फिल्म का संगीत ठीक है और फिल्म की रिदम के साथ चलता है. इस फिल्म की एक कमी है इसके मैच के सीन.
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नई दिल्ली: इन दिनों बॉक्स ऑफिस पर बायोपिक्स का ही बोलबाला है और इसी क्रम में एक और बायोपिक फिल्म 'सूरमा' आज रिलीज हो गई है. भारत में स्पोर्ट्स वैसे भी काफी पसंद किया जाता है और अगर खेल पर कोई फिल्म बनाई जाए तो फिर दर्शकों के लिए जैसे सोने पर सुहाना हो जाता है. 'सूरमा' की कहानी हॉकी के खिलाड़ी संदीप सिंह की है, जिनकी जिंदगी का संघर्ष काबिले तारीफ है. इस फिल्म में एक्टर दिलजीत दोसांझ और तापसी पन्नू की जोड़ी साथ नजर आई है. इसके साथ ही इस फिल्म से ही बॉलीवुड एक्ट्रेस चित्रांगदा सिंह भी पहली बार प्रोड्यूसर बन रही हैं.
कहानी
'सूरमा' की कहानी शुरू होती है एक महिला हॉकी प्लेयर हरप्रीत कौर (तापसी पन्नू) की आवाज से, जो हरियाणा के शाहाबाद के संदीप सिंह की कहानी की शुरुआत करती हैं. अपने कोच की सख्ती की वजह से 9 साल की उम्र में ही संदीप का मन हॉकी से उचट जाता है और वह खेलना छोड़ देता है. लेकिन बड़े होने पर उसे एक लड़की से प्यार होता है और इसी लड़की के प्यार के लिए वह फिर से हॉकी स्टिक उठाता है. इस खेल में वह इतनी मेहनत करता है कि इंडिया के लिए भी खेलता है. लेकिन इस बीच एक हादसे के चलते संदीप को गोली लगती है और वह व्हीलचेयर पर आ जाते हैं. लेकिन व्हीलचेयर पर आने के बाद भी संदीप अपना हौसला नहीं खोता और एक बार फिर देश के लिए खेलने की उम्मीद अब भी उसके मन में हैं.
यानी इस कहानी में प्यार के लिए एक खेल सीखने से लेकर उस खेल के जिंदगी बनने तक सबकुछ है. इस कहानी में संदीप सिंह के बड़े भाई का काफी अहम किरदार है, जो अपने भाई की इस प्रतिभा को पहचानता है और उसकी हर संभव मदद करता है. बड़े भाई का किरदार अंगद बेदी ने निभाया है. निर्देशक शाद अली की इस कहानी में काफी कुछ है और उसे काफी अच्छे से दिखाने की कोशिश भी की गई है. कहानी की रफ्तार ठीक है, हालांकि फर्स्ट हाफ में इसे थोड़ा तेज किया जा सकता था. फिल्म मे दिलजीत दोसांझ दिल जीतते हैं. उन्हें पर्दे पर देखकर मजा आता है. वहीं उनके कोच के किरदार में एक्टर विजय राज ने अच्छा किरदार निभाया है. फिल्म के डायलॉग्स काफी अच्छे हैं जो आपको पसंद आएंगे.
फिल्म का संगीत ठीक है और फिल्म की रिदम के साथ चलता है. इस फिल्म की एक कमी है इसके मैच के सीन. अक्सर ऐसी फिल्मों यह सीन सबसे ज्यादा एक्साइटमेंट पैदा करते हैं, लेकिन उस मामले में फिल्म थोड़ी कमजोर बन पड़ी है. फिल्म के क्लाइमैक्स में भी वह रोमांच महसूस नहीं होता जो होना चाहिए.