ZEE जानकारी : इराक में अगवा किए गए 39 भारतीय मारे गए
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ZEE जानकारी : इराक में अगवा किए गए 39 भारतीय मारे गए

पिछले 4 वर्षों से मोसुल में लापता 39 भारतीय नागरिकों का सच आखिरकार देश के सामने आ गया है. और आज ये कहते हुए बहुत पीड़ा हो रही है, कि इनमें से एक भी हिन्दुस्तानी नागरिक जीवित नहीं बचा. आतंकवादी संगठन ISIS ने बड़ी बेरहमी से इन सभी का क़त्ल कर दिया. 

ZEE जानकारी : इराक में अगवा किए गए 39 भारतीय मारे गए

आज एक ऐसी ख़बर आई है जो शायद ना आती तो ज़्यादा अच्छा होता. पिछले 4 वर्षों से मोसुल में लापता 39 भारतीय नागरिकों का सच आखिरकार देश के सामने आ गया है. और आज ये कहते हुए बहुत पीड़ा हो रही है, कि इनमें से एक भी हिन्दुस्तानी नागरिक जीवित नहीं बचा. आतंकवादी संगठन ISIS ने बड़ी बेरहमी से इन सभी का क़त्ल कर दिया. इसे आप सामूहिक नरसंहार भी कह सकते हैं. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आज देश को ये दुखद जानकारी दी है. ये पूरा घटनाक्रम कब और कैसे हुआ, इसके बारे में हम विस्तार से आपको बताएंगे. साथ ही आपको ये भी बताएंगे, कि कैसे ISIS के आतंकवादियों ने भारत के सभी 39 नागरिकों की निर्मम हत्या की. 

हत्या से पहले इन लोगों से उनकी नागरिकता के बारे में पूछा गया था और फिर नाम और धर्म के आधार पर इन्हें बांग्लादेशी बंधकों से अलग कर दिया गया. इसके बाद बादुश नामक इलाके में उन्हें मारकर, कई फीट ज़मीन के नीचे गाड़ दिया गया. मारे गये 39 भारतीय नागरिकों का एक साथी अपना नाम बदलकर किसी तरह मोसुल से भागने में कामयाब हो गया था. उसने अपना नाम हरजीत से बदलकर अली रख लिया था. और इसी आधार पर किसी तरह उसकी जान बची. यानी इसका मतलब ये हुआ कि ये हत्याएं धर्म के आधार पर की गईं.

आज इस पूरे घटनाक्रम के Flash Back में जाकर ये समझना भी ज़रुरी है, कि क्या आतंकवाद का कोई धर्म होता है ? अगर ISIS के आतंकियों ने वर्ष 2014 में मोसुल पर कब्ज़े के बाद बांग्लादेश के नागरिकों को छोड़ दिया था, तो फिर वो भारत के नागरिकों को भी छोड़ सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वो नागरिक, हिन्दुस्तानी थे. 

इस पूरे मामले की तह तक जाने से पहले, अपने देश की बात करना ज़रुरी है. क्योंकि, ये बहुत शर्म की बात है, कि इतनी महत्वपूर्ण और दुखदायी ख़बर होने के बावजूद, हमारे देश के कुछ नेताओं ने ओछी राजनीति करके, मृतकों के परिवारों की संवेदनाओं को कुचलने का काम किया. 

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आज सबसे पहले राज्यसभा में अपने संबोधन के दौरान देश को बताया, कि मोसुल में मारे गए भारतीय नागरिकों की पहचान हो गई है. अपना संबोधन ख़त्म करने से पहले उन्होंने 39 भारतीय नागरिकों की आत्मा की शांति के लिए सदन से दो मिनट का मौन रखने की अपील की. लेकिन इसके बाद सदन में हंगामा शुरु हो गया. हालांकि, थोड़ी देर के हंगामे के बाद सदन ने उनकी याद में 2 मिनट का मौन रखा. लेकिन इसके बाद सुषमा स्वराज जब लोकसभा पहुंची, तो अविश्वास प्रस्ताव के हंगामे के बीच, किसी ने उन्हें अपना संबोधन पूरा नहीं करने दिया. 

