल की त्रासदी है कि जिस व्यक्ति के करोड़ों फैंस हैं, उस व्यक्ति को अंतिम विदाई देने के लिए फैंस तो क्या उसके सब परिवारवाले भी नहीं पहुंच पा रहे हैं. ऋषि कपूर के अंतिम संस्कार में उनकी बेटी रिद्धिमा चाह कर भी शामिल नहीं हो सकीं. क्योंकि वो दिल्ली में थीं, और लॉकडाउन के बीच दिल्ली से मुंबई जाना बहुत मुश्किल था. ऋषि कपूर को अंतिम विदाई देने के लिए सिर्फ 20 लोग ही थे. इसी तरह बुधवार को इरफान खान के अंतिम संस्कार में सिर्फ 12 लोग ही थे. खुद इरफान खान अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके थे, जिनका देहांत इरफान के निधन से चार दिन पहले ही हुआ था. ये भी इत्तेफाक है कि ऋषि कपूर भी अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाए थे. अक्टूबर 2018 में उनकी मां की मृत्यु हुई थी, तब वो न्यूयॉर्क में कैंसर का अपना इलाज करवा रहे थे.
कपूर खानदान
ऋषि कपूर का परिवार करीब 100 वर्षों से फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा है. इनमें कभी कोई राजनीति में नहीं आया. ऋषि कपूर का भी राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था, लेकिन वो बोलने से हिचकते नहीं थे. यही उनकी सबसे खास बात थी कि वो बेबाक बोलते थे. उन्हें किसी का डर नहीं था. उन्हें राजनीति से कोई लगाव नहीं था, ना ही किसी पद की लालसा थी. उन्हें ना तो राज्यसभा की सीट चाहिए थी, ना उन्हें सरकारी बंगला चाहिए था, वो सिर्फ अपने मन की बात करते थे. कई बार जब देश में असहनशीलता की बात हुई, अवॉर्ड वापसी गैंग सामने आया, तो ऋषि कपूर ने इसका विरोध किया था. वो सीधी बात कहते थे और सच्चे मायने में देशभक्त थे.
2019 में जब ऋषि कपूर न्यूयॉर्क में कैंसर का इलाज करवा रहे थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम चुनाव जीतकर दूसरी इनिंग की शुरुआत कर रही थी, तब न्यूयॉर्क से ऋषि कपूर ने प्रधानमंत्री और उनकी टीम से अनुरोध किया था कि वो अगले पांच साल मुफ्त शिक्षा, मेडिकल सुविधा और पेंशन जैसे मुद्दों पर काम करें. ऋषि कपूर ने ये भी कहा था कि ये काम कठिन तो है, लेकिन अभी से शुरूआत करेंगे तो एक दिन ज़रूर हम इसे पूरा कर पाएंगे. ऋषि कपूर देश के मुद्दों पर हमेशा अपनी राय रखते थे और देशहित में किए गए फैसलों को पूरा समर्थन भी देते थे.
कोरोना के चलते हाल में जब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ्यू का ऐलान किया था तो ऋषि कपूर ने इसका समर्थन किया था . जनता कर्फ्यू के दिन कोरोना फाइटर्स के लिए ऋषि कपूर पूरे जोश के साथ थाली बजा रहे थे. जब मेडिकल और पुलिस की टीमों पर हमले और पथराव की ख़बरें आ रही थीं. तो उस पर भी ऋषि कपूर बहुत चिंतित थे. ऋषि कपूर का आखिरी ट्वीट इसी मुद्दे पर था. दो अप्रैल को उन्होंने ट्वीट किया था और लोगों से अपील की थी कि डॉक्टर, नर्स, मेडिकल स्टाफ, और पुलिसकर्मियों पर पथराव और हिंसा ना हो. क्योंकि आपको बचाने के लिए ये लोग अपने जीवन को खतरे में डालते हैं . उन्होंने लिखा था कि हमें इस कोरोना युद्ध को एक साथ जीतना होगा.
अब सोचिए एक व्यक्ति जो कैंसर जैसी बीमारी से लड़ रहा था, उसने अपने अंतिम वक्त में भी देश के बारे में सोचना नहीं छोड़ा. ये दुर्भाग्य की बात है कि जब कोरोना से युद्ध में भारत को जीत मिलती, उससे पहले जीवन के युद्ध में ऋषि कपूर मौत से हार गए.
