OPINION: महिलाएं आंख सेंकने की वस्तु नहीं हैं... लालू के बेतुके बयान से नीतीश को बूस्टर! क्यों बहक जाती हैं नेताओं की जुबान?
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OPINION: महिलाएं आंख सेंकने की वस्तु नहीं हैं... लालू के बेतुके बयान से नीतीश को बूस्टर! क्यों बहक जाती हैं नेताओं की जुबान?

Lalu Prasad Yadav Controversial Statement: बिहार की खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री लेशी सिंह ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बहके हुए बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि महिलाएं आंख सेंकने की वस्तु नहीं हैं. लालू प्रसाद यादव ने हमेशा महिलाओं को अपमानित और लज्जित किया है. उनके बयान से राजद का महिला विरोधी असली चेहरा उजागर हुआ है. 

OPINION: महिलाएं आंख सेंकने की वस्तु नहीं हैं... लालू के बेतुके बयान से नीतीश को बूस्टर! क्यों बहक जाती हैं नेताओं की जुबान?

Nitish Kumar Mahila Samvad Yatra: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महिला संवाद यात्रा को लेकर विपक्षी इंडिया गठबंधन के नेता राजद प्रमुख प्रमुख लालू प्रसाद यादव के विवादित बयान से सियासी संग्राम छिड़ गया है. मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रह चुके लालू यादव ने मंगलवार को अपने पुराने साथी नीतीश कुमार के लिए कहा, 'आंख सेंकने जा रहे हैं, जाने दिजिए. वो सिर्फ आंख सेंकने जा रहे हैं. पहले आंख सेकें अपना फिर सरकार बनाने की सोचेंगे.' 

76 साल के लालू यादव के बहके बयान पर सियासी संग्राम

76 साल के लालू यादव के इस बहके हुए बयान पर एनडीए गठबंधन के लगभग सभी नेताओं ने कड़ा पलटवार किया है. इससे बिहार की राजनीति सरगर्म हो गई है. बिहार की खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री लेशी सिंह ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बहके हुए बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा, 'महिलाएं आंख सेंकने की वस्तु नहीं हैं. लालू प्रसाद यादव ने हमेशा महिलाओं को अपमानित और लज्जित किया है. उनका महिलाओं को अपमानित करने का पुराना संस्कार है. उनके बयान से राजद का महिला विरोधी असली चेहरा उजागर हुआ है.' 

नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार की आधी आबादी सशक्त

लेशी सिंह ने आगे कहा कि राजद तो हमेशा महिला विरोधी कार्यों में संलिप्त रहा है. लालू प्रसाद यादव को आज इस बात का दर्द हो रहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार की आधी आबादी सशक्त हो रही है. सड़क पर प्रतिकार मार्च निकालकर लालू का विरोध करनेवाली जदयू की प्रदेश प्रवक्ता अंजुम आरा, भारती मेहता और अनुप्रिया ने साझे बयान में कहा कि भाषा की मर्यादा खो चुके लालू प्रसाद का बयान उनके मानसिक दिवालिएपन का परिचायक है. राजनीति में हाशिए पर पहुंच चुके लालू प्रसाद के बयान से यह लगता है कि वह दिमागी तौर पर भी बीमार हैं. इनके अलावा, सत्ता पक्ष की कई महिला नेताओं ने लालू यादव को उनके बयान पर जमकर घेरा.

लालू के खिलाफ एनडीए की महिला सांसदों ने भी खोला मोर्चा 

बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि लालू जी अब आखिरी पड़ाव पर हैं. वह चीजों को समझने और कहने में असमर्थ हैं. जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने कहा कि इस बयान की जितनी निंदा की जाए वह कम है. जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि लगातार पराजय से उपजी हताशा और बौखलाहट से लालू प्रसाद का मानसिक संतुलन बिगड़ गया है. उन्होंने जिस तरह से मर्यादा की धज्जियां उड़ायी है उससे शर्म शब्द को भी शर्मिंदगी महसूस हो रही होगी. समस्तीपुर से लोजपा सांसद शाम्भवी चौधरी ने कहा कि लालू के इस बयान से घिन आ रही है. शिवहर से जदयू सांसद लवली आनंद ने  कहा कि लालू यादव बुढ़ापे में ‘सठिया’ गए हैं.  

