महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट से कहा, अगर हमने गलती की तो संजय दत्त को वापस जेल भेज दीजिए
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महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट से कहा, अगर हमने गलती की तो संजय दत्त को वापस जेल भेज दीजिए

महाराष्ट्र सरकार ने सजा की अवधि से आठ महीने पहले रिहा और वीआईपी ट्रीटमेंट दिए जाने के आरोपों पर दोबारा जांच करने के आदेश दिए हैं. 

1993 बम ब्लास्ट के मामले में सजा काट चुके संजय दत्त की एक बार फिर मुश्किलें बढ़ती दिखाई दे रही है. (फाइल फोटो)

मुंबई: महाराष्ट्र सरकार ने आज बंबई उच्च न्यायालय से कहा कि अगर उसका मानना है कि राज्य सरकार ने अभिनेता संजय दत्त को सजा में जल्दी माफी देकर गलती की तो वह दत्त को वापस जेल जाने का निर्देश दे सकता है. राज्य सरकार ने यह टिप्पणी उस समय की जब अदालत ने उससे पूछा कि 1993 के मुंबई सिलसिलेवार बम विस्फोट मामले में दोषी दत्त को पांच साल की सजा भुगतने के लिये समर्पण करने के दो महीने के भीतर ही कैसे जल्दी जल्दी पैरोल तथा एक के बाद एक फरलो दिया गया.

अदालत ने यह भी जानना चाहा है कि एक दोषी के अच्छे आचरण और व्यवहार का कैसे पता लगाया जाता है और किस आधार एवं मानदंड पर अभिनेता को जल्दी सजा में माफी दी गयी. न्यायमूर्ति आर एम सावंत और न्यायमूर्ति साधना जाधव की खंडपीठ ने कहा कि दत्त ने मई 2013 को आत्मसमर्पण किया था और जुलाई में उन्होंने फरलो तथा पैरोल पर रिहा किए जाने के लिए अर्जियां दी थी.

न्यायमूर्ति जाधव ने कहा, ‘आठ जुलाई 2013 को उन्होंने फरलो के लिए अपील की तथा 25 जुलाई को पैरोल पर रिहाई की अपील की. दोनों अर्जियां स्वीकार कर ली गई और वह भी साथ-साथ.’ न्यायमूर्ति जाधव ने कहा, ‘जेल प्रशासन दोषी के आत्मसमर्पण करने के दो महीनों के भीतर कैसे अच्छे व्यवहार और आचरण का पता लगा सकता है? आम तौर पर जेल अधीक्षक अर्जियों को आगे भी नहीं बढ़ाते हैं. अधिकारी आवेदन फेंक देते हैं.’ महाधिवक्ता आशुतोष कुम्बकोनी ने अदालत को बताया कि दत्त के साथ कोई खास बर्ताव नहीं किया गया. लेकिन अगर अदालत को लगता है कि राज्य सरकार ने अभिनेता को जल्द रिहाई देकर गलती की है तो वह दत्त को वापस जेल भेज सकती है.

न्यायमूर्ति सावंत ने कहा, ‘हम समय को पीछे नहीं ले जाना चाहते. हम इस समय दत्त को वापस भेजने का सुझाव नहीं देते लेकिन हम बस चाहते हैं कि ऐसे मुद्दे बुद्धिसंगत हो ताकि भविष्य में कोई सवाल ना उठें.’ न्यायमूर्ति ने कहा, ‘हम केवल यह जानना चाहते हैं कि किस आधार और कसौटी वह उन्हें अच्छे आचरण के लिये जल्दी रिहा किया गया? इस अच्छे आचरण और व्यवहार का कैसे पता चलता है? हमारी अंतरात्मा को संतुष्ट होना चाहिए कि ये सभी कानून के अनुसार होना चाहिए.’ 

उच्च न्यायालय ने कहा कि कई मामलों में फरलो और पैरोल तब भी नहीं दी जाती जब दोषी के माता या पिता मृत्यु शय्या पर होते हैं. पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को दो सप्ताह के भीतर विस्तृत हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया. अदालत शहर के निवासी प्रदीप भालेकर की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सजा काटने के समय दत्त को बार-बार दी गई पैरोल और फरलो पर सवाल उठाया गया है. याचिका में भालेकर ने आरोप लगाया है कि दत्त को जल्दी रिहा करके जेल विभाग ने उन्हें अनुचित लाभ दिया है.

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