ईरान के रेगिस्तान में जमीन से 100 फीट नीचे बहती हैं पानी की नहरें, पढ़िए क्या है रहस्य
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ईरान के रेगिस्तान में जमीन से 100 फीट नीचे बहती हैं पानी की नहरें, पढ़िए क्या है रहस्य

इस दुनिया में ऐसी कई जगहें हैं जिससे हम आज तक अनजान हैं. लेकिन आए दिन हमें उनके बारे में पता चल रहा है. जैसे ईरान के रेगिस्तान को ही ले लीजिए. यहां ऐसी कई जगह हैं, जहां जमीन से 100 फीट नीचे पानी की नहरें बहती हैं. आपको यह सुनने में थोड़ा अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन यह बात बिलकुल सत्य है. 

ईरान के रेगिस्तान में जमीन से 100 फीट नीचे मौजूद ये नहरें 3,000 वर्ष पुरानी हैं (फोटो- यूट्यूब)

नई दिल्ली: इस दुनिया में ऐसी कई जगहें हैं जिससे हम आज तक अनजान हैं. लेकिन आए दिन हमें उनके बारे में पता चल रहा है. जैसे ईरान के रेगिस्तान को ही ले लीजिए. यहां ऐसी कई जगह हैं, जहां जमीन से 100 फीट नीचे पानी की नहरें बहती हैं. आपको यह सुनने में थोड़ा अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन यह बात बिलकुल सत्य है. 

इस पानी का स्रोत कहां पर है

बात दें, जिस जगह जमीन से 100 फीट नीचे पानी की नहरें बहती हैं, उसे वहां स्थानीय स्तर पर कनात (चैनल) कहा जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पुरातत्व विभाग के अफसर भी इन नहरों को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं. कई वर्षों तक तो यह भी पता नहीं चला कि इस पानी का स्रोत कहां पर है, लेकिन गहराई से अध्ययन करने के बाद पता चला कि दूर पहाड़ों की रिवर वैली से ये नहरें निकली हैं, जो जमीन के अंदर स्वच्छ पानी का बड़ा स्रोत बन गई हैं. सैकड़ों गांव इस पानी पर निर्भर हैं. 

3,000 वर्ष पुरानी हैं नहरें

पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार रेगिस्तान में जमीन से 100 फीट नीचे मौजूद ये नहरें 3,000 वर्ष पुरानी हैं. संभवत: इन्हें लौह युग में बनाया गया होगा, लेकिन आज इन्हें इंजीनियरिंग का चमत्कार माना जाता है. जलस्रोत से लंबी नहरे खोदना, उनमें ढाल इस तरह रखना कि पानी बहता भी रहे, लेकिन इतनी तेजी से भी न बहे कि नहरों को नुकसान पहुंचाए, यह सब प्राचीन इंजीनियरिंग का कमाल ही है.

पर्सियन कनात को विश्व धरोहर घोषित किया था 

वर्ष 2016 में यूनेस्को ने पर्सियन कनात को विश्व धरोहर घोषित किया था. यूनेस्को ने माना है कि ईरान की प्राचीन सभ्यता में पानी की आपूर्ति का यह श्रेष्ठ उदाहरण है. ​मुस्लिम आक्रमणकारियों और सिल्क रूट के व्यापारियों के साथ कनात की तकनीक अन्य देशों में पहुंची. इसीलिए मोरक्को और स्पेन तक में इनकी मौजूदगी मिलती है. इन कनात की देखरेख करने वालों को मिराब कहा जाता है. 102 साल के गुलामरेजा नबीपुर कुछ आखिरी मिराबों में हैं. उन्हें ईरान सरकार ने नेशनल लिविंग ट्रेजर का दर्जा दे रखा है. 

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