India Bangladesh Water Treaty: तीस्ता जल बंटवारे और 1996 फरक्का संधि के नवीनीकरण पर चर्चा से पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी आगबबूला हैं. बनर्जी ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर नाराजगी जाहिर की. सीएम ने कहा कि राज्य सरकार की भागीदारी के बिना बांग्लादेश से इस पर कोई बातचीत नहीं होनी चाहिए. अगर तीस्ता नदी का पानी बांग्लादेश के साथ साझा किया गया तो उत्तर बंगाल के लाखों लोग गंभीर रूप से प्रभावित होंगे.


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पिछले दिनों बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत आई थीं. उसी दौरान दोनों देशों के बीच 1996 की गंगा जल संधि के नवीनीकरण और तीस्ता का पानी बांटने पर चर्चा शुरू हुई. ममता का कहना है कि इन चर्चाओं में बंगाल को शामिल नहीं किया गया. उन्होंने केंद्र सरकार के कदम को 'एकतरफा' करा दिया. हालांकि, सूत्रों के हवाले से केंद्र ने कहा कि पिछले साल जुलाई में बंगाल सरकार से एक प्रतिनिधि भेजने को कहा गया था ताकि 1996 की संधि की आंतरिक समीक्षा की जा सके.


नाराज ममता ने क्या कहा?


ममता बनर्जी ने PM मोदी को भेजे पत्र में लिखा, 'मुझे पता चला है कि भारत सरकार भारत-बांग्लादेश फरक्का संधि (1996) को नवीनीकृत करने की प्रक्रिया में है, जो 2026 में समाप्त हो रही है. यह एक संधि है जो बांग्लादेश और भारत के बीच पानी के बंटवारे को रेखांकित करती है और जैसा कि आप जानते हैं, इसका पश्चिम बंगाल के लोगों पर बहुत बड़ा प्रभाव है.'


सीएम ने कहा, 'मैं अपनी सख्त आपत्ति को व्यक्त करना चाहती हूं कि तीस्ता जल बंटवारे और फरक्का संधि पर कोई भी चर्चा राज्य सरकार की भागीदारी के बिना बांग्लादेश के साथ नहीं की जानी चाहिए. पश्चिम बंगाल के लोगों का हित सर्वोपरि है, जिसके साथ किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जाना चाहिए.'


'हमारी बात नहीं सुनी तो पूरे देश में प्रदर्शन होंगे'


ममता ने हसीना की हालिया दिल्ली यात्रा का संदर्भ देते हुए कहा कि 'राज्य सरकार से परामर्श और राय के बिना एकतरफा विचार-विमर्श न तो स्वीकार्य है और न ही वांछनीय है.' एक प्रशासनिक बैठक के दौरान भी ममता का गुस्सा फूट पड़ा. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, सीएम ने कहा, 'अब वे तीस्ता का पानी देने की कोशिश कर रहे हैं. जैसे वे (पीएम) कोई राजा हों. चुनाव के बाद, सांसदों ने अभी तक शपथ नहीं ली है और इस सीमित समयसीमा में, वे हमें सूचित किए बिना तीस्ता का पानी बेच रहे हैं. अगर वे हमारी बात नहीं सुनते हैं और कोई एकतरफा फैसला लेते हैं, तो पूरे पश्चिम बंगाल और पूरे देश में विरोध प्रदर्शन होंगे.'


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भारत-बांग्लादेश के बीच पानी का क्या समझौता है?


1996 की गंगा जल बंटवारा संधि के अनुसार, ऊपरी तटवर्ती भारत और निचले तटवर्ती बांग्लादेश ने बंगाल के मुर्शिदाबाद में फरक्का बैराज पर 30 साल के लिए गंगा के पानी को साझा करने पर सहमति जताई थी. इसे फरक्का संधि के नाम से भी जाना जाता है. यह समझौता 2026 में समाप्त हो रहा है और आपसी सहमति से इसे रिन्यू किया जा सकता है.


TMC का कहना है कि 1996 संधि ने भारत के पूर्वी भाग और बांग्लादेश में नदी के आकार को बदल दिया है. जिससे पश्चिम बंगाल में पानी की उपलब्धता प्रभावित हुई है. ममता के मुताबिक, 'लाखों लोग विस्थापित हो गए हैं, वे बेघर हो गए हैं और उनकी आजीविका भी छिन गई है. हुगली में गाद का भार कम होने से सुंदरबन डेल्टा को भी नुकसान पहुंचा है.'


बांग्लादेश के साथ जल संधि का विरोध क्यों?


बंगाल के साथ-साथ बिहार ने भी अपने क्षेत्रों में बाढ़, गाद और कटाव के लिए इस संधि को जिम्मेदार ठहराया है. फरवरी 2022 में ममता ने मोदी को पत्र लिखकर मुर्शिदाबाद, मालदा और नादिया जिलों में गंगा बेल्ट के साथ लगातार हो रहे कटाव पर चिंता जताई थी. 2016 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने फरक्का बैराज को हटाने की मांग की थी. नीतीश का कहना था कि इसके फायदे से ज्यादा नुकसान हैं और यह बिहार में गंभीर बाढ़ की स्थिति के लिए जिम्मेदार है.


तीस्ता के पानी को बांटने पर राजी नहीं ममता


ममता किसी कीमत पर बांग्लादेश के साथ तीस्ता नदी का पानी नहीं साझा करना चाहतीं. तीस्ता सिक्किम से निकलकर मुख्य रूप से बंगाल से होकर बहती है. 2011 में, यूपीए-2 के समय में भी भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता के पानी के बंटवारे को लेकर समझौता होने वाला था. लेकिन ममता के कड़े विरोध के बाद फैसला टाल दिया गया था. ममता ने तब दावा किया था कि इससे उत्तर बंगाल सूख जाएगा.