नई दिल्ली : सांस लेने में होने वाली परेशानी को अस्थमा या दमा कहते हैं. सांस लेने वाली नलियों में सूजन हो जाती है या रुकावट आ जाती है. आम लक्षणों में घरघराहट, खांसी, सीने में जकड़न और सांस लेने में समस्या आदि शामिल हैं. अस्थमा दो तरह का होता है. बाहरी और आंतरिक अस्थमा. बाहरी अस्थमा एलर्जी से होती है, जो कि पराग, खुशबू, जानवर, धूल, मसाले या अन्य किसी कारण से हो सकती है. आंतरिक अस्थमा में कुछ केमिकल तत्व शरीर में आने से यह बीमारी होती है. सिगरेट का धुआं, रंग-रोगन से यह हो सकता है. इसके अलावा सीने में संक्रमण, तनाव या लगातार खांसी से भी दमा हो सकता है. आनुवांशिकता के कारण भी अस्थमा होता है. अब तो बच्चे भी इस रोग के तेजी से शिकार हो रहे हैं.
दमा होने पर सांस लेने में कठिनाई होती है. सीने में जकड़न महसूस होती है. सांस लेने में घरघराहट की आवाज होती है. सांस तेज लेते हुए पसीना आने लगता है. बेचैनी महसूस होती है. जरा सी मेहनत से ही सांस फूलने लगता है. लगातार खांसी आने लगती है. अस्थमा लंबे समय चलने वाली बीमारी है. विशेषज्ञों का कहना है कि इंहेलेशन थेरेपी अस्थमा के उपचार का सबसे कारकर और प्रभावी तरीका है.
गाजियाबाद के वरिष्ठ एलर्जी विशेषज्ञ डॉ. बीपी त्यागी बताते हैं कि इंहेल्ड कोरटिकोस्टेरॉयड थेरेपी अस्थमा को काबू करने का सबसे अच्छा तरीका है. इस विधि से दवा की बहुत कम डोज सीधे सांस की नलियों में पहुंचती है.
अस्थमा एक प्रकार की एलर्जी है जो किसी खुशबू या रंग से भी हो सकती है
डॉ. त्यागी बताते हैं कि लगातार निर्माण कार्यों, सड़क पर बढ़ते वाहनों की संख्या और वातावरण में बढ़ते प्रदूषण के कारण भी दमा के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी को पूरी तरह खत्म तो नहीं किया जा सकता, मगर कुछ सावधानियां, उपाय तथा उपचार करके इसे काफी हद तक कम किया जा सकता है.