इस सरकारी स्कूल में एडमिशन के लिए वेटिंग लिस्ट में हैं 4 हजार बच्चे, खासियत जानकर रह जाएंगे दंग
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इस सरकारी स्कूल में एडमिशन के लिए वेटिंग लिस्ट में हैं 4 हजार बच्चे, खासियत जानकर रह जाएंगे दंग

महाराष्ट्र में सरकारी जिला परिषद स्कूलों में छात्रों की संख्या घट रही है. ग्रामीण इलाकों में भी अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में एडमिशन दिलाना चाहते हैं. लेकिन पुणे जिले के वाबलेवाडी का जिला परिषद स्कूल इनसे अलग है.

एडमिशन के लिए वेटिंग लिस्ट में हैं 4 हजार बच्चे

पुणे: महाराष्ट्र में सरकारी जिला परिषद स्कूलों में छात्रों की संख्या घट रही है. ग्रामीण इलाकों में भी अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में एडमिशन दिलाना चाहते हैं. लेकिन पुणे जिले के वाबलेवाडी का जिला परिषद स्कूल इनसे अलग है. इस स्कूल में एडमिशन के लिए 4 हजार बच्चे वेटिंग लिस्ट पर हैं. स्कूल के मॉडल को अपने राज्य में लाने के लिए अधिकारी इस स्कूल का दौरा करते रहते हैं.

भारत की पहली और विश्व का तीसरा जीरो एनर्जी स्कूल पुणे के शिरुर तहसील के वाबलेवाडी में बना है. वाबलेवाडी का यह जिला परिषद स्कूल देशभर के लिए एक आदर्श मॉडल स्कूल बन गया है. महाराष्ट्र का पहला टैबलेट स्कूल बनाने का सम्मान इसी स्कूल को प्राप्त हुआ था. इसमें वाबलेवाडी गांव के ग्रामीणों का भी योगदान है. इसके निर्माण के लिए आर्ट ऑफ लिविंग और बैंक ऑफ न्यूयॉर्क का सहयोग मिला था.

वाबलेवाडी का यह स्कूल देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं. रिटायर्ड विशेषज्ञ-प्रोफेसर, वैज्ञानिक यहां छात्रों को मार्गदर्शन देने आते हैं. इसके लिए वह कोई फीस नहीं लेते हैं. इस जिला परिषद स्कूल के लिए अगले चार साल तक के एडमीशन फुल हैं. तकरीबन 4 हजार छात्र वेटिंग लिस्ट पर हैं. साथ ही स्कूल की शिक्षा प्रणाली, स्कूल टेक्नालॉजी देखने बाहरी राज्य से शिक्षा अधिकारी आते हैं और अब वह अपने राज्य में भी एनर्जी स्कूल मॉडल का निर्माण करना चाहते हैं.

इस स्कूल के शिक्षक एकनाथ खैरे ने कहा कि, जापान में आई सुनामी के वक्त इसी जीरो एनर्जी स्ट्रक्चर को अपनाया गया था. इसी जीरो एनर्जी टेक्नोलॉजी पर यह स्कूल बना है, इसमें टफन ग्लास और पॉली कार्बन का इस्तेमाल किया गया है. 150 साल तक इसके क्लास रुम को कुछ नहीं होगा, इसमें ऐसा निर्माण कार्य रहता है, बैंक ऑफ न्यूयॉर्क की मदद से इसे बनाया गया है. 

प्रिंसिपल दत्तात्रेय वारे बताते हैं कि 2012 में ये 2 क्लासरूम, 2 टीचर और 32 छात्रों का स्कूल था. अब यह स्कूल इंटरनेशनल स्कूल में तब्दील हुआ है. वह भी जीरो एनर्जी स्कूल बना है. अब पहली कक्षा से 9वीं कक्षा तक यहां 600 छात्र शिक्षा लेते हैं. 400 से अधिक छात्र वेटिंग लिस्ट पर हैं. हम इस स्कूल को 12वीं तक विस्तारित करना चाहते हैं. 

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यहां विजिट करने आई छत्तीसगढ़ की जसपुर की जिला शिक्षा अधिकारी एन कुजूर बताती हैं कि, इस जीरो एनर्जी स्कूल मॉडल को देखेने के लिए हम यहां आए हैं. वर्कशॉप के जरिए हमें जीरो एनर्जी स्कूल के बारे में जानकारी दी गई. हम यहां विजिट के लिए आए हैं. यहां के स्कूल का मॉडल देखकर उसे हमारे यहां लागू किया जाए, ऐसा हमारा प्रयास है.

छात्र आशितोष वाघ ने बताया, 'मैं यहां 6वीं कक्षा में पढ़ता हूं. यहां आविष्कार लैब है. इनोवेटिव सायन्स सेंटर है. टैब रुम है. लायब्रेरी है. हमारे यहां छात्र को पढ़ाई के लिए ज्यादा प्रेशर नहीं दिया जाता है. बच्चे एक्टिविटी के जरिए सीखते हैं. प्रैक्टिकल लर्निंग दी जाती है. पढ़ाई सिर्फ ब्लैक बोर्ड और क्लास रुम में नही है. इनोवेटिव सायन्स सेंटर में हम कई इनोवेटिव प्रयोग कर रहे हैं. हमारे स्कूल का डेफिनेशन है कि छात्रों ने छात्रों के लिए चलाया स्कूल. इसमें हमारे ग्रामीणों का भी योगदान है.

वाबलेवाडी के इस जीरो एनर्जी स्कूल का एक क्लासरुम 22 फीट चौड़ा और 22 फीट लंबा, 24 फीट ऊंचा है. क्लास रूम पूरी तरह कांच के बने हुए हैं. इसमें टफन ग्लास का इस्तेमाल किया गया है. छत पर सोलर पैनल लगाया गया है. लाइट, फैन की जरूरत नहीं होती है. स्लायडिंग विंडो रहती है. 

लाइट के लिए सोलर एनर्जी का इस्तेमाल किया जाता है. कंप्यूटर, टैब, टीवी चलाने के लिए सोलर एनर्जी का इस्तेमाल होता है. जिससे प्रकाश सीधे क्लासरुम तक पहुंचता है. इस क्लास रुम में हवा भी खूब आती है. जीरो एनर्जी स्कूल के स्ट्रक्चर को बार-बार मरम्मत की आवश्यकता नहीं होती है. 

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