ऋषि कपूर के जीवन से सीख
ऋषि कपूर के जीवन से आप सीख सकते हैं कि आपको सच से कभी मुंह नहीं मोड़ना चाहिए और जो बाद आपके दिल में है वही आपकी जुबान पर होनी चाहिए . वो किसी मुद्दे पर खुलकर बोलने से कभी हिचकते नहीं थे. वो इतने सकारात्मक थे कि 2018 में कैंसर का पता चलने के बाद भी, और इलाज के दौरान भी, उन्होंने कभी ऐसा ज़ाहिर नहीं होने दिया कि वो जीवन की कितनी बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं . वो खुद भी हंसते थे और दूसरों को भी हंसाते थे. ऋषि कपूर की सकारात्मकता से सीख लेनी चाहिए.
ऋषि कपूर की दूसरी खास बात ये थी कि वो जीवन की सच्चाई को समझने वाले लोगों में थे. वो अपनी शर्तों पर जीवन जीते थे. जब उन्हें पता चल गया कि एक्टर के तौर पर उनका ज़माना चला गया, तो उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली. वो दूसरे कलाकारों की तरह डिप्रेशन या नकारात्मकता से नहीं घिरे. लेकिन बाद में एक वक्त आया, जब उन्होंने खुद को बदला और अपनी दूसरी पारी में एक स्टार से फिर एक्टर बनाने का सफर शुरू किया . और अभी भी उनकी सफल पारी चल रही थी.
ऋषि कपूर की तीसरी खास बात ये थी कि वो रिश्तों में ईमानदार थे. वो सीधी और साफ बात करते थे और गलतियों को स्वीकार करने में संकोच नहीं करते थे. शादी के बाद उनकी पत्नी नीतू सिंह ने फिल्मों से संन्यास ले लिया था, जबकि वो उस वक्त की टॉप एक्ट्रेस में से एक थीं. ऋषि कपूर ने माना कि वो पुरुषवादी सोच से ग्रसित थे, जिस सोच से वो बहुत वर्षों बाद आज़ादी पा सके. ऋषि ये बात भी खुले तौर पर कहते थे कि सख्त पिता होने की वजह से बेटे रणबीर के साथ उनके रिश्ते दोस्त जैसे कभी नहीं रहे.
ऋषि कपूर के व्यक्तित्व की एक और ख़ासियत थी कि वो मौलिक थे. ना तो उन्होंने अपने पिता राजकपूर की शैली को खुद पर हावी होने दिया और ना ही अपने दौर के सबसे बड़े स्टार अमिताभ बच्चन को उन्होंने कॉपी किया. वो अमिताभ बच्चन नहीं थे....ना वो अमिताभ बच्चन बनना चाहते थे . वो ऋषि कपूर थे और ऋषि कपूर की रहना चाहते थे .
अमिताभ बच्चन से जुड़ा एक किस्सा भी ऋषि कपूर ने एक बार शेयर किया था, जब उन्हें बॉबी फिल्म के लिए बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला. उसी साल अमिताभ की फिल्म ज़ंजीर भी आई थी. ऋषि कपूर के मुताबिक अमिताभ बच्चन बेस्ट एक्टर के अवॉर्ड की आस लगाए बैठे थे, लेकिन जब उन्हें अवॉर्ड नहीं मिला तो वो मायूस हो गए. क्योंकि ऋषि कपूर ने वो अवॉर्ड 30 हज़ार रुपये में ख़रीद लिया था. अब आप सोचिए..कौन ऐसा स्टार होगा जो ये बता भी दे कि उसने अवॉर्ड खरीदा था..लेकिन ऋषि कपूर ऐसे ही थे..
ऋषि कपूर ने सबसे ऊपर देशप्रेम को रखा . वो हमेशा देश के हित की बात करते थे और इसके लिए सिस्टम को भी बदलना चाहते थे . इसका जिक्र उन्होंने मुझे दिए इंटरव्यू में भी किया था . ऋषि कपूर ने खुलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन किया..उन्हें एक मज़बूत प्रधानमंत्री और वैश्विक नेता माना. ऋषि कपूर को इस बात की परवाह नहीं थी कि लोग क्या कहेंगे..अक्सर फिल्म स्टार्स अपनी राजनीतिक पसंद को ज़ाहिर नहीं होने देते...लेकिन ऋषि कपूर ऐसे नहीं थे. अपनी पसंद-नापसंद को ज़ाहिर करने में ऋषि कपूर कभी पीछे नहीं हटे..और ना ही कभी भारत मां की जय कहने में उन्हें कोई शर्म आई.