जम्मू: 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को एक साल पूरा हो जाएगा. मोदी सरकार की ओर से एक साल पहले चले गए पासे ने एक साल में ही जम्मू-कश्मीर में बसे लाखों 'वंचित लोगों' की जिंदगी पूरी तरह बदलकर रख दी है. इस फैसले के साथ ही पिछले 73 सालों से जम्मू कश्मीर में बेनामी की जिंदगी गुजार रहे वाल्मीकि समाज, गोरखा और पाकिस्तान के जुल्मों-सितम से भागकर आए पश्चिमी पाकिस्तानी विस्थापितों को जम्मू-कश्मीर के नागरिक के रूप में नई पहचान मिली.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

अपने देश में रहकर जी रहे थे 'शरणार्थी' वाली जिंदगी
साल 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त पश्चिमी पाकिस्तान में रह रहे हिंदू-सिखों पर वहां रहने वाले मुसलमानों ने कहर ढाया. उनके घरों में लगा दी और परिवारों की संपत्तियां लूट लीं, उनकी जवान लड़कियों के साथ बदसलूकी की. उनके जुल्मों-सितम से बचने के लिए बड़ी संख्या में हिंदू-सिख भागकर जम्मू पहुंचे. इनमें ज्यादातर लोग सियालकोट से उजड़ कर भारत आए थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और कश्मीरी नेता शेख अब्दुल्ला के नागरिकता के आश्वासन पर ये विस्थापित जम्मू,सांबा और कठुआ जिलों में पाकिस्तान के साथ लगते बॉर्डर इलाकों में बस गए. उस समय रियासत में शेख अब्दुल्ला की ताजपोशी की तैयारी चल रही थी. उन्हें आश्वासन दिया गया कि उन्हें राज्य की नागरिकता दे दी जाएगी लेकिन बाद में शेख अब्दुल्ला अपने वादे से पीछे हट गए. उनके वादा तोड़ने पर नेहरू भी कुछ नहीं बोले और मसले पर चुप्पी साध ली. इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू करके शेख अब्दुल्ला के हाथ ओर मजबूत कर दिए. इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर के स्थाई निवासियों के लिए परमानेंट रेजीडेंट सर्टिफिकेट (PRC) का इंतजाम किया गया, ये PRC इन विस्थापित नागरिकों को नहीं दिया गया. इसका नुकसान ये हुआ कि हिंदुस्तानी नागरिक बनने के बावजूद वो लोग जम्मू-कश्मीर के नागरिक नहीं बन पाए. उनके बच्चों को स्थाई निवासियों के लिए निकलने वाली सरकारी नौकरियों और प्रोफेशनल कॉलेजों में दाखिले से वंचित कर दिया गया.


हैरत की बात ये थी कि ये लोग लोकसभा के चुनावों में वोट डाल सकते थे और खुद भी इन चुनावों में उम्मीदवार बन सकते थे लेकिन उन्हें राज्य विधानसभा और पंचायत चुनावों में वोट देने और उम्मीदवार बनने की इजाजत नहीं थी. लोगों का आरोप है कि पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस समेत कश्मीर घाटी से जुड़े दलों ने उन्हें दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्हें एक सामान्य नागरिक के रूप में जीने का भी अधिकार नहीं दिया गया. सरकारी और गैरसरकारी स्तर हर जगह पर उनके अधिकारों को खत्म करने की कोशिश होती रही. घाटी में बसे इन विस्थापितों की आबादी करीब 2 लाख है. पिछले 73 सालों से चली आ रही उनकी गुलामी की बेड़ी पिछले साल 5 अगस्त को तब टूटी जब मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की घोषणा कर दी. इस फैसले से ये लोग बेहद खुश हैं. इन लोगों कहना है कि अब इनके बच्चे भी अच्छी पढ़ाई कर सकेंगे और सरकारी नौकरियों के लिए अप्लाई कर सकेंगे. अनुच्छेद 370 हटने की पहली वर्षगांठ उनके लिए आजादी की पहली सालगिरह बन कर आ रही है.


