तेलंगाना: कृष्ण जन्मभूमि (Krishna Janmabhoomi) की दोबारा मांग को लेकर मथुरा में दर्ज मुकदमे पर एआईएमआईएम चीफ असदउद्दीन औवैसी (AIMIM Chief Asaduddin Owaisi) ने शनिवार को कहा कि श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह ट्रस्ट के बीच विवाद का जब साल 1968 में ही फैसला हो गया था तो इसे फिर से जीवित करने की क्या जरूरत है?


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ओवैसी ने कहा कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के मुताबिक, किसी भी पूजा के स्थल के परिवर्तन पर मनाही है, ऐसा नहीं किया जा सकता.


ओवैसी ने ट्वीट किया, 'शाही ईदगाह ट्र्रस्ट और श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ने इस विवाद का निपटारा साल 1968 में ही कर लिया था. इसे अब फिर से जीवित क्यों किया जा रहा है?'


बता दें कि मथुरा के एक सिविल कोर्ट में कृष्ण जन्मभूमि को लेकर दोबारा याचिका दी गई है. इसमें एक-एक इंच जमीन वापस लेने की बात कही गई है. याचिका में कहा गया है कि ये भूमि भगवान कृष्ण के भक्तों और हिंदू समुदाय की लिए बहुत ही पवित्र है. इस सिविल सूट को वकील विष्णु जैन ने दाखिल किया है.


याचिका में कृष्ण जन्मभूमि की पूरी 13.37 एकड़ जमीन को लेकर दोबारा दावा किया गया है. वकील विष्णु जैन ने कहा है कि साल 1968 का समझौता गलत था और शाही ईदगाह मस्जिद को वहां से हटाया जाना चाहिए.


याचिका में कहा गया है कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म राजा कंस के कारागार में हुआ था. इस पूरे क्षेत्र को कटरा केशव देव के नाम से जाना जाता है. कृष्ण जन्मस्थान, मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट की मैनेजमेंट कमेटी के द्वारा बनाई गई संरचना के ठीक नीचे है.


याचिका में कहा गया है कि मुगल शासक औरंगजेब ने अपने शासन काल में कई हिंदू मंदिरों को तबाह किया और उसमें मथुरा का कृष्ण मंदिर भी था जिसे ढहा दिया गया. सालों बाद यहां मंदिर के जो अंश थे उसी पर मस्जिद बना दी गई. याचिका में ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट के कथित अतिक्रमण और अवैध तरीके से निर्माण की बात कही गई है. याचिका में कहा गया है कि ये मस्जिद सुन्नी सेंट्रल बोर्ड की सहमति से यहां बनाई गई. 


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