बाद में विदेश मंत्री ने एक Press Conference की और कहा कि कांग्रेस पार्टी इतने संवेदनशील विषय पर भी ओछी राजनीति कर रही है. उन्होंने ये आरोप भी लगाया, कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जानबूझकर लोकसभा में हंगामे की ज़िम्मेदारी ज्योतिरादित्य सिंधिया को दी थी. यानी एक ऐसा दिन, जब पूरे देश में शोक की लहर है, उस दिन भी हमारे देश की राजनीति, मानवीय संवेदनाओं पर हावी हो गई.

राजनीति करने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन, जब आप जानते हैं, कि भारत के 39 नागरिकों की दुखद मौत की ख़बर आई है और उस दौरान भी आप राजनीति चमकाने की कोशिश करते हैं, तो माफ कीजिएगा, उसे राजनीति नहीं, संवेदनहीनता ही कहेंगे. खैर, अब हम राजनीति की नहीं, बल्कि उस हकीकत की बात करेंगे, जिसकी तलाश पिछले 4 वर्षों से हो रही थी. 

अमेरिका के 35वें राष्ट्रपति John F. Kennedy ने कहा था...कि खुद से ये मत पूछिए...कि आपका देश आपके लिए क्या कर सकता है...बल्कि ये पूछिए कि आप अपने देश के लिए क्या कर सकते हैं. देश तब आपके काम आता है, जब आपका कोई सहारा नहीं बचता. कई बार देश किसी के लिए उम्मीद की आखिरी रोशनी साबित होता है. 15 जून 2014 को, जब इराक के मोसुल शहर में 39 भारतीय मजदूरों को बंधक बनाने की ख़बर आई थी, उस वक्त उनकी वापसी की इकलौती उम्मीद उनका देश भारत ही था. पिछले 4 वर्षों के दौरान उन सभी नागरिकों के घरवालों ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से कई बार मुलाकात भी की थी. हर बार विदेश मंत्रालय की तरफ से उन्हें ये भरोसा दिलाया गया, कि सबूतों और तथ्यों के आधार पर देश को ये जानकारी दी जाएगी, कि उन सभी नागरिकों का क्या हुआ ? वो जीवित हैं या मारे गए ? क्योंकि, आधी-अधूरी जानकारी के साथ देश के सामने कोई भी बात रखना, किसी भी सरकार के लिए उचित नहीं होता. 

जिस वक्त इराक में हालात बहुत ज़्यादा खराब थे और मोसुल और आसपास के इलाक़ों में ISIS का कब्ज़ा था, उस वक्त इन भारतीय लोगों से संबंधित जानकारी हासिल करना संभव नहीं था. लेकिन जैसे ही 2017 में इराकी सेना ने मोसुल को ISIS के आतंकवादियों से आज़ाद करवाया, भारत सरकार ने युद्ध स्तर पर 39 नागरिकों की खोज शुरु कर दी. इसके लिए विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह को मोसुल भेजा गया. जहां उन्होंने, इराक में भारत के राजदूत और इराकी अफसरों के साथ मिलकर, तथ्यों की पड़ताल की. और फिर जो सच सामने आया, वो आज पूरे देश को ध्यान से सुनना चाहिए. 

आज इस पूरे घटनाक्रम के Flash Back में जाना भी ज़रुरी है. ताकि आप ये समझ सकें, ये सच बाहर आने में इतना वक्त क्यों लग गया ? जून 2014 को 30 लाख की आबादी वाले मोसुल शहर पर ISIS के आतंकवादियों ने कब्ज़ा कर लिया था. शुरुआत में ISIS के सिर्फ 1300 आतंकवादियों ने लड़ाई शुरू की थी. लेकिन कुछ ही महीनों के अंदर आतंकवादियों की संख्या हज़ारों में पहुंच गई. सितंबर 2014 तक मोसुल शहर में ISIS के क़रीब 31 हज़ार आतंकवादी घुस चुके थे. उस वक्त इराक की सेना के मुकाबले मोसुल में, आतंकवादियों की संख्या का अनुपात 8 के मुक़ाबले एक का था. इराकी सैनिकों की संख्या... आतंकवादियों के मुकाबले 8 गुना ज़्यादा थी. लेकिन इसके बावजूद इराकी सेना हार गई थी.

