जब माया कोडनानी की तरफ से गवाह बने BJP अध्‍यक्ष अमित शाह...
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जब माया कोडनानी की तरफ से गवाह बने BJP अध्‍यक्ष अमित शाह...

नरोदा गाम मामले में माया कोडनानी के समर्थन में बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह ने भी गवाही दी है.

अमित शाह (फाइल फोटो)

29 फरवरी, 2002 को नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में आरोपी बीजेपी की पूर्व मंत्री माया कोडनानी को हाई कोर्ट ने बरी कर दिया है. इस मामले में निचली अदालत ने उनको 28 साल की सजा सुनाई थी. इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करते हुए उन्‍होंने अपना पक्ष रखा था कि वह उस दिन नरोदा में उपस्थित ही नहीं थीं. इसके साथ निचले कोर्ट में चल रहे एक अन्‍य नरोदा गाम मामले में भी उन्‍होंने यही दलील दी है. नरोदा गाम मामले में उनकी दलील के समर्थन में बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह ने भी गवाही दी है.

  1. नरोदा पाटिया केस में हाई कोर्ट ने माया कोडनानी को बरी किया
  2. निचली अदालत ने कोडनानी को 28 साल की सजा सुनाई थी
  3. नरोदा गाम मामले में बीजेपी अध्‍यक्ष ने कोडनानी के पक्ष में दी गवाही

नरोदा गाम मामले में गवाही
अमित शाह ने इस मामले में पिछले साल 18 सितंबर को अहमदाबाद की विशेष एसआईटी अदालत में गवाही देते हुए कहा कि माया कोडनानी 29 फरवरी, 2002 को नरोदा गाम में नहीं थीं. वह सुबह 8.30 बजे विधानसभा के अंदर थीं. उन्होंने कहा, 'मैं सुबह 9:30 से 9:45 बजे तक सिविक अस्पताल में था, उस वक्त मेरी मुलाकात वहीं माया कोडनानी से हुई थी.' इससे पहले माया कोडनानी भी यही बात कह चुकी हैं. नरोदा गाम में सुबह 8.30 बजे के आसपास दंगा होने की बात कही जाती है. इस मामले में अमित शाह को इसलिए गवाह के तौर पर पेश किया गया क्योंकि उस वक्त वे भी अहमदाबाद से बीजेपी के विधायक थे.

इससे पहले कोडनानी ने बेगुनाही साबित करने के लिए अपने आवेदन में कहा था कि घटना के दिन वह विधानसभा के बाद सोला सिविल अस्पताल पहुंची थीं. उन्होंने आवेदन में दावा किया कि उस वक्त अस्पताल में अमित शाह भी मौजूद थे. उल्‍लेखनीय है कि अहमदाबाद के नरोदा गाम का नरसंहार 2002 के नौ बड़े सांप्रदायिक दंगों में एक है जिसकी जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) ने की थी. इस दंगे में 11 लोगों की जान चली गई थी. इस मामले में कुल 82 व्यक्तियों पर मुकदमा चल रहा है.

हाई कोर्ट ने माया कोडनानी को बरी किया
इस बीच 2002 के नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में शुक्रवार (20 अप्रैल) को गुजरात हाई कोर्ट ने माया कोडनानी को बरी कर दिया है. शुक्रवार (20 अप्रैल) को मामले की सुनवाई करते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने एसआईटी की विशेष अदालत के फैसले को पलटते हुए 32 दोषियों में से 17 को बरी कर दिया, जिसमें माया कोडनानी का नाम भी शामिल हैं.

वहीं, कोर्ट ने 12 दोषियों की सजा को बरकरार रखा है. अभी इस मामले में 2 अन्य दोषियों पर फैसले का इंतजार है, जबकि एक दोषी की मौत हो चुकी है. कोर्ट ने दोषी बाबू बजरंगी की सजा को बरकरार रखा है. बता दें कि SIT की विशेष अदालत ने माया कोडनानी को 28 सालों की सजा सुनाई थी.

विशेष लोक अभियोजक प्रशांत देसाई ने बताया कि 12 दोषियों को बिना कोई छूट दिए 21 साल की सजा दी गई है. 11 गवाहों ने माया कोडनानी के मौके पर होने को लेकर अलग-अलग बयान दिए, लेकिन उनमें विरोधाभास था.

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नरोदा पाटिया दंगा मामले में माया कोडनानी को निचली अदालत द्वारा 28 साल कारावास की सजा सुनाई गई थी.(फाइल फोटो)

कौन हैं माया कोडनानी?
1. पेशे से डॉक्‍टर माया कोडनानी स्‍त्री रोग विशेषज्ञ(गाइकोनोलॉजिस्‍ट) हैं. उनके पिता आरएसएस के सक्रिय कार्यकर्ता थे. उनका परिवार विभाजन के बाद भारत आया. बड़ौदा मेडिकल कॉलेज में डॉक्‍टरी की पढ़ाई के लिए एडमीशन लेने से पहले गुजराती मीडियम स्‍कूल में पढ़ाई की और राष्‍ट्रीय सेविका समिति को ज्‍वाइन किया.

2. डॉक्‍टर बनने के बाद उन्‍होंने नरोदा के कुबेरनगर इलाके में मैटरनिटी क्‍लीनिक खोला. लेकिन शुरू से ही राजनीति में दिलचस्‍पी लेने के कारण 1995 में अहमदाबाद निकाय चुनावों में सफलता हासिल कर सियासी सफर शुरू किया. उसके तीन साल बाद ही 1998 में पहली बार एमएलए बनीं.

3. दमदार भाषणों के कारण वह गुजरात में बीजेपी की धाकड़ नेता बनकर उभरीं.  2002 और 2007 के चुनावों में भी जीतीं. 2007 में पहली बार महिला एवं बाल विकास राज्‍यमंत्री बनीं.

4. 2002 में गुजरात दंगों के दौरान अहमदाबाद के नरोदा पाटिया नरसंहार में दिनदहाड़े 97 लोगों को मार दिया गया था. इसी मामले में उन पर नरोदा में दंगा भड़काने, भड़काऊ भाषण देने का आरोप था. हालांकि 2012 में जब निचली अदालत ने उनको सजा सुनाई तो उन्‍होंने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा था कि उनको राजनीतिक षड़यंत्र के तहत फंसाया गया है. उन्‍होंने यह तक कहा था कि वह उस दिन नरोदा में मौजूद ही नहीं थीं. 2009 में जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी ने नरोदा पाटिया केस में पूछताछ के लिए बुलाया तो माया कोडनानी उपस्थित नहीं हुईं और उनको भगौड़ा घोषित कर दिया. उसके बाद बढ़ते दबाव के बीच उन्‍होंने सरेंडर किया और अपने मंत्री पद से इस्‍तीफा देना पड़ा.

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