ये भी पढ़े- हैमर मिसाइलों से लैस होंगे रफाल विमान, पलक झपकते ही बंकर तबाह


बहादुर गोरखाओं को मिली दासता से आजादी
पश्चिमी पाकिस्तान से आए विस्थापितों की तरह जम्मू-कश्मीर में बसे बहादुर गोरखा लोगों को भी 73 साल तक कश्मीर घाटी से जुड़े दलों की मनमानी झेलनी पड़ी. जम्मू-कश्मीर के डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह अपनी फौज में शामिल करने के लिए करीब 200 साल पहले नेपाल से गोरखा योद्धाओं को लाए थे. लेकिन 200 सालों से राज्य में रह कर डोगरा शासकों की सेना का हिस्सा रहे गोरखा लोगों के साथ राजशाही खत्म होते ही धोखा हो गया. सत्ता हाथ में आते ही शेख अब्दुल्ला सरकार ने वहां बसे गोरखा लोगों को राज्य का नागरिक मानने से इनकार कर दिया. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में बसे गोरखा समुदाय का बुरा वक्त शुरू हो गया. इन्हें भी सरकारी स्कूल-कालेजों में दाखिले, नौकरी और वोट डालने से वंचित कर दिया गया. इन गोरखा लोगों को भी PRC देने से शेख अब्दुल्ला सरकार ने साफ इनकार कर दिया. इनकी कई पीढ़ियां बिना जम्मू-कश्मीर की नागरिकता के गुजर गईं. इसके साथ ही इनके बच्चों की पढ़ाई और विकास भी थम गया. राज्य में एक के बाद एक सरकारें आती जाती रहीं लेकिन इन्हें राज्य की नागरिकता नहीं दी गई. केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इनकी सुनवाई हुई. प्रधानमंत्री ने इनके प्रतिनिधिमंडल को दिल्ली बुलाया और इनकी तकलीफों को सुना. अनुच्छेद 370 खत्म होने के साथ ही ये बहादुर वफादार कौम जम्मू-कश्मीर की नागरिक बन गई. जम्मू में बसे इन गोरखा लोगों की तादाद 10 हजार है. ये लोग पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का शुक्रिया अदा करते हुए नहीं थकते हैं. ये लोग 5 अगस्त को अपना दूसरा जन्मदिवस बताते हैं.


वाल्मीकि समाज भी कश्मीरी नेताओं के धोखे से आजाद हुआ
जम्मू-कश्मीर में बसे वाल्मीकि समाज की स्थिति भी गोरखाओं जैसी ही थी. शेख अब्दुल्ला सरकार सफाई के कामों को मुसलमानों के लिए हेय मानती थी इसीलिए 60 के दशक में पंजाब से वाल्मीकि समाज के लोगों को लाकर जम्मू में बसाया गया. उन्हें इस करार के साथ लाया गया था कि उन्हें जम्मू-कश्मीर की नागरिकता दी जाएगी. उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलेगी और रोजगार के बेहतर अवसर मिलेंगे. लेकिन जम्मू-कश्मीर की सत्ता पर जमे हुक्मरानों ने उनके साथ धोखा किया. उन्हें रोजगार के नाम पर केवल नगरपालिका में मैला साफ करने की नौकरी मिली, उन्हें PRC जारी नहीं किया गया. जिसके चलते उनके बच्चों को ना तो सरकारी स्कूल-कॉलेजों में दाखिला मिला और ना ही नौकरियां. आखिरकार 6 हजार की आबादी वाले इस समाज के दिन पिछले साल ठीक हुए जब मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा लिया. अब इन्हें उम्मीद है कि इनके बच्चे भी पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी कर सकेंगे. ये लोग आने वाली 5 अगस्त की तारीख को अपनी आजादी का जश्न मनाने की तैयारी भी कर रहे हैं.


LIVE TV