कोरोना (Corona) ने लोगों की रातों की नींद उड़ा दी है. इसका असर लोगों के स्लीपिंग पैटर्न (Sleeping Pattern) पर पड़ा है. यही नहीं वह सोने के बाद भी तरोताजा नहीं हो रहे हैं.
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नई दिल्ली: कोरोना (Corona) ने लोगों की रातों की नींद उड़ा दी है. इसका असर लोगों के स्लीपिंग पैटर्न (Sleeping Pattern) पर पड़ा है. यही नहीं वह सोने के बाद भी तरोताजा नहीं हो रहे हैं. एम्स, ऋषिकेश और देश के अन्य 25 चिकित्सा संस्थानों के एक अध्ययन (Study) से इस बात का खुलासा हुआ है.
एम्स, ऋषिकेश में मनोचिकित्सा और न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डा. रवि गुप्ता (Dr. Ravi Gupta) और सहयोगियों द्वारा किए गए अध्ययन को पूर्व-लॉकडाउन और लॉकडाउन (Lockdown) अवधि के बीच नींद की गुणवत्ता में बदलाव के मापन के लिए किया गया था. डा. रवि गुप्ता ने बताया कि लॉकडाउन से देश के हर नागरिक को किसी न किसी स्तर पर परेशानी हुई. हमने ये जानने की कोशिश की लोगों के स्लीपिंग पैटर्न में किस तरह का बदलाव आया.
रिपोर्ट (Report) के अनुसार लोगों के सोने का समय देर हो गया और जागने का समय में भी देरी हो गई. सीधे तौर पर कहें तो लोगों की स्लीपिंग क्वालिटी खराब हो गई. लोगों के बेड टाइम और जागने के समय में बदलाव के साथ रात को सोने का समय भी कम हो गया.
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गुप्ता कहते हैं कि हमने अध्ययन में पाया कि पहले 48.4 प्रतिशत लोग 11 बजे के बाद सो जाते थे. लॉकडाउन के बाद 65.2 प्रतिशत लोग 11 बजे के बाद सोने लगे. वहीं पहले जहां 11 बजे के पहले 51.6 प्रतिशत लोग सो जाया करते थे वह प्रतिशत अब घटकर 34.8 रह गया है. नींद में आ रही कमी या स्लीपिंग पैटर्न में हुए बदलाव से लोग हताश और बैचेन अधिक हो रहे हैं.
डा. गुप्ता ने कहा कि अध्ययन में सामने आया कि सोने के बाद भी लोग तरोताजा (Fresh) नहीं हो रहे हैं. लॉकडाउन के पहले जहां नींद (Sleeping) के कारण 19 फीसदी लोगों को बैचेनी की शिकायत थी तो लॉकडाउन के बाद यह शिकायत 47 प्रतिशत हो गई.
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