Movie Review: बड़ा एक्सपेंरीमेंट झेलने का दम हो तभी देखें ‘लूप लपेटा’
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Movie Review: बड़ा एक्सपेंरीमेंट झेलने का दम हो तभी देखें ‘लूप लपेटा’

तापसी पन्नू की फिल्म 'लूप लपेटा' (Loop Lapeta) 4 फरवरी को रिलीज हो गई. इस फिल्म में एक तरह का एक्सपेरिमेंट किया गया है. इस फिल्म की कहानी क्या है आइए जानते हैं.

फाइल फोटो

कास्ट: तापसी पन्नू, ताहिर भसीन, दिब्येन्दु भट्टाचार्य, श्रेया धन्वंतरि. राजन्द्र चावला, के सी शंकर
निर्देशक: आकाश भाटिया
स्टार रेटिंग:
कहां देख सकते हैं: नेटफ्लिक्स पर 

  1. लूप लपेटा की साधारण सी कहानी
  2. फिल्म में हैं भागमभाग
  3. तीन पायदानों पर टिकी है फिल्म

नई दिल्ली: एक्सपेंरीमेंटल फिल्मों के साथ दिक्कत ये बड़ी है कि एक तरह का जुआ है, सो भारत में जो खतरा राजामौली ने उठा लिया, वैसे विरले मिलते हैं. सो इस बार रिस्क उस मूवी पर लिया गया, जो जर्मनी में पहले ही बनाई जा चुकी थी, ‘रन लोला रन’. ऑफीशियल रीमेक हैं सो कहानी की तो कोई दिक्कत नहीं थी, फिर भी डायरेक्टर को चार चार लेखक रखने पड़े कि उस स्टोरी को कायदे से भारतीय माहौल में ढाल पाए, इसलिए बैकड्रॉप गोवा को चुना गया ताकि विदेशी स्टाइल बरकरार रखने में कोई दिक्कत ना आए. लेकिन बावजूद इसके कई बार आपका मन होता है कि बकवास मूवी है, उठ जाओ, बंद करो... फिर कहीं ना कहीं लगता है ये तो देख लो कि क्लाइमेक्स में क्या होता है. आपको ये मूवी बार बार बीच में बकवास क्यों लगती है, उसकी वजह है इसका टाइटल- ‘लूप लपेटा’ (Loop Lapeta), अब विस्तार से तो मूवी देखकर ही समझा जा सकेगा.

साधारण सी कहानी

कहानी है एक ऐसी लड़की सावी (तापसी पन्नू) की जो अपने औसतन बुद्धू बॉय फ्रेंड सत्या को एक अजीब सी ‘टाइम बाउंड’ मुश्किल से निकालना चाहती है. यानी अगर 50 मिनट में 50 लाख रुपयों का इंतजाम नहीं हुआ तो सत्यजीत का राम नाम सत्य है. ऐसे यूं एक लाइन की बडी साधारण सी कहानी है, लेकिन में जो लूप लपेटा लगता है कि हर घटना आपको कई कई बार झेलनी पड़ेगी. 

फिल्म में हैं भागमभाग

सो कहानी में तो कुछ है ही नहीं, लेकिन किरदार काफी हैं, सावी के पापा हैं जो गे हैं, एक टैक्सी ड्राइवर रॉबर्ट है, जिसका गर्लफ्रेंड जूलिया की शादी हो रही होती है, एक पुलिस इंस्पेक्टर है जो हर बार सावी के रास्ते में आ जाता है, एक ज्वैलर है जिसके दोनों बेटे उसे लूटना चाहते हैं, एक डॉन है जो सत्या को 50 लाख की डिलीवरी लाने भेजता है, सावी के एक अंकल हैं जो कुछ बोलते नहीं हैं और सावी (तापसी) के घर का बाथरूम है, जिसमें टॉयलेट सीट के ऊपर एक शीशा लगा है, जिसके सामने ड्रग्स लेते हुए तापसी के सीन से हर बार कहानी शुरू होती है.

नौजवानों पर फोकस किया

अब चूंकि भारतीय माहौल में ढालना आसान नहीं था, सो पूरी मूवी को नौजवानों पर फोकस किया गया और स्टाइल इमरान खान की मूवी ‘डेल्ही बेली’ से ली गई. गानों को उसी यूथफुल अंदाज में लिखा, फिल्माया गया. टाइटल सोंग समेत दो तीन गाने आपको पसंद भी आएंगे. सबसे दिलचस्प था सत्यवान सावित्री की कहानी को लेना- तभी तो तापसी का नाम सावी है और ताहिर भसीन का नाम ‘सत्या’. हां, डेल्ही बेली से गालियां थोड़ी कम हैं, लेकिन उसी तरह पैकेट पहुंचाने की भागमभाग जरूर है.

तीन पायदानों पर टिकी है फिल्म

मूवी बस 3 पायदानों पर टिकी है, पहली तापसी पन्नू, दूसरी – इसको नौजवानों से जोड़ना और तीसरा कहानी से ज्यादा ‘विजुअल एक्सपीरियंस’ देने की कोशिश करना, सो एडीटिंग और सिनेमेटोग्राफी पर काफी मेहनत हुई है. लेकिन आम किस्म के दर्शकों को शायद ही पसंद आए. बहुत लोग इस मूवी को आधे घंटे के अंदर भी छोड़ सकते हैं क्योंकि सींस कई सारे ऐसे रचे गए हैं, जो सिएचुशनल कॉमेडी भी लगती नहीं है, बल्कि डायरेक्टर ही वेबकूफ नजर आता है. ऐसे में कभी तो लगता है भारतीय रीमेक बनाने के चक्कर में फिल्म खिचड़ी बन गई है. 

तापसी ने लिया रिस्क

सो अगर आपको एक्सपेरीमेंट्स पसंद हैं, कुछ अलग देखने का मन है, तापसी पन्नू के फैन हैं तो ये मूवी आपके लिए है. आप रिस्क लें ना लें, लेकिन इस मूवी को देखकर ये जरूर लगता है कि तापसी भी कंगना की तरह हीरोइन को तबज्जों देने वाली एक्सपेंरीमेंट्स फिल्में ज्यादा करने के मूड में हैं, सो उनका रिस्क है तो पक्का है, आपकी अपनी मर्जी है.

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