2014 में जब मोसुल पर ISIS का कब्ज़ा हुआ, तो इसे आतंकवादियों ने अपनी सबसे बड़ी सफलता माना था. ISIS के प्रमुख अबु बक्र अल बगदादी ने मोसुल की ही, अल-नूरी मस्जिद से खुद को खलीफा घोषित किया था. इस शहर को आज़ाद करवाने के लिए दो बड़ी लड़ाइयां हुईं. सुरक्षाबलों के जवानों ने इस शहर के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से से आतंकवादियों के खिलाफ युद्ध शुरू किया. इराकी और कुर्दिश सैनिकों को अमेरिका का भी पूरा समर्थन मिल रहा था. मार्च 2017 से आतंकवादियों के खिलाफ ये लड़ाई और तेज़ हुई. और फिर अगले 4 महीनों में ISIS के आतंकवादियों पर 56 बार Air Strikes की गईं. अप्रैल के आखिर तक इराकी फौज ने मोसुल के एक बड़े हिस्से पर वापस कब्ज़ा कर लिया था. और ISIS के आतंकवादी सिर्फ शहर के पुराने हिस्से में ही मौजूद थे. लेकिन वहां भी हज़ारों आम नागरिक फंसे हुए थे. यही वजह है कि पूरे मोसुल पर दोबारा कब्ज़ा पाने में बहुत से आम नागरिक भी मारे गए. 9 महीने की लड़ाई के बाद इराकी सेना ने मोसुल पर दोबारा कब्ज़ा कर लिया.

लेकिन, मोसुल से उत्तर-पश्चिम की दिशा में 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित Badush में ISIS के आतंकवादियों ने जैसा नरसंहार किया, उसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते. यहां आपको एक बार फिर से बता दें, कि Badush वही इलाका है, जहां से 39 भारतीयों के शव मिले हैं. और ये भी कहा जा रहा है, कि उनकी हत्या करने से पहले आतंकियों ने उन्हें Badush की जेल में क़ैद करके रखा था.

ईराक के Rudaw Media Network ने 8 मार्च 2017 को एक लेख छापा था. जिसमें विस्तार से जानकारी दी गई थी, कि कैसे ISIS ने आम लोगों की निर्मम हत्या की. जिस दिन ISIS ने इस जेल पर कब्ज़ा किया था, उससे एक रात पहले, जेल के Guards मारे जाने के डर से वहां से भाग गए थे. हालांकि, भागने से पहले उन्होंने जेल के दरवाज़ों को Lock कर दिया था. ताकि कोई क़ैदी वहां से भाग ना सके. बाद में ISIS ने जेल को अपने कब्ज़े में कर लिया, इस दौरान कई लोग भागने में कामयाब हो गए, लेकिन जो नहीं भाग पाए, वो मारे गए. 

इसके बाद ISIS के आतंकी क़रीब डेढ़ हज़ार क़ैदियों को Badush से ट्रक में लादकर किसी दूसरे स्थान पर ले गए. जहां उन्होंने सुन्नी मुसलमानों को दूसरे बंधकों से अलग कर दिया. और बाद में आतंकियों ने Badush जेल के 670 लोगों की एक साथ हत्या कर दी थी. जिनमें से ज़्यादातर शिया, कुर्द, यज़ीदी और दूसरे धर्मों से ताल्लुक रखते थे. ध्यान देने वाली बात ये है, कि ISIS के आतंकवादियों ने हत्या करने से पहले लोगों से उनका धर्म पूछा था. मार्च 2017 में इसी Badush जेल से 500 लोगों की सामूहिक कब्र मिली थी.

यानी जेल में क़ैदियों की हत्या करने के बाद ISIS के आतंकवादियों ने कुछ लोगों को जेल के Compound में ही दफ्न कर दिया. और कुछ लोगों को Badush के आस-पास मौजूद इलाकों में दफ्न किया गया. हो सकता है, कि उन्हीं लोगों में 39 भारतीय नागरिक भी शामिल हों. इसलिए, आज हमने तस्वीरों और बयानों के आधार पर इस पूरे घटनाक्रम को Decode करने की कोशिश की है. 

39 भारतीयों की हत्या ISIS के आतंकवादियों ने की और इन आतंकवादियों का सरगना अल बगदादी भी भारतीयों की हत्या का ज़िम्मेदार है.. उसने वर्ष 2014 में मोसुल की एक मस्ज़िद से भाषण देकर खुद को खलीफा घोषित किया था . 

