इस वजह से अधूरी रह गई Amrita Pritam और साहिर लुधियानवी की प्रेम कहानी
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इस वजह से अधूरी रह गई Amrita Pritam और साहिर लुधियानवी की प्रेम कहानी

प्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम अगर होतीं तो 31 अगस्त को अपना 101 वां जन्मदिन मना रही होतीं.

इस वजह से अधूरी रह गई Amrita Pritam और साहिर लुधियानवी की प्रेम कहानी

नई दिल्ली: प्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम (Amrita Pritam) अगर होतीं, तो 31 अगस्त को अपना 101वां जन्मदिन मना रही होतीं. साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण से सम्मानित अमृता प्रीतम ने अपनी जिंदगी की कहानी आत्मकथा रसीदी टिकट में खोल कर रख दी थी. आज की पीढ़ी उन्हें एक साहित्यकार के साथ-साथ मशहूर शायर और गीतकार साहिर लुधियानवी की प्रेमिका के तौर पर भी जानती है. उनके इश्क पर बने नाटक 'तुम्हारी अमृता' पर अब संजय लीला भंसाली एक फिल्म बनाने जा रहे हैं. फिल्म में साहिर की भूमिका अभिषेक बच्चन और अमृता का रोल तापसी पन्नू करने जा रही हैं. इससे पहले अमृता प्रीतम के उपन्यास पर फिल्म 'पिंजर' बन चुकी है.

  1. अमृता जब 16 साल की थीं, उनकी शादी हो गई
  2. शादी के बाद वे अमृता कौर से अमृता प्रीतम बन गईं
  3. बचपन से वे कविताएं और नज्म लिखती थीं
  4.  

इनके इश्क में ऐसा क्या था?
अमृता जब 16 साल की थीं, उनकी शादी हो गई. शादी के बाद वे अमृता कौर से अमृता प्रीतम बन गईं. उस समय वे पाकिस्तान में रहती थीं. बचपन से वे कविताएं और नज्म लिखती थीं. रेडियो में सुनाती थीं. बंटवारे के वक्त वे परिवार के साथ हिंदुस्तान आ गईं. कुछ दिनों तक रेडियो में काम किया. वे महफिलों में अपनी कविता और नज्म पढ़ती थीं. उस समय के लिए यह बड़ी बात थी और अमृता ने इस वजह से बदनामी भी मोल ली.

अपने पति से शुरू से उनकी नहीं जमी. वे शादीशुदा ही थीं, जब उनकी मुलाकात एक मुशायरे में साहिर लुधियानवी से हुई. अमृता बेहद खूबसूरत थीं, साहिर बेहद साधारण दिखते थे, लेकिन अमृता उनकी नज्मों की प्रशंसक थी. साहिर को अमृता से पहली नजर का इश्क हो गया. अमृता को वे अच्छे लगे. वापस लौटने के बाद दोनों एक-दूसरे को खत लिखने लगे. जब अमृता अपने पति से अलग हुईं, तो सबसे पहले साहिर साहब को ही इसकी सूचना दी.

अपनी अम्मी से डरते थे साहिर
साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हई (Abdul Hayee) था. उनका बचपन मुश्किलों में बीता. अपनी अम्मी को उन्होंने अब्बा के हाथों पिटते देखा. उनकी अम्मी का हुक्म सिर माथे रखते. साहिर फिल्मों में लिखने लगे, नाम कमाया, पैसे कमाए, लेकिन जिंदगीभर इश्क के मामले में फिसड्डी ही रहे. उन्हें हमेशा लगता रहा कि उनकी अम्मी अमृता को कभी बहू के बतौर नहीं स्वीकार करेंगी. अम्मी का मानना था कि एक हिंदू लड़की, वो भी तलाक शुदा और कवियत्री को कभी अच्छी बहू नहीं बन सकती. साहिर खुद दूसरों से कहते कि वे अमृता को बहुत चाहते हैं, पर उनसे कभी न कह पाए.

वो अंतिम खत
अमृता उनके इश्क में पूरी तरह डूबी हुई थीं, लेकिन साहिर साहब से जब उन्हें कोई जवाब न मिला, तो उन्होंने अपनी अंतिम चिट्ठी में कुछ यूं लिखा: मैंने टूट के प्यार किया तुमसे, क्या तुमने भी उतना किया मुझसे? इस पत्र का साहिर ने जवाब नहीं दिया, पर जब उन दोनों की आखिरी मुलाकात एक मुशायरे में हुई, तो साहिर ने वहां ये चंद लाइनें पढ़ी थीं: तुम चली जाओगी परछाइयां रह जाएगी, कुछ न कुछ इश्क की रानाइयां रह जाएंगी...

अमृता कभी भूल ना पाईं
अमृता साहिर के इश्क से कभी अपने को अलग न कर पाईं. साहिर के मुंबई के दोस्त कहते थे, साहिर कभी अपने लिए निर्णय नहीं ले पाए, हालांकि अपनी अम्मी से एक बार उन्होंने कहा था, एक अमृता थी, वही तुम्हारी बहू बन सकती थी… साहिर के बाद अमृता की जिंदगी में उनसे उम्र में काफी छोटे पेंटर और उन्हें टूट कर चाहने वाले इमरोज आ गए. अमृता अपने अंतिम सालों में उन्हीं के साथ रहीं.

साहिर साहब को जब इस बात का पता चला, तो उन्होंने एक शेर लिखा था:
मुझे अपनी तन्हाइयों का कोई गम नहीं
तुमने किसी से मोहब्बत निभाह तो दी

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