शाहनवाज हुसैन ने पूछा- क्या राजद के लोग आंख ही सेंकते हैं? 

लालू के बयान पर भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने पूछा कि क्या राजद के लोग आंख ही सेंकते हैं? उन्होंने कहा कि यह क्या हो गया है लालू यादव को, जिनको नीतीश कुमार अपना भाई, साथी, दोस्त कहते हैं वे क्या ऐसी सोच रखते हैं? उन्होंने कहा, "मुख्यमंत्री इतने वरिष्ठ हैं, 'बिहार के रत्न' है. जिस पर देश को गर्व है. नीतीश कुमार लंबे समय से जनता के चुने हुए मुख्यमंत्री हैं. लालू यादव बुजुर्ग हो गए हैं. उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वे एक मुख्यमंत्री के लिए इतनी घटिया सोच रखेंगे." उन्होंने कहा कि इस बयान के बाद अब तो राजद के लोग से आम लोग फिर से डरेंगे. 

सोनिया गांधी और ममता बनर्जी को लालू की निंदा करनी चाहिए

कई भाजपा नेताओं ने कहा कि लालू यादव ने बिहार की महिलाओं के साथ भद्दा मजाक किया है. वह कम से कम अपने उम्र का तो ख्याल रखें और ऐसी ओछी टिप्पणी करने से परहेज करें. जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि हमने राजनीति में ऐसी टिप्पणी पहले कभी नहीं सुनी. सीएम का पद संभाल चुके एक व्यक्ति ने ऐसे विचार व्यक्त किए है. यह घटना निंदा के योग्य है. सोनिया गांधी और ममता बनर्जी को लालू के इस बयान की निंदा करनी चाहिए. बिहार चुनाव में लालू को महिलाएं सबक सिखाएंगी.

नीतीश के लिए कैसे बूस्टर डोज की तरह है लालू का विवादित बयान?

ये तो हुई लालू के विवादित बयान और उन पर महिला मंत्री लेशी सिंह समेत भाजपा-जदयू के नेताओं की कड़ी प्रतिक्रियाओं की बानगी, लेकिन बिहार की राजनीति के जानकारों के मानना है कि यह पूरा मामला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महिला संवाद यात्रा को ही नहीं, बल्कि उनकी राजनीतिक स्थिति के लिए भी बूस्टर डोज की तरह है. 

बढ़ती उम्र, बिगड़ती सेहत, एनडीए और महागठबंधन के बीच कई बार आवाजाही के कारण राजनीतिक प्रमाणिकता में कमी और लगातार मंचों पर मुख्य मुद्दों से अलग वजहों से चर्चा में आने के कारण बिहार एनडीए और जदयू में नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी की तलाश तेज हो रही है. इस बीच, पूरी पार्टी और एनडीए के लालू के विवादित बयान के खिलाफ एकजुट हो जाने से नीतीश के लिए एक पॉजिटिव माहौल बन गया है.

नीतीश कुमार की महिला संवाद यात्रा पर खर्च होंगे 226 करोड़ रुपये

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्यव्यापी महिला संवाद यात्रा निकालने की घोषणा कर चुके हैं. नीतीश कैबिनेट ने इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए कुल 226 करोड़ रुपये खर्च करने की मंजूरी भी दी है. यात्रा का मकसद बताया गया है कि सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए जो काम किए हैं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उन काम के बारे में राज्य भर की महिलाओं से संवाद करेंगे. इसके साथ ही आगामी विधानसभा चुनावों में महिला मतदाताओं का रुझान समझने की कोशिश करेंगे. 

बिहार में 48 फीसदी महिला वोटर, नीतीश कुमार का पक्का वोट बैंक

बिहार में 48 फीसदी महिला वोटर हैं. राज्य की राजनीति में महिला मतदाताओं को नीतीश कुमार का सॉलिड वोट बैंक माना जाता है. बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव से लगभग साल भर पहले नीतीश कुमार दिसंबर में ही अपनी महिला संवाद यात्रा की शुरुआत करने वाले हैं. उनकी प्रस्तावित यात्रा को लेकर विपक्ष लगातार हमलावर है. तेजस्वी यादव ने इस यात्रा को सरकारी खजाने का फिजूलखर्च कहा है. नीतीश कुमार के महागठबंधन छोड़कर एनडीए में जाने के बाद से लालू यादव और तेजस्वी यादव लंबे समय तक नीतीश पर सीधा हमला करने से बचते रहे हैं. क्योंकि कई बार नीतीश के फिर राजद के साथ जाने के कयास भी लगाए जाते हैं. 

