50 साल पहले शुरू हुई इस रिसर्च में अब तक तीन पीढ़ियों और 8181 बच्चों को शामिल किया जा चुका है. इस अध्ययन के नतीजों से शिशु मृत्यु दर यानी पांच साल से कम उम्र में बच्चों की मृत्यु को रोकने में बहुत मदद मिली है.
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नई दिल्ली: बच्चे देश का भविष्य होते हैं और इसलिए किसी भी देश के लिए बच्चों का जीवन सबसे कीमती है. भारत में शिशु मृत्यु दर में कमी के लिए एक अनोखी रिसर्च जारी है. 50 साल पहले शुरू हुई इस रिसर्च में अब तक तीन पीढ़ियों और 8181 बच्चों को शामिल किया जा चुका है. इस अध्ययन के नतीजों से शिशु मृत्यु दर यानी पांच साल से कम उम्र में बच्चों की मृत्यु को रोकने में बहुत मदद मिली है. हालांकि अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
अध्ययन का विषय
इस अध्ययन में नई दिल्ली के लाजपत नगर में 1969 और 1973 के बीच पैदा हुए बच्चों, उनके बच्चों और बच्चों के बच्चों की ऊंचाई, वजन, खानपान और विकास पर नजर रखी जा रही है. सर्वे में कुल 8181 बच्चे शामिल हैं. ये भारत का सबसे लंबे समय तक चलने वाला अध्ययन है और इसमें 50 सालों के दौरान करीब तीन पीढ़ियों और कुछ मामलों में चार पीढ़ियों को शामिल किया गया है.
अध्ययन का असर
इस प्रोजेक्ट से कई ऐसे अध्ययनों के लिए सामग्री मिली, जिनके नतीजे आज सर्वमान्य हैं. जैसे ये नतीजा कि उच्च बाल मृत्यु दर का परिवार नियोजन पर विपरीत असर पड़ता है, या बेहतर पोषण के कारण प्रत्येक पीढ़ी में बच्चे अधिक लंबे हो रहे हैं. इस अध्ययन का शुरुआती मकसद बच्च के समय कम वजन के कारणों का पता लगाना था. हालांकि बाद में इसका दायरा बड़ा हो गया. बात का अध्ययन भी शुरू हुआ कि कैसे कोख में और शुरुआती बचपन में कम पोषण के कारण डायबटीज का खतरा बढ़ जाता है.
कैसे हुई शुरुआत
अध्ययन की शुरुआत डॉ शांति घोष ने की थी, जो उस समय सफदरगंज अस्पताल में बाल रोग विभाग की प्रमुख थीं. इसके लिए अमेरिका और भारतीय काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च से चार साल के लिए अनुदान मिला था. इस अध्ययन के लिए लाजपत नगर में 1.23 लाख लोगों के बीच सर्वे किया गया. इसमें से 25708 विवाहित महिलाओं की पहचान की गई और अध्ययन के दौरान इन महिलाओं में 9509 ने गर्भधारण किया. इनसे 8181 जीवित बच्चों ने जन्म लिया.