Analysis: आखिर 'एक देश एक चुनाव' कितना जरूरी है.. क्या समय की मांग है देश में एक साथ इलेक्शन कराना?
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Analysis: आखिर 'एक देश एक चुनाव' कितना जरूरी है.. क्या समय की मांग है देश में एक साथ इलेक्शन कराना?

Elections in India: एक देश एक चुनाव  एक दूरगामी कदम हो सकता है. लेकिन इसे लागू करने से पहले सभी पक्षों के साथ विचार-विमर्श जरूरी है ताकि इसे सभी के लिए एक्ससेप्टेड बनाया जा सके. इसके अलावा यह जरूर सुनिश्चित हो सके कि प्रक्रिया भी पारदर्शी बनी रहे.

Analysis: आखिर 'एक देश एक चुनाव' कितना जरूरी है.. क्या समय की मांग है देश में एक साथ इलेक्शन कराना?

One Nation One Election: भारत में बार-बार चुनाव होने से बढ़ते खर्च, समय की बर्बादी और प्रशासनिक व्यवधान के मुद्दे लंबे समय से चर्चा में हैं. अब ‘एक देश, एक चुनाव’ की अवधारणा को लागू करने के लिए 129वां संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया जाने वाला है. इसका उद्देश्य न केवल चुनावी खर्चों को कम करना है, बल्कि सरकार के कार्यों में स्थिरता और विकास में तेजी लाना भी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसे मंजूरी देकर इस विषय को फिर से केंद्र में ला दिया है. लेकिन आखिर ये कानून देश के लिए कितना जरूरी है आइए इसे समझते हैं. 

बार-बार चुनाव: विकास में रुकावट
असल में एक्सपर्ट्स इस बात पर दो राय नहीं हैं कि वर्तमान चुनाव प्रणाली में बार-बार चुनाव आचार संहिता लागू होती है, जिसके कारण सरकारी विकास कार्य रुक जाते हैं. हर चुनाव के दौरान सरकारी सेवाओं और संसाधनों को चुनावी प्रक्रियाओं में लगा दिया जाता है. इससे सरकारी विभागों में काम धीमा पड़ जाता है और जनता की समस्याओं का समाधान भी टल जाता है. ‘एक देश, एक चुनाव’ का समर्थन करने वाले मानते हैं कि इससे विकास योजनाएं बिना बाधा के आगे बढ़ेंगी और चुनाव प्रक्रिया ज्यादा प्रभावी होगी.

क्या खर्च और समय की बचत हो पाएगी?
यह भी सही है कि चुनाव एक महंगी और जटिल प्रक्रिया है. हर बार चुनाव आयोजित करने में करोड़ों रुपये खर्च होते हैं. अलग-अलग राज्यों में चुनाव होने से न केवल धन की बर्बादी होती है, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था पर भी बोझ बढ़ता है. एक साथ चुनाव से यह खर्च काफी हद तक कम किया जा सकता है. साथ ही, सुरक्षा बलों और चुनाव आयोग की दक्षता भी बढ़ाई जा सकती है, जिससे लोकतंत्र को और मजबूत किया जा सके.

संवैधानिक बदलाव की जरूरत तो पड़ेगी ही
इस विधेयक में संविधान के अनुच्छेद 82ए, 83, 172 और 327 में संशोधन करने का प्रस्ताव है. इसका उद्देश्य लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ आयोजित करने की कानूनी प्रक्रिया को सरल बनाना है. नए प्रावधान के तहत, लोकसभा की पहली बैठक की तारीख को ‘नियत तिथि’ माना जाएगा, और इसके आधार पर सभी चुनाव एक ही चक्र में होंगे. हालांकि, अगर किसी विधानसभा का कार्यकाल पहले समाप्त होता है, तो उसका चुनाव केवल शेष अवधि के लिए होगा.

चुनौतियां और उम्मीदें दोनों हैं.. 
हालांकि ‘एक देश, एक चुनाव’ की अवधारणा कई फायदे प्रस्तुत करती है, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं है. देश में विविध राजनीतिक परिस्थितियां, क्षेत्रीय दलों की भूमिका और राज्यों के अलग-अलग मुद्दे इस प्रस्ताव के सामने बड़ी चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं. फिर भी, अगर इसे सही तरीके से लागू किया जाए, तो यह न केवल प्रशासन को सुचारू बनाएगा, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को और अधिक स्थिरता और पारदर्शिता भी देगा. एजेंसी इनपुट

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