यूपी में बीजेपी की जीत के ये हैं मुख्य कारण
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यूपी में बीजेपी की जीत के ये हैं मुख्य कारण

यूपी में बीजेपी की जीत के ये हैं मुख्य कारण  (फाइल फोटो)

नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में बीजेपी की राज्य की सत्ता में लंबे वनवास के बाद वापसी हुई है. यहां तीन चौथाई बहुमत के साथ बीजेपी ने 15 साल बाद सत्ता में वापसी की। उसे 312 सीटें मिलीं। 37 साल बाद ऐसा हुआ जब इस राज्य में किसी पार्टी को 300+ सीटें मिलीं. हम आपको बताते हैं कि बीजेपी की सत्ता में वापसी के क्या रहे मुख्य कारण.

विकास के नाम पर वोट
2012 के यूपी विधानसभा चुनावों में जब बीजेपी मैदान में उतरी थी तो उस समय आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी के  नेतृत्व में उमा भारती को सीएम कैंडिडेट घोषित किया गया था. केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम थे जैसे कि मायावती उस समय यूपी की सीएम थी. लेकिन दो साल बाद के लोकसभा चुनावों में तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी थी, अब विकास के वादे को सच कर दिखाने का मागदा रखने वाले मोदी पीएम बनने जा रहे थे, यूपी की जो जरूरत थी वही देश की भी जरूरत थी लोगों उनमें विश्वास देखा और यूपी में बीजेपी के सबसे ज्यादा सीटें मिली.

लेकिन राज्य की सत्ता में सपा का शासन था और यूपी के लोग मोदी के जादू से खुद को अछूता मान रहे थे. लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों में यूपी की जनता ने मोदी पर विश्वास किया और उन्हें प्रचंड बहुमत दिया. यूपी के लोगों को ये विश्वास है कि अब केंद्र या किसी अन्य बीजेपी शासित राज्य की कथनी सुननी नहीं है खुद के राज्य में  क्या विकास होता ये देखना है? क्योंकि यूपी में बीजेपी द्वारा किया गया कार्य उनके की केंद्र की सरकार के लिए 2019 के लोकसभा कि दशा और दिशा तय करेगा.

जीतने वाले घोड़ों पर दांव 
यूपी विधानसभा चुनावों में वोटों का विघटन बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय था. कई जातियों और समुदाय में पार्टियों की पैठ बीजेपी के लिए परेशानी तो थी लेकिन 2014 लोकसभा चुनावों के चुनाव परिणाम ने कहीं न कहीं पार्टी को सांस दे रखी थी.  बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से ऐसे जीतने वाले प्रत्याशियों पर दांव लगाया जो जीत सके और किसी भी तरह सीट निकाल सके. इसके लिए पार्टी ने दूसरे दलों को छोड़कर आए नेताओं को भी शामिल किया और उन्हें टिकट दिया. 

सपा की छवि का मिला फायदा
जो लोग सोच रहे थे कि अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की छवि बदली है और अगले पांच साल के लिए भी राज्य की कमान उन्हीं को मिलेगी ये उनकी भूल थी. यूपी में बीजेपी ने केवल विकास के नाम पर वोट मांग कर एसपी बीएसपी के पहले से टिकट वितरण की ट्रिक को भी गलत साबित किया. बीजेपी को पता था कि यही मौका जब यूपी की सत्ता में वापसी हो सकती है, हालांकि अखिलेश ने भी विकास के नाम पर वोट मांगा था लेकिन जनता ने समाजवादियों पर दोबारा विश्वास नहीं किया और नई शुरुआत के लिए बीजेपी का साथ दिया.    

नहीं चला कोई फैक्टर
यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान गैर मुस्लिम और गैर यादव वोटरों ने सपा सरकार को दौरान खुद को समाजवादियों का हितैशी तो नहीं पाया लेकिन सरकार द्वारा इन समाजों की अनदेखी ने बीजेपी और इनका रुझान बढ़ाया. एक तरफ आरक्षण की मांग को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ जाट समुदाय सड़कों पर था तो वहीं यूपी में जाट लैंड में भी बीजेपी की बंपर जीत हुई. इसलिए इन चुनाव परिणामों से ये साबित हुआ कि इस बार के यूपी चुनावों में कोई फैक्टर काम नहीं आया. किस समाज ने किस धर्म ने किसको वोट दिया? कौन सा फैक्टर कहां कामयाब रहा ? किसी को नहीं पता चला, सब ईवीएम को पता चला बाकि किसी को नहीं. 

विवादों से किनारा

बीजेपी की जीत का एक अहम कारण यह भी होगा कि इस बार उनके विवादों से बचते नज़र आए. भाजपा नेताओं की ओर से ऐसा कोई भी विवादास्पद बयान नहीं दिया गया जिससे कि उन्हें वोटों का ख़ामियाज़ा  भुगतना पड़े. प्रधानमंत्री मोदी 'कब्रिस्तान-श्मशान' वाले बयान को विपक्ष ने हवा देने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब  रहे. प्रदेश में भाजपा की जीत मोदी के विकास एजेंडे पर प्रदेश की जनता की मुहर भी होगी.

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