सोमवार को 38वें दिन की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन (Rajiv Dhawan) से सवाल पूछा कि बाहरी चबूतरे पर हिंदुओं के कब्जे को लेकर उनका क्या कहना है
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नई दिल्ली: अयोध्या केस (Ayodhya Case) में तय शेड्यूल के मुताबिक आज 38वें दिन की सुनवाई (hearing) में मुस्लिम पक्ष (Muslim Side) को अपनी बात रखने का अंतिम मौका मिला. इसके बाद मंगलवार और बुधवार को हिंदू पक्ष (Hindu Side) को जवाब देने का आखिरी मौका मिलेगा. इसके बाद 17 अक्टूबर को सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया जाएगा. अयोध्या मामले (Ayodhya Case) में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यूपी सरकार (UP Government) को निर्देश दिया है कि वो यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड (UP Sunni Waqf Board) के चेयरमैन जफर अहमद को सुरक्षा मुहैया कराए. दरअसल, यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ने मध्यस्थता पैनल के सदस्य श्रीराम पंचू को अपनी जान का खतरा बताया था. उधर, सोमवार को 38वें दिन की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन (Rajiv Dhawan) से सवाल पूछा कि बाहरी चबूतरे पर हिंदुओं के कब्जे को लेकर उनका क्या कहना है. दस्तावेज वहां पर 1885 से रामचबूतरे (Ram Chabootara) पर हिंदुओं द्वारा पूजा किए जाने की पुष्टि करते हैं. क्या यह मुस्लिम पक्ष के दावे को कमज़ोर नहीं करता. धवन (Dhawan) ने जवाब दिया कि नहीं, इससे मुस्लिम पक्ष (Muslim Side) का मालिकाना दावा कमजोर नहीं होता. हिंदू (Hindu) सिर्फ रामचबूतरे पर पूजा करते रहे हैं, वो भी मुस्लिम (Muslim) पक्ष की इजाजत से. जमीन पर मालिकाना हक को लेकर तब हिंदू पक्ष ने दावा पेश नहीं किया था.
धवन (Dhawan) ने आगे कहा कि मैंने नोटिस (notice) किया है कि सुनवाई (hearing) के दौरान बेंच (bench) के सारे सवाल मुस्लिम पक्ष (Muslim Side) से ही हो रहे हैं. हिंदू पक्ष (Hindu Side) से कोई सवाल नहीं पूछा गया. रामलला (Ramlala) के वकील सीएस वैद्यनाथन ने इस पर ऐतराज जाहिर करते कहा कि ये गलत और बेबुनियाद बात है. धवन (Dhawan) ने कहा कि मैं कोई बेबुनियाद बात नहीं कह रहा हूं. मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं बेंच के सारे सवालों के जवाब दूं पर सारे सवाल मुस्लिम पक्ष से ही क्यों हो रहे हैं? राजीव धवन ने कहा कि बाबर ने शाही कोष से मस्जिद की देखभाल के लिए अनुदान तय किया था और ये अंग्रेजों के समय भी जारी रहा था. मुसलमानों ने कभी मस्जिद (Masjid) को नहीं छोड़ा था. हिंदुओं व सिखों ने कई बार कब्जे की कोशिश की थी. 1992 में इमारत गिर जाने से स्थिति नहीं बदली थी और पूजा का अधिकार (Right to worship) मांगने वाले मालिकाना हक (Ownership) नहीं मांग सकते थे.
राजीव धवन (Rajiv Dhawan) ने कहा कि आप बाबर (Babar) के काम का फैसला किस कानून के हिसाब से करेंगे. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) दोबारा इतिहास नहीं लिख सकता. तब बाबर (Babar) शासक था. समय-समय पर युद्ध हुए. सम्राट अशोक (Emperor Ashoka) ने भी युद्ध लड़े. क्या मस्जिद (Masjid) बनाने के चलते बाबर के शासन (Babar's rule) को अवैध कहा जाएगा? आपको यह भी बता दें कि राजीव धवन (Rajiv Dhawan) ने अयोध्या सुनवाई (Ayodhya Hearing) के दौरान औरंगजेब (Aurangzeb) को सबसे उदार शासकों में से एक बताया. धवन (Dhawan) ने कहा कि हिंदुओं को इस्लामिक नियमों की सीमित समझ है. एक बार बनी मस्जिद (Masjid) किसी को नहीं दी जा सकती. खुदाई में कुछ अवशेष मिलने से मस्जिद हट नहीं सकती. हिंदू (Hindu) इसी तरह 500 मस्जिदों के नीचे खुदाई करवाना चाहते हैं.
