208 शिक्षाविदों ने PM मोदी को लिखी चिठ्ठी, कहा- शिक्षण संस्थानों को वामपंथी कर रहे हैं बर्बाद
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208 शिक्षाविदों ने PM मोदी को लिखी चिठ्ठी, कहा- शिक्षण संस्थानों को वामपंथी कर रहे हैं बर्बाद

देश की अलग-अलग यूनिवर्सिटी के कुलपतियों समेत 208 शिक्षाविदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है. इस चिट्ठी में उन्होंने वामपंथी संगठनों पर कैंपस में हिंसा फैलाने का आरोप लगाया है.

208 शिक्षाविदों ने आरोप लगाया है कि, लेफ्ट विंग कम उम्र के छात्रों को वैचारिक रूप से प्रभावित कर रहे हैं..फाइल फोटो.

नई दिल्ली: देश की अलग-अलग यूनिवर्सिटी के कुलपतियों समेत 208 शिक्षाविदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है. इस चिट्ठी में उन्होंने वामपंथी संगठनों पर कैंपस में हिंसा फैलाने का आरोप लगाया है. इस चिट्ठी का शीर्षक "शिक्षण संस्थानों में लेफ्ट विंग की अराजकता के खिलाफ बयान' है. इस चिट्ठी में लिखा गया है कि लेफ्ट विंग एक्टिविस्ट्स की गतिविधियों की वजह से कैंपस में पढ़ाई-लिखाई में रुकावट आती है इससे यूनिवर्सिटी का माहौल खराब हो रहा है. 208 शिक्षाविदों ने आरोप लगाया है कि, लेफ्ट विंग कम उम्र के छात्रों को वैचारिक रूप से प्रभावित कर रहे हैं जिससे नए छात्र पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान नहीं दे पाते हैं.

पीएम मोदी को ये पत्र शनिवार को लिखा गया है. चिट्ठी में शिक्षाविदों ने लिखा कि हाल ही में जेएनयू से जामिया, एएमयू से जादवपुर तक का घटनाक्रम हमें चेतावनी दे रहा है कि लेफ्ट विंग के एक्टिविस्ट शिक्षण का माहौल खराब कर रहे हैं. लेफ्ट की राजनीति के चलते सार्वजनिक तौर पर बातचीत और स्वतंत्रतापूर्वक बयान देना मुश्किल हो गया है.

धरना, आंदोलन किसी खास लोगों को निशाना बनाना इन लेफ़्ट एक्टिविस्ट का आम तरीका बन गया है. लेफ्ट की विचारधारा को न अपनाने पर सार्वजनिक तौर पर दोषारोपण और प्रताड़ना अब अपने चरम पर पहुंच गई है. चिठ्ठी में आरोप लगाया गया है कि इस तरह की राजनीति का सबसे बुरा असर बच्चों , छात्रों पर पड़ रहा है जो गरीब परिवेश से हैं और अधिकारहीन समुदायों से ताल्लुक रखते हैं.

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इस तरह के छात्र शिक्षा हासिल करने और बेहतर भविष्य बनाने का मौका खो रहे हैं. ऐसे छात्र अपना नजरिया रखने की आजादी और वैकल्पिक राजनीति का मौका भी खो रहे हैं. ये छात्र लेफ्ट राजनीतिज्ञों की बात स्वीकार करने के लिए मजबूर हैं. शिक्षकों और कुलपतियों ने अपील करते हुए कहा कि, ऐसे मौके पर लोकतांत्रिक ताकतों को राजनीति छोड़ साथ आने और खड़े होने की जरुरत है. जिससे शैक्षणिक, वैचारिक स्वतंत्रता और बोलने की आजादी के लिए मिलकर लड़ा जा सके. 

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