महाराष्ट्र: सुखाग्रस्त पीडितों पर पुलिस का कहर, लाठीचार्ज में 2 माह के मासूम की मौत
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महाराष्ट्र: सुखाग्रस्त पीडितों पर पुलिस का कहर, लाठीचार्ज में 2 माह के मासूम की मौत

खबर के मुताबिक चेंबूर के अमर महाल में स्थित इस ब्रिज के नीचे लगभग 13 से 15 परिवार रहते है. जो की कई सालो से सुखे की स्थिति में मुंबई में आते है.

दो महीनें के बच्चे दर्दनाक मौत की घटना के बाद ब्रिज के नीचे सन्नाटा है.

देवेंद्र कोलटकर/मुंबई: महाराष्ट्र के सुखाग्रस्त इलाको से मुंबई आए परेशान लोगों को अब पुलिस की लाठी की मार झेल रहे हैं. दो दिन पहले पुलिस की लाठी के बचने के चक्कर में दो महिने का बच्चा मां के हाथो से गिर गया और उसकी मौत हो गयी. सोलापूर उस्मानाबाद इलाके से सुखाग्रस्त किसान मुंबई के चेंबूर इलाके में अमर महल ब्रिज के नीचे रहते है. एक तो सुखे नें गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया है और अब साथ ही पुलिसवाले जीना हराम कर रहें है, ऐसी स्थिती में किसान परेशान हो गए है. 

खबर के मुताबिक चेंबूर के अमर महाल में स्थित इस ब्रिज के नीचे लगभग 13 से 15 परिवार रहते है. यह सभी पारधी समाज के है. जो की कई सालो से सुखे की स्थिति में मुंबई में आते है. यहां जो काम मिलता है वह काम करते है. दो दिन पहले रात को पुलिस आई और उन्हे यहां से भगाने लगी. पुलिस ने लाठियां बरसाना शुरु कर दिया, अफरातफरी मची, लोग भागने लगे तभी जया शिंदे के हाथो से उसका 2 महीने का बच्चा रास्ते पर गिर गया और उसकी वहीं पर मौत हो गई. 

जया ने बताया की रात के वक्त पुलिस ने दंडा फेंककर मारा बच्चा मेरे हाथ में ही था. मैं बच्चे के साथ गिर गई. बच्चा वहीं पर मर गया. लेकिन प्रसाशन को इससे कोई मतलब नहीं है कि यह पर हमारे साथ क्या हो रहा है. साथ ही जया के साथ रहने वाली सुनीता का कहना है कि हम 25 साल से यहां पर रह रहो है, कभी पुलिसवालो ने हमे इतनी तकलीफ नहीं दी. लेकिन इस साल वोटिंग का बहाना बता कर हमे तकलीफ दी जा रही है. हमारा दो महीने का बच्चा मर गया अब हम नहीं सुनेंगे मंत्रालय में जाएगे. हमारे पास सभी प्रूफ है. हमारा सामान पुलिसवालों ने जलाया है. 

सुखाग्रस्त इलाके से आए यह लोग पिछले 20-30 सालों से यहां पर सुखे के दिनो में आते है. अमर महल ब्रिज के नीचे ही अपना घर बसाते है. उस्मानाबाद की निवासी सुनीता दो दिन पहले के घटना के बाद बहुत आहत है. यहां पर जो 80-90 लोग रहते है उसमे से पुरुष ज्दातर दिहाड़ी का काम करते है. मारुती ने बताया की हम दिहाड़ी करते है सिवरेज, पाईपलाईन, गटर मे उतरते है, गांव मे कुठ नहीं बचा. हमारी बकरियां थी. पानी नहीं बचा इसलिए हमने बकरियां बेची और मुंबई आ गए. हमारे पास सभी कागजात है लेकीन पुलिसवालो नें तो यहां से भगाने के चक्कर में हमारा सामान जला दिया.

वहीं दो महीनें के बच्चे दर्दनाक मौत की घटना के बाद ब्रिज के नीचे सन्नाटा है. घटना के बाद इन सभी को यहां से भगाया गया था. इन लोगों का कहना है की पुलिसवालों ने रात को कहा की आप लोग रास्ते पर कहीं पर भी रह सकते है लेकिन ब्रिज के नीचे नही रह सकते. लेकिन सुबह यह जो सामान बचा था हम वह लेकर फिर से ब्रिज के नीचे आ गए है. अब हमें फिर से डर है की पुलिस कभी भी आ सकती है और उन्हें फिर से भागना पड़ सकता है, लेकिन हमारा दर्द सुनने वाला कोई नहीं है.

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