नई दिल्ली: दुनिया के लिए गंभीर संकट बन चुके कोरोना वायरस (Coronavirus) अब भी वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बना हुआ है. इस वायरस के बारे में हर महीने ऐसी नई जानकारियां सामने आती रहती हैं. जिससे वैज्ञानिकों की पुरानी रिसर्च बेकार हो जा रही हैं. इससे वैज्ञानिकों के एक तबके में निराशा भी भरती जा रही है.


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हवा से फैलने वाला वायरस है कोरोना
हाल में वैज्ञानिकों के एक समूह ने दावा किया कि कोरोनो वास्तव में हवा से फैलने वाला वायरस (Airborne virus) है. जिसका अर्थ यह हुआ कि यह वायरस हवा से एक- दूजे को फैल सकता है. यह दावा वैज्ञानिकों की उस पुरानी खोज से उलट है. जिसमें कहा गया कि यह मुंह से निकलने वाले ड्रॉपलेट्स से फैलने वाली बीमारी है. इससे पहले महामारी (Pandemic) शुरू होने पर वैज्ञानिक इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि यह बीमारी कोरोना संक्रमितों के बोलने या सांस लेने से फैल रही है. हालांकि उनके पास इन बात के कोई ठोस सबूत नहीं थे.


बोलने और सांस लेने से फैलता है कोरोना वायरस
अब नेब्रास्का विश्वविद्यालय (Nebraska University) में किए गए शोध में पहली बार बताया गया है कि माइक्रो ड्रॉपलेट्स (Micro Droplets) के बेहद बारीक कणों के जरिए भी कोरोना वायरस फैल सकता है. इससे इस धारणा को बल मिलता है कि खांसने और छींकने से ही नहीं बल्कि बोलने और सांस लेने से भी कोरोना वायरस फैल सकता है.  इसके साथ ही वैज्ञानिकों की इस धारणा पर भी सवाल खड़े हो गए हैं कि दो मीटर दूरी रखने से इस महामारी से बचा जा सकता है.


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हालांकि इस अध्ययन में निकले नतीजों की अब तक गहन समीक्षा नहीं की गई है. लेकिन फिर भी इससे सामने आई नई जानकारियों ने कोरोना वायरस पर कई बातों से पर्दा उठाया है. Medrxiv.org पर प्रकाशित यह अध्ययन उन वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है. जिन्होंने मार्च में ही यह कह दिया था कि यह वायरस कोरोनो रोगियों के लिए बने अस्पताल के कमरों में हवा में रहता है. यह अध्ययन जल्द ही एक जर्नल में प्रकाशित किया जाएगा.


अध्ययन से जुड़े असोसिएट प्रोफेसर जोशुआ संतारपिया ने कहा कि अनुसंधान के लिए नमूनों को इकट्ठा करना सबसे कठिन काम रहा. उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के बारे में जानकारी इकट्ठी करने के लिए मोबाइल फोन के आकार वाले एक उपकरण का इस्तेमाल किया गया. ऐसे मामलों में किसी माइक्रो वायरस पर फोकस रहने की आपकी संभावना बहुत कम होती है और कोई गड़बड़ होने पर उसे दोबारा पूर्व परिस्थिति में भी नहीं लाया जा सकता.


इस रिसर्च के दौरान वैज्ञानिकों ने कोरोना संक्रमित रोगियों के पांच कमरों से हवा के नमूने लिए. उन कमरों में पैरों के पंजे से 30 सेंटीमीटर ऊपर तक हवा में तैर रहे बारीक कण रिकॉर्ड किए गए. वैज्ञानिकों ने एक माइक्रोन तक छोटे आकार वाले इन बारीक कणों को सुरक्षित तरीके से एक जार में रखा. जांच में पाया गया कि इकट्ठा किए गए 18 सैंपल्स में से 3 सैंपल ऐसे थे. जो एक से दूसरे व्यक्ति में फैलने में सक्षम थे अर्थात वे वही कोरोना वायरस थे. जिनसे इस बीमारी का एक से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण हुआ है. वैज्ञानिकों के मुताबिक  ये माइक्रो ड्रॉपलेट्स, जिसे हम एरोसोल भी कहते हैं. ये गले पर हमला कर उसे जकड़ लेते हैं. जिससे लोगों को खांसी और बुखार की दिक्कत होने लगती है. साथ ही उसके फेफड़े भी धीरे- धीरे काम करना बंद कर देते हैं.


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