‘इंदु सरकार’ को सेंसर बोर्ड से मिली मंजूरी पर रोक के लिए हाईकोर्ट में याचिका
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‘इंदु सरकार’ को सेंसर बोर्ड से मिली मंजूरी पर रोक के लिए हाईकोर्ट में याचिका

दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर 1975-1977 के आपातकाल पर आधारित बॉलीवुड फिल्म ‘इंदु सरकार’ को सेंसर बोर्ड से मिली मंजूरी पर रोक लगाने का आग्रह किया गया.याचिकाकर्ता वकील ने कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ के समक्ष इस मामले को पेश किया जिन्होंने इस पर सुनवाई के लिए कल की तारीख तय की.

बॉलीवुड फिल्म ‘इंदु सरकार’ 28 जुलाई को रिलीज होनी है (फाइल फोटो)

नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर 1975-1977 के आपातकाल पर आधारित बॉलीवुड फिल्म ‘इंदु सरकार’ को सेंसर बोर्ड से मिली मंजूरी पर रोक लगाने का आग्रह किया गया.याचिकाकर्ता वकील ने कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ के समक्ष इस मामले को पेश किया जिन्होंने इस पर सुनवाई के लिए कल की तारीख तय की.

याचिका में दावा किया गया है कि मधुर भंडारकर के निर्देशन वाली इस फिल्म में दिवंगत इंदिरा गांधी और उनके दिवंगत बेटे संजय की छवि को खराब दिखाया गया है और यह एक ‘‘प्रोपेगैंडा फिल्म’’ है. यह फिल्म 28 जुलाई को रिलीज होनी है.

याचिकाकर्ता उज्जवल आनंद शर्मा ने पीठ के समक्ष दलील दी कि फिल्म निर्माताओं ने फिल्म बनाने से पहले गांधी परिवार से अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं लिया जो ‘‘सच्ची घटनाओं’’ तथा लोगों पर आधारित फिल्म बनाने के लिए फिल्म प्रमाणन कानून के तहत अनिवार्य होता है.

याचिका में दावा किया गया है कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने इस आधार पर एनओसी पर जोर नहीं दिया कि फिल्म में इंदिरा गांधी या संजय गांधी के नामों का जिक्र नहीं है.बहरहाल, सेंसर बोर्ड ने 12 दृश्यों पर कैंची चलाने का निर्देश देने के बाद फिल्म को यू/ए सर्टिफिकेट दे दिया.

याचिका में कहा गया है, ‘‘सामान्य बुद्धि के एक विवेकशील व्यक्ति को इस निष्कर्ष पर पहुंचने में देर नहीं लगेगी कि फिल्म में चित्रित किरदार वाकई काल्पनिक नहीं हैं.’’ इसमें कहा गया है, ‘‘यहां तक कि पोस्टर और तस्वीरें इस तरह दिखाए गए हैं कि बिना किसी शक के फिल्म निर्माताओं की यह मंशा साफ दिख रही है कि फिल्म में दिखाए गए किरदार कोई और नहीं बल्कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी हैं.’’

याचिकाकर्ता ने मांग की कि पूरी फिल्म को देखने के लिए एक समिति गठित की जाए तथा आपत्तिजनक या अपमानजनक पाए जाने वाले दृश्यों पर अदालत में एक रिपोर्ट सौंपी जाए तथा यह भी बताया जाए कि क्या फिल्म निर्माताओं को ‘‘गांधी परिवार के संबंधित व्यक्तियों’’ से एनओसी लेने की जरुरत थी.

 

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