B'Day Special: अब्बा के डर से छुप-छुप कर हारमोनियम बजाते थे नुसरत फतेह अली खान
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B'Day Special: अब्बा के डर से छुप-छुप कर हारमोनियम बजाते थे नुसरत फतेह अली खान

विश्व विख्यात कव्वाली गायक नुसरत फतेह अली खान का आज जन्मदिन है.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: संगीत किसी मुल्‍क का मोहताज नहीं होता. खासकर हिंदुस्तान और पाकिस्तान के शायर, गायक, कलाकार दोनों देशों की साझी मिल्कियत हैं. उनमें से एक बड़ा नाम है विश्व विख्यात कव्वाली गायक नुसरत फतेह अली खान का. आज उनका जन्मदिन है. इस दिन उनको याद करते हुए एक पुराना किस्सा याद आ रहा है कि कैसे उनके अब्बा हुजूर फतेह अली खान साहब चार बेटियों के बाद जन्मे अपने बेटे को डॉक्टर बनाना चाहते थे. वे मानते थे कि उनका लाडला बेटा स्वभाव से इतना शर्मीला, शरीर से इतना भारी और नरम मिजाज का है कि वह उनका कव्वाली के पेशे का भार अपने सिर पर नहीं उठा सकता.

इस तरह से बदला नाम
नुसरत साहब का नाम पहले परवेज रखा गया था. छोटे ही थे, पाकिस्तान में उनके घर में रोज महान गायकों, कव्वालों और सूफी संतों का आना-जाना लगा रहता था. एक दिन एक सूफी उनके अब्बा से मिलने आए. बेटे को देख कर उसका नाम पूछा. अब्बा ने जब बताया कि परवेज, तो सूफी ने कहा, इसका नाम फौरन बदलो. इसका नाम कुछ यूं रखो कि घर में रोशनी आए. उनके ही कहने पर अब्बा ने परवेज का नाम बदल कर नुसरत रखा, इसका मतलब है कामयाबी की राह.

छुप कर हारमोनियम बजाते थे नुसरत
नुसरत के घर में अब्बा से कव्वाली सीखने देश-विदेश के शिष्य आते थे. लेकिन नुसरत को संगीत सीखना और क्लास में बैठने तक की मनाही थी. वो बस सबसे छिप कर अपने कमरे में बैठे अब्बा का कव्वाली सुनते. अपने चाचा से हारमोनियम और तबला बजाना सीख लिया. एक बार अब्बा ने उन्हें हारमोनियम बजाते देख लिया. नुसरत को लगा कि वे उसे मना करेंगे, डांटेंगे. पर अब्बा ने कहा कि वो पढ़ाई से जब भी समय मिले, बजा सकते हैं. पर उनके नंबर कम नहीं आने चाहिए.

अब्बा को कैसे मनाया
एक दिन बड़े गुलाम अली खान के बेटे मुन्नवर अली खान जो हिंदुस्तान में बस गए थे, फतेह साहब से मिलने उनके घर आए. वे परेशान थे कि पाकिस्तान में शो करने के लिए उन्हें एक अच्छा तबलची नहीं मिल रहा. बाबा ने कहा, उनका बेटा उनको संगत दे सकता है. किशोर नुसरत को देख मुन्नवर चौंक गए. पर जब नुसरत ने तबला बजाना शुरू किया तो वे उसके हुनर का लोहा मान गए. लेकिन इसके बाद भी अब्बा को मनाने के लिए नुसरत साहब को काफी पापड़ बेलने पड़े. उनका मन पढ़ाई में नहीं, मौसिकी में लगता था. आखिरकार परिवार में सबके कहने पर फतेह अली साहब ने बेटे को कव्वाल बनने की इजाजत दे दी.

नुसरत साहब को अल्ला से नहीं अपने अब्बा हुजूर के चांटों से बेहद डर लगता था. एक गलत तान पर उनका हाथ सटाक से नुसरत के गाल पर पड़ता था.

अब्बा हुजूर का इंतकाल
नुसरत की बहनों का मानना है कि उनके अब्बा हुजूर का जिस दिन इंतकाल हो रहा था, सब बैठ कर कलीमा पढ़ रहे थे. उस समय अब्बा की आंखें नुसरत पर जमी हुई थीं, गोया वे अपनी सारा हुनर आंखों के जरिए अपने बेटे को ट्रांसफर कर रहे हों. उस दिन के बाद से नुसरत फतेह अली खान ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. आज भी उनके गाए गाने- 'तेरे बिन नहीं लगता दिल मेरा ढोलना', 'आफरीन', 'छाप तिलक', 'अल्‍ला हू' सोशल मीडिया पर खूब लोकप्रिय हैं.

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