मज़हबी कट्टरपंथ ही ISIS की सबसे बड़ी नीति है. लेकिन इस कट्टरवाद की असली वजह क्या है? आज हमने इस पर भी काफी Research किया है . इतिहास में कई ऐसी घटनाएं मिलती हैं जिनसे ये पता चलता है कि किस तरह बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया गया और निर्दोष लोगों का कत्ल कर दिया गया. ये कत्ले-आम.. यूरोप और पश्चिमी एशिया से लेकर भारत तक हो रहा था.

इस कत्लेआम के पीछे की विचारधारा को Expose करने वाली एक किताब आज हमारे पास है . इस किताब का नाम है आदि तुर्क कालीन भारत... इस किताब के पेज नंबर 153 और 154 पर 13वीं शताब्दी के इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी के विचार लिखे हुए हैं . ज़ियाउद्दीन बरनी के नाना हुसामुद्दीन, गुलाम वंश के सुल्तान गयासुद्दीन बलबन के सहयोगी और सिपेह-सालार थे . ये वो इतिहासकार हैं जो इस्लाम के भी विद्वान थे . इस तरह के विद्वानों और इतिहासकारों की बातों का बादशाहों और सुल्तानों पर भी गहरा असर होता था . 

ये एक प्रामाणिक किताब है इस पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मुहर है . किसी विषय पर प्रामाणिक किताबें हमेशा बहुत कम होती हैं . और हमने हमेशा आपके सामने प्रामाणिक किताबों का अध्ययन करने के बाद ही इतिहास को प्रस्तुत किया है . ताकि आप सही और गलत के फर्क को अच्छी तरह समझ सकें . 

इस किताब के पेज नंबर 153 और 154 पर ज़ियाउद्दीन बरनी के विचार दर्ज हैं . मैं इन विचारों को पढ़कर सुनाता हूं

यदि शिर्क और कुफ्र जड़ पकड़ गए हों और सभी काफ़िरों और मुशरिकों को पूर्णतया उखाड़ फेंकना संभव नहीं हो तो कम से कम ये तो होना ही चाहिए कि इस्लाम के कारण और दीन पनाही के लिए मुशरिक और बुतपरस्त हिंदुओँ को अपमानित, कलंकित और तुच्छ बनाने का विशेष प्रयत्न करते रहें क्योंकि वो खुदा और रसूल के घोर शत्रु हैं . बादशाहों की दीन पनाही का सबसे बड़ा चिन्ह यह है कि वो जब किसी हिंदू को देखें तो उनका मुंह लाल हो जाए और अच्छा हो कि उसको जीवित नष्ट कर दें . ब्राह्मणों का जो कि कुफ्र के इमाम (नेता) हैं और जिनके कारण कुफ्र और शिर्क फैलता है और कुफ्र की आज्ञाओं का पालन कराया जाता है, समूल उच्छेदन कर दिया जाए . इस्लाम के सम्मान और दीने हकीकी (सच्चे धर्म) के सम्मान के लिए ये आवश्यक है कि किसी काफिर और मुशरिक को आदर पूर्वक जीवन व्यतीत ना करने दिया जाए और मुसमलानों के बीच में उसका अपमान और तिरस्कार होता रहे . उसे संतोष, इत्मिनान और चैन का जीवन प्राप्त नहीं हो . मुशरिकों और बुतपरस्तों को किसी कौम, समूह, विलायत और अक्ता का हाक़िम नहीं बनाया जाए . इस्लामी बादशाह के ऐश्वर्य और वैभव के कारण खुदा और रसूल के शत्रुओं में से एक भी निश्चिन्तिता से पानी तक ना पी सके और ना संतोष की शय्या पर पैर फैला कर सो सके . 

आज हमने इस इतिहास का एक बहुत संक्षिप्त हिस्सा आपके साथ शेयर किया है. लेकिन ये हिस्सा भी ये समझने के लिए काफी है कि किस तरह पूरी दुनिया में मज़हबी कट्टरपंथ के विचारों का पालन पोषण किया गया. और यही वजह है कि आज भी मज़हब के नाम पर नरसंहार किए जाते हैं और निर्दोष लोगों का खून बहाया जाता है.

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