इससे पहले सोमवार को सुनवाई (hearing) शुरू होते ही पूजा के अधिकार की अर्जी देने वाले सुब्रमण्यम स्वामी (Subramanyam Swami) को आगे बैठा देख मुस्लिम पक्ष (Muslim Side) के वकील राजीव धवन (Rajiv Dhawan) ने विरोध किया. धवन ने कहा कि यह जगह वकीलों की है और यहां किसी और को बैठने का अधिकार नहीं है. अपने केस (case) की खुद पैरवी करने वाले स्वामी (Swami) आगे बैठते रहे हैं. राफेल केस में अरुण शौरी आगे बैठे थे. पुरातत्व एक विज्ञान है. ये कोई विचार नहीं है. पुरातत्व विभाग का जो नोट सबूत के तौर पर कोर्ट ने स्वीकार किया, उसे कोर्ट द्वारा परखा जाना और ASI द्वारा उसकी सत्यता साबित किया जाना जरूरी है. इसे मुस्लिम पक्षकारों ने नकारा है. ब्रिटिश सरकार ने मस्जिद के रखरखाव के लिए 1854 से ग्रांट देना शुरू किया था. ये हमारे मालिकाना हक को दर्शाता है. यहां तक कि 1854 से 1989 तक किसी भी हिन्दू पक्षकार ने विवादित जमीन पर अपने मालिकाना हक का दावा कोर्ट में नहीं किया. मुख्य मांग यह थी कि मस्जिद का उपयोग नहीं किया जाए. लेकिन मस्जिद पर अवैध कब्जा किया गया और उसके बावजूद उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. धवन ने अवैध कब्जे पर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया. परंपरा और आस्था कोई दिमाग का खेल नहीं है. इन्हें अपने मुताबिक नहीं ढाला जा सकता है.
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जस्टिस चंद्रचूड़ के सवाल पर जवाब देते हुए धवन ने कहा कि 1886 के रिकॉर्ड यह साफ करते हैं कि भूमि किसकी है. प्वाइंट ये है कि इसमें हमारा अधिकार है. जब हिन्दुओं की ओर से अधिकार का सवाल 1886 में उठाया गया तब मजिस्ट्रेट ने वह सिविल सूट खारिज कर दिया. लेकिन रेस ज्यूडी काटा होने के बाद फिर अवैध कब्जे के बाद दावा किया गया. धवन ने कहा कि हिन्दू पक्ष के पास कोई मालिकाना हक का दस्तावेज नहीं है और ना ही था. यह वक्फ की संपत्ति अंग्रेजों के समय से है और हिन्दुओं ने जबरन अवैध कब्जा किया. धवन ने कहा कि क्यों उन्हें पूजा का और सेवादार होने का अधिकार दिया गया जबकि उनके पास मालिकाना हक नहीं था. जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ ने राजीव धवन से हिंदुओं के बाहरी अहाते पर कब्ज़े के बारे में पूछा. जस्टिस चन्द्रचूड़ ने कहा कि 1858 के बाद के दस्तावेजों से पता चलता है कि राम चबूतरा की स्थापना की गई थी, उनके पास अधिकार था. राजीव धवन ने कहा कि दिलचस्प बात ये है कि इस केस की सुनवाई के दौरान सभी सवाल हमसे ही किये जाते हैं. कभी हिन्दू पक्ष से सवाल नहीं किया जाता, सुनवाई के दौरान यह बहुत विचित्र बात हुई है.
मुस्लिम पक्ष के वकील धवन ने कहा कि विवादित ज़मीन पर लगातार हमारा कब्जा रहा है. हिंदू पक्ष ने बहुत देर से दावा किया. 1989 से पहले हिंदू पक्ष ने कभी जमीन पर मालिकाना दावा पेश नहीं किया. 1986 में राम चबूतरे पर मंदिर बनाने की महंत धर्मदास की मांग को फैज़ाबाद कोर्ट खारिज कर चुका है. जस्टिस बोबडे और जस्टिस चन्द्रचूड़ ने कहा कि क्या मुसलमानों का एकमात्र अधिकार होने का दावा करना उनकी दलील को हल्का नहीं करेगा जबकि हिंदुओं को बाहरी आंगन में प्रवेश करने का अधिकार था. धवन ने कहा कि इससे उन्हें अधिकार तो नहीं मिलता. जस्टिस चन्द्रचूड़ ने कहा कि कई दस्तावेज़ हैं जो दिखाते हैं कि वह बाहरी आंगन में रहते थे. धवन ने कहा कि यह दिखाने के लिए उनके पास कोई सबूत नहीं है कि हिंदू बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि के मालिक हैं. भूमि के उपयोग के अलावा कोई अधिकार हिंदुओं को नहीं दिया गया था. उन्हें पूर्वी दरवाजे में प्रवेश करने और प्रार्थना करने का अधिकार दिया गया था और इससे ज्यादा कुछ नहीं था. धवन ने कहा कि एक भी ऐसा दस्तवेज़ नहीं है जो साबित करता हो कि हिंदुओं का वहां पर पहले कब्ज़ा रहा हो. हमने 6 दिसंबर 1992 को ढांचा गिराए जाने के बाद अपनी मांग बदली और हमारी यही मांग है कि हमें 5 दिसंबर 1992 की स्थिति में जिस तरह का ढ़ांचा था उसी स्थिति में हमें मस्जिद सौंपी जाए.
(इनपुट: सुमित कुमार)