लालू की तरह नीतीश भी दे चुके हैं विवादित बयान, फिर मांगी माफी

दूसरी ओर, देश भर के नेता अक्सर अपने अटपटे बयानों के लिए सुर्खियों में शुमार होते रहते हैं. खासकर, बिहार में लालू यादव तो इंटरनेट के जमाने के पहले से ही वायरल होने लायक बयान देने के लिए मशहूर हैं. उनके ज्यादातर बयान व्यंग के लहजे में होते हैं और ज्यादातर बार हदों को लांघ कर विवादित हो जाते हैं. बिहार में बीते दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जुबान सदन में महिलाओं की शिक्षा को लेकर बोलते वक्त फिसल गई थी. हालांकि, मामले के तूल पकड़ने पर उन्होंने आगे बढ़कर माफी मांग ली थी. 

राबड़ी देवी, जीतनराम मांझी... पूर्व सीएम ने भी दिए विवादित बयान

पूर्व मुख्यमंत्री और राजद नेता राबड़ी देवी का नीतीश कुमार और राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह पर चुनावी मंच से दिए विवादित बयान का मामला लंबे समय तक कोर्ट में चला और बाद में महागठबंधन सरकार में दोनों दलों के साथ आने पर समझौते की शक्ल में खत्म हुआ. राजद नेता चंद्रशेखर के रामचरितमानस पर दिया विवादित बयान हो या जीतनराम मांझी का जातीय मामले में दिया बयान लगातार सुर्खियां बटोरता और फिर सियासत के चक्कर में भुलाया जाता रहा है. लेकिन हर बार नेताओं के ऐसे बयान यह सवाल खड़े कर देते हैं कि आखिर उनकी जुबान फिसलती क्यों है?

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नेताओं की जुबान फिसलने के पीछे भी होती है ठोस सियासी वजह 

राजनीति के माहिरों का कहना है कि वहां कुछ भी अनायास नहीं होता. नेताओं की जुबान फिसलने के पीछे भी ठोस सियासी वजह होती है. नेता जानबूझकर ही ऐसी बातें कहते हैं और उनके मुताबिक चर्चा आगे नहीं बढ़ती तो बात आई-गई हो जाती है और अगर मामले ने तूल पकड़ लिया तो कुछ दिनों तक सुर्खियों में रहने के बाद माफी मांग ली जाती है. सुर्खियों में रहना नेताओं की जरूरत होती है. इसलिए जुबान को फिसलाया जाता है. पब्लिसिटी स्टंट कहें या पीआर स्ट्रैटजी चर्चा में रहने के लिए नेताओं की ऐसी हरकतें उनके खास वोट बैंक को संबोधित होती हैं. व्यवहारिक तौर पर इन बयानों का और किसी से कोई वास्ता नहीं होता है.

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महिलाओं को लेकर नेताओं के विवादित बयानों का लंबा सिलसिला

जहां तक महिलाओं को लेकर नेताओं के विवादित बयानों के देखें तो आजादी के बाद से ही सड़क और संसद तक में जुबान फिसलती रहती है. चुनावों के दौरान ऐसे मामले ज्यादा सामने आते हैं. हर दलों में कोई न कोई नेता इस तरह के बयान दे देता है कि आम लोगों कई दिनों तक बहस करते रहते हैं, लेकिन वो गंभीर नहीं होती. क्योंकि नेताओं की जुबान फिसलने को जनता अब आम बात मानकर आगे बढ़ जाती है. वहीं, नेता भी उसे भूलकर आगे नए विवादित बयान देने लगते हैं. हालांकि, यह सवाल अनसुलझा ही रह जाता है कि हमारे नेता भाषा की मर्यादा और बयानों की सीमा रेखा को कब समझेंगे और इसे पार नहीं करेंगे.

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