Proba-3 Mission in Hindi: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने बीते कुछ सालों में अभूतपूर्व ऊंचाइयां हासिल की हैं. मंगलयान हो या चंद्रयान, या फिर बेहद कम लागत में सैटेलाइट्स का लॉन्च, आज इसरो की गिनती दुनिया की टॉप अंतरिक्ष एजेंसियों में होती है. ISRO के मुकुट में अगले महीने एक और नगीना लगने जा रहा है. 4 दिसंबर 2024 को ISRO श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के प्रोबा-3 मिशन को लॉन्च करेगा. ESA का यह मिशन सूर्य के कोरोना की स्टडी करेगा. ESA के प्रोबा मिशन सूर्य के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाने के लिए हैं. ISRO ने ही इससे पहले के प्रोबा मिशनों- Proba-1 को 2001 में और Proba-2 को 2009 में - सफलतापूर्वक लॉन्च किया था.


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क्या है Proba-3 मिशन?


प्रोबा-3 मिशन यूरोप के कई देशों का एक साझा प्रोजेक्ट है. इनमें स्पेन, पोलैंड, बेल्जियम, इटली और स्विट्जरलैंड शामिल हैं. 200 मिलियन यूरो की अनुमानित लागत वाला यह मिशन दो साल तक चलेगा. यह एक ऐतिहासिक मिशन होगा जिसके तहत अंतरिक्ष में पहली बार 'प्रिसिजन फॉर्मेशन फ्लाइंग' को आजमाया जाएगा. यानी दो सैटेलाइट एक साथ उड़ेंगे और लगातार एक तय कॉन्फिगरेशन को मेंटेन करते रहेंगे.


प्रोबा-4 मिशन में दो प्रमुख स्पेसक्राफ्ट हैं: Occulter जिसका वजन 200 किलोग्राम है और Coronagraph, जो 340 किलो वजनी है. ये दोनों बेहद सटीक कोऑर्डिनेशन में काम करेंगे. 4 दिसंबर को लॉन्च किए जाने के बाद ये सैटेलाइट अलग-अलग हो जाएंगे लेकिन फिर इन्हें एक साथ पोजिशन किया जाएगा ताकि एक सोलर कोरोनाग्राफ बन सके. फिर यह सूर्य की चमकीली रोशनी को ब्लॉक कर देगा और कोरोना (सूर्य का बाहरी वायुमंडल) की अभूतपूर्व डिटेल में स्टडी का मौका देगा.


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PSLV-XL रॉकेट पर लदकर जाएंगे सैटेलाइट


प्रोबा-3 स्पेसक्राफ्ट को बेहद दीर्घवृत्ताकार कक्षा में रखा जाएगा, जिसकी ऊंचाई 600 से 60,530 किलोमीटर और परिक्रमा का समय 19.7 घंटे होगा. Proba-3 को ISRO के पोलर सैटैलाइट लॉन्च वीइकल (PSLV) से लॉन्च किया जाना है. PSLV-XL एडिशन बढ़े हुए थ्रस्ट के लिए अतिरिक्त बूस्टर से लैस है. PSLV का ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा है और उसने 1994 में अपनी पहली सफल उड़ान के बाद से कई मिशन लॉन्च किए हैं. पूरी दुनिया PSLV पर भरोसा करती है.


प्रोबा-3 मिशन क्या पता लगाएगा?


Proba-3 मिशन का मेन मकसद सूर्य के कोरोना की स्टडी करना है. यह सूर्य का वह हिस्सा है जहां का तापमान 20 लाख डिग्री फैरनहाइट तक पहुंच जाता है. इतने अधिक तापमान की वजह से इसे देख पाना मुश्किल है. सोलर कोरोना, अंतरिक्ष के मौसम पर गहरा असर डालता है. इसी के चलते सौर तूफान और सौर हवाएं आती हैं जो धरती के सैटैलाइट्स, नेविगेशन सिस्टमों और पावर ग्रिडों को नुकसान पहुंचा सकती हैं.


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लगातार सूर्यग्रहण को सिमुलेट करेगा प्रोबा-3


प्रोबा-3 मिशन में प्रिस‍िजन फॉर्मेशन फ्लाइंग का इस्तेमाल इसे बेहद खास बना देता है. दोनों सैटेलाइट एक तय फॉर्मेशन में उड़ान भरते समय एक दूसरे से बहुत ही सटकी दूरी बनाए रखेंगे - केवल कुछ मिलीमीटर से अलग होंगे. परफेक्ट अलाइनमेंट सूर्य ग्रहण के प्रभावों को सिमुलेट करने के लिए अहम है. यानी, एक सैटेलाइट सूर्य के प्रकाश को ब्लॉक करेगा, जिससे दूसरे को सूर्य के कोरोना की स्टडी करने का मौका मिलेगा. प्राकृतिक सूर्य ग्रहण कुछ मिनटों तक चलते हैं और कभी-कभार होते हैं, प्रोबा-3 लगातार छह घंटे तक कोरोना को ऑब्जर्व करेगा. यह हर साल 50 प्राकृतिक सूर्य ग्रहणों की कुल अवधि के बराबर है.


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