नई दिल्‍ली: पिछला साल हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री के लिए ज्‍यादा अच्‍छा नहीं रहा और कई बड़े-बड़े स्‍टार और करोड़ों के बजट भी दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींच कर नहीं ला पाये. उसकी सबसे बड़ी वजह कही जा सकती है कमजोर कहानियां. लेकिन इस साल बॉक्‍स ऑफिस पर दूसरे ही हफ्ते में रिलीज हुई निर्देशक अनुराग कश्‍यप की फिल्‍म 'मुक्‍काबाज' इस शिकायत को दूर करती नजर आ रही है. एक फ्रेश कहानी और दमदार एक्टिंग ने 'मुक्‍काबाज' को एक शानदार फिल्‍म बना दिया है. मजेदार डायलॉग और खाटी अंदाज में पूरी तरह रची-बसी इस मुक्‍केबाज की लव स्‍टोरी में आपको कहानी, मनोरंजन और अभिनय सब देखने को मिलेगा. इस फिल्‍म में एक निर्देशक के तौर पर अनुराग कश्‍यप फिर से सफल रहे हैं.


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डायरेक्‍टर: अनुराग कश्‍यप
कास्‍ट: विनीत कुमार सिंह, जोया हुसैन, रवि किशन, जिमी शेरगिल
रेटिंग: 3 स्‍टार


कहानी
श्रवण कुमार (विनीत कुमार सिंह) एक बॉक्‍सर है और बरेली के बाहुबली और डिस्‍ट्रिक बॉक्‍सिंग फेडरेशन के कोच भगवान दास मिश्रा (जिमी शेरगिल) के यहां बाकी कई बॉक्‍सरों की तरह बॉक्‍सिंग की ट्रेनिंग ले रहे हैं. लेकिन भगवान दास इन बॉक्‍सरों को कोई ट्रेनिंग नहीं देता और उनसे अपने घर के काम कराता है. फिल्‍म के पहले ही सीन में श्रवण कुमार अपने बॉक्सिंग के जुनून के चलते भगवान दास से भिड़ जाता है और उसे एक जोरदार पंच जड़ देता है. कहानी का सबसे बड़ा ट्विस्‍ट है कि जाति से राजपूत श्रवण को भगवान दास की भतीजी सुनैना (जुहा हुसैन) से पहली नजर में ही प्‍यार हो जाता है. सुनैना, बोल नहीं सकती है. अब यही है इस बॉक्‍सर श्रवण का संघर्ष, जो अपनी मुक्‍केबाजी के जुनून के लिए अपने पति तक से भिड़ जाता है उसे अपना प्‍यार पाने के लिए अपनी इसी बॉक्सिंग से दूर करने की कोशिश की जाती है. अब इस फिल्‍म में बॉक्‍सर जीत होगी या प्रेमी की, इसे देखने के लिए आपको सिनेमाघर जाना पड़ेगा. अनुराग कश्‍यप की भाषा में कहें तो 'मुक्‍काबाज' उनकी पहली लव स्‍टोरी है और यह सही भी है. लेकिन इस लव स्‍टोरी में खेल संगठनों में होने वाली पॉलिटिक्‍स, छोटे शहरों में जाति व्‍यवस्‍था और ऊंच-नीच झेलते लोग, महिलाओं का शोषण जैसे कई विषयों को छूने की कोशिश की गई है.



एक्टिंग का मजेदार पंच
अनुराग कश्‍यप की ही फिल्‍म 'गैंग्‍स ऑफ वासेपुर' में दानिश के किरदार से दर्शकों में पहचान बना चुके विनीत कुमार इस फिल्‍म के मुख्‍य किरदार में छा गए हैं. पागल प्रेमी से लेकर जुनूनी बॉक्‍सर तक के शेड्स उन्‍होंने जबरदस्‍त अंदाज में दिखाये हैं. इस फिल्‍म से अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत कर रहीं एक्‍ट्रेस जोया हुसैन भी अपने किरदार में सशक्‍त नजर आई हैं. वह फिल्‍म में मूक किरदार में हैं इसलिए वह बोलती नजर नहीं आई हैं, लेकिन उनके पास कहने को फिल्‍म में बहुत कुछ है. एक मूक लड़की के किरदार में जोया कहीं भी एक्‍स्‍ट्रा करती नहीं लगी हैं. फिल्‍म के मुख्‍य विलेन जिमी शेरगिल की बात करें तो वह अपनी पिछली ही कई फिल्‍मों की तरह एक बार फिर दमदार किरदार में दिखें हैं. इस फिल्‍म के एक्‍ट्रा डोज बनकर रविकिशन नजर आए हैं. लेकिन मुझे लगता है कि रवि किशन का और भी दमदार इस्‍तेमाल किया जा सकता था.


दर्द का डोज हो गया थोड़ा ज्‍यादा
'मुक्‍काबाज' का फर्स्‍ट हाफ काफी तेजी से बढ़ता है. श्रवण को प्‍यार होता है, पहले ही सीन में भगवान दास से उसकी भिड़ंत भी हो जाती है और श्रवण-सुनैना का प्‍यार भी. लेकिन इंटरवैल के बाद के हिस्‍से में कुछ हिस्‍सों में कहानी थोड़ी खिंची हुई लगती है. कुछ चीजें जैसे पुलिस को पूरी तरह नाकारा होना, श्रवण के कोच द्वारा उसकी हर समस्‍या के इलाज के तौर पर नेशनल खेलने की बात करना, मुझे थोड़ी ज्‍यादा लगीं.



फिल्‍म के म्‍यूजिक की बात करें तो वह फिल्‍म में पूरा साथ देता नजर आया है. कोई भी गाना कहानी से हटकर या जबरदस्‍ती कहानी में ठूंसा हुआ नहीं लगाता. मुझे लगता है कि अनुराग कश्‍यप के निर्देशन में 'मुक्‍काबाज' ने विनीत कुमार के रूप में बॉलीवुड को एक और जबरदस्‍त एक्‍टर दिया है, जो एक्‍टिंग भी करता है और जिसकी फिटनेस भी जबरदस्‍त है. मेरी तरफ से इस फिल्‍म को मिलते हैं 3 स्‍टार.


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