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India Vs China: जब भी बात भारत के सबसे बड़े दुश्मन की होती है, अपने आप ही सबकी जुंबा पर चीन और पाकिस्तान का नाम आ जाता है. सीमा विवाद को लेकर भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण संबंध रहे हैं. हालांकि बीते कुछ सालों से भारत के दोनों ही पड़ोसी और दुश्मन देश कमजोर होते जा रहे हैं. पाकिस्तान अपनी कंगाली को नहीं संभाल पा रहा है तो वहीं चीन की अर्थव्यवस्था अब उनके लिए चुनौती बनती जा रही है. चीन की विस्तारवादी नीतियां भारत की विरोधी रही है. दुनियाभर में धौंस दिखाने वाला चीन अब भारत के सामने पस्त होता जा रहा है. चीन की हड्डियां कमजोर होती जा रही है. लाठी के सहारे बूढ़ा चीन भारत जैसे जवां देश का मुकाबला कैसे कर पाएंगे. दरअसल चीन की आबादी बूढ़ी होती जा रही है. चीन में बुजुर्गों की संख्या 30 करोड़ के पार हो गई है, अनुमान है कि यह 2035 तक चीन में 60 साल से ज्यादा उम्र वाले लोगों की संख्या 40 करोड़ और 2050 तक 50 करोड़ हो जाएगी. यानी साल 2050 तक चीन की आधी आबादी लाठी के सहारे होगी.
जवां भारत के कैसे मुकाबला करेगा चीन
एक तरफ भारत के की जवान आबादी है. देश के पास बड़ा वर्कफोर्स है. एंजेल वन वेल्थ की एक रिपोर्ट की माने तो साल 2023 से 2050 के बीच दुनिया में नए कामकाजी वर्कफोर्स में भारत की हिस्सेदारी 20% की होगी. इस रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में जवान वर्कफोर्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है. एक तरह यंग भारत है तो दूसरी ओर चीन अपने देश में रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने का फैसला कर रहा है. चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक चीन में लगातार कम होती वर्क फोर्स के आर्थिक दबाव से निपटने के लिए अपने यहां रिटायरमेंट उम्र को 60 से बढ़ाकर 63 कर रहा है.
स्वस्थ बुढ़ापे के लिए चीन का प्रयास
देश में जनसंख्या के तेजी से बुढ़ापे के चलते चीन गहन जनसांख्यिकीय बदलावों का अनुभव कर रहा है. आधिकारिक आंकडों के अनुसार, देश की 60 वर्ष से अधिक उम्र की आबादी लगभग 30 करोड़ तक पहुंच गई है और औसत जीवन प्रत्याशा 78.6 वर्ष तक पहुंच गई है. चीन के लिए बड़ी समस्या बनती जा रही है. रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर वो न केवल वर्कफोर्स के दवाब को कम करने की कोशिश कर रहा है, बल्कि पेंशन बजट के दवाब को भी कम करने की योजना बना रहा है. रिचायरमेंट उम्र बढ़ाने से लोगों को लंबे समय तक काम करना होगा, जिससे पेंशन बजट पर दबाव कम होगा. बता दें कि चीन पहले से ही आर्थिक चुनौतियां का सामना कर रहा है. चीनी प्रांत बड़े घाटे से जूझ रहे हैं. ऐसे में पेंशन पर दवाब कम कर वो सरकार को थोड़ी राहत दे सकता है.
भारत के सामने कहां टिक पाएगा चीन
पहले से ही आर्थिक मंदी, घटते निर्यात, खस्ताहाल रियलएस्टेट और विदेशी देशों से खराब संबंधों को लेकर आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा चीन अपनी बूढ़ी होती आबादी से परेशान है. बूढ़ी होती जनसंख्या उसके लिए बड़ी चुनौती है. बूढ़ी जनसंख्या से न केवल सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा, बल्कि दुनिया की फैक्ट्री कहलाने वाले चीन को वर्कफोर्स की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है. वहीं दूसरी ओर भारत की युवा आबादी भी उसकी ताकत है. 29 साल की औसत उम्र के साथ भारत दुनिया में सबसे कम 'डिपेंडेंसी रेश्यो' वाले देशों में से एक है. बता दें कि डिपेंडेंसी रेश्यो का मतलब है कामकाजी व्यक्ति पर लोगों की जिम्मेदारी. चीन में डिपेंडेंसी रेश्यो लगातार बढ़ रहा है. वर्कफोर्स का सीधा संबंध मैन्युफैक्चरिंग से है. भारत अपनी जवान वर्कफोर्स के दम पर दुनियाभर के लिए मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर उभरता जा रहा है. वहीं चीन से विदेशी कंपनियां दूरी बनाने लगी है. चीन को भारत से टकराने से पहले इन चुनौतियों का सामना करना होगा.