भारत में तैयार होती है हॉलीवुड स्टार्स की 'बॉडी', मुस्लिम कारीगरों की मेहनत से एक्टर बनते हैं 'बाहुबली'
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भारत में तैयार होती है हॉलीवुड स्टार्स की 'बॉडी', मुस्लिम कारीगरों की मेहनत से एक्टर बनते हैं 'बाहुबली'

हॉलीवुड की फिल्मों में रुड़की के बनाए हुए पोशाकों का सबसे अधिक प्रदर्शन होता है और इसको विदेशी करेंसी में बेचा जाता है.

हॉलीवुड की फिल्म '300' में भी उन्होंने डिमांड के आधार तलवारे और ढाल बनाए थे.
हॉलीवुड की फिल्म '300' में भी उन्होंने डिमांड के आधार तलवारे और ढाल बनाए थे.

नई दिल्ली/देवबंद (सैयद उवैस अली): वैसे तो रुड़की नगर को शिक्षानगरी के नाम से जाना जाता है, लेकिन रुड़की शहर विभिन्न कार्यों से भी अपनी पहचान देशभर में कायम करता है. मायानगरी मुंबई से लेकर विदेशों में बनने वाली बॉलीवुड और हॉलीवुड की वॉरियर फिल्मों में प्रयोग होने वाले कवच और पोशाक को रुड़की में तैयार किया जा रहा है, जो मुस्लिम कारीगर रुड़की में डिमांड के आधार पर ढाल, तलवार, भाला और मुखौटे आदि को तैयार करते हैं. बता दें,  देश विदेशों में बनने वाली फिल्मों में रुड़की कारीगर अपने हुनर के माध्यम से वॉरियर फिल्मों का सामना तैयार कर रहे हैं. 

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साथ ही अब हॉलीवुड की फिल्मों में रुड़की के बनाए हुए पोशाकों का सबसे अधिक प्रदर्शन होता है और इसको विदेशी करेंसी में बेचा जाता है. अगर अब बात की जाए रुड़की में कवच बनाने वाले मुस्लिम कारीगरों की, तो उनका सिर्फ यही कहना है कि अगर हमारे इस कार्य में सरकार द्वारा हमें मदद मिलने लगे तो हम अपने देश में साथ-साथ बड़े पैमाने पर भी अपने देश का भी नाम रोशन कर सकते हैं. संचालक शहनवाज रसूल का कहना है कि अबतक हॉलीवुड की कई फिल्मों में उनके बनाए हुए ढाल, कवच, तलवारे प्रयोग हो चुकी है. 

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हॉलीवुड की फिल्म 300 में भी उन्होंने डिमांड के आधार तलवारे और ढाल बनाए थे. इसके अलावा कई बॉलीवुड की वॉरियर फिल्मों में इसका इस्तेमाल किया जा चुका है. समय के साथ इनकी डिमांड भी बढ़ने लगी हैं, लेकिन सरकार की ओर से इस हुनर पर किसी तरह का कोई योगदान ना दिए जाने पर कारीगर अब इस काम में रुचि नहीं दिखा रहे हैं. नई पीढ़ी इस हुनर की ओर अपना रुख नहीं कर रही है, जिसके चलते कारीगरों की संख्या में भी कमी आ रही है. रुड़की में बनाए जाने वाले वॉरियर फिल्मों के ढाल, कवच, तलवार और हेल्मेट की अब धीरे डिमांड बढ़ने लगी है.

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इसके पीछे की वजह यह है कि विदेशों मे सबसे अधिक इसका प्रयोग किया जाता यदि सरकारें इस कार्य पर अपना योगदान दे तो. रोजगार के साधन खुलेंगे, युवाओं में इस हुनर के प्रति जागरुकता बढ़ेगी, और इस हुनर से देश विदेश में नाम होगा. उन्होंने कहा उत्तराखंड में भी अब फिल्म बनना शुरू हो गई है. फिल्मों में ये समान कारगर साबित होते हैं. बात अगर रुड़की की की जाए तो रुड़की के अंदर महीनों पहले फिल्म इंडस्ट्रीज ऑर्डर आने शुरू हो जाते हैं और कवच ढाल आदि सामग्री बनाने में मुस्लिम कारीगर एक साथ जुट जाते हैं. 

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वहीं कारीगर अखलाक अहमद ने बताया कि जो जब भारत के अंदर ईस्ट इंडिया कंपनी आई थी तो ईस्ट इंडिया कंपनी के पास जितने भी हथियार बगैरा थे जैसे तलवार हो भाला हो या अन्य किसी भी प्रकार की सामग्री जो ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा तैयार हुई थी. वह सब के सब रुड़की से ही बनकर तैयार करके दी गई थी और पुरानी ऐतिहासिक फिल्मों के अंदर जितने भी इंस्टॉलमेंट रखे जाते हैं. वह सब के सब रुड़की से तैयार होकर जाते हैं, जिसको मुस्लिम तबके कारीगर बड़े पैमाने पर बनाते हैं और रुड़की का नाम रोशन करते हैं. ये कहा जा सकता है कि इसलिए रुड़की को शिक्षा नगरी के साथ-साथ इंस्टॉलमेंट की नगरी भी कहा जाता है. 

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