ZEE जानकारी : जब पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने कार खरीदने के लिए PNB से लिया था 5000 रुपए का लोन
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ZEE जानकारी : जब पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने कार खरीदने के लिए PNB से लिया था 5000 रुपए का लोन

हम आपको भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के 5 हज़ार रुपये के कार लोन के बारे में बताएंगे. इससे आपको पता चलेगा कि देश का प्रधानमंत्री होने के बावजूद शास्त्री जी ने कितनी ईमानदारी से अपना Loan चुकाया.

ZEE जानकारी : जब पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने कार खरीदने के लिए PNB से लिया था 5000 रुपए का लोन

आज का युग ईमानदारी का युग नहीं है . आज के दौर में आदर्श और नैतिक मूल्य, किताबी बातें बनकर रह गये हैं . भष्टाचार की वजह से भारत के System का इतना नैतिक पतन हो चुका है ! कि नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे उद्योगपति, बैंक से हज़ारों करोड़ रुपये का Loan लेते हैं, आलीशान होटलों में ऐश करते हैं, आम लोगों की मेहनत की कमाई को, खून की तरह चूसते हैं, पूरी दुनिया में पिकनिक मनाते हैं और जब पैसे खत्म हो जाते हैं, तब बैंक को चूना लगाकर विदेश भाग जाते हैं. हम और आप जैसे आम लोग, ये सब देखकर पहले चकित होते हैं, फिर क्रोधित होते हैं और फिर ज़्यादातर लोग अपना गुस्सा ये सोचकर ठंडा कर लेते हैं.. कि आखिर वो कर ही क्या सकते हैं. 

पंजाब नेशनल बैंक में हुए घोटाले के बाद ऐसा लगता है.. कि ईमानदारी.. आज गरीबों की मजबूरी है, जबकि चोरी और बेईमानी,अमीरों के आभूषण हैं.  ऐसे चिंताजनक दौर में आज हम आपको भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के 5 हज़ार रुपये के कार लोन के बारे में बताएंगे. इससे आपको पता चलेगा कि देश का प्रधानमंत्री होने के बावजूद शास्त्री जी ने कितनी ईमानदारी से अपना Loan चुकाया. नोट करने वाली बात ये है कि लाल बहादुर शास्त्री ने इसी पंजाब नेशनल बैंक से लोन लिया था. नीरव मोदी जैसे भगौड़े उद्योगपतियों के युग में, शास्त्री जी का कार लोन, ईमानदारी के एक स्मारक जैसा लगता है. 

वर्ष 1964 में लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री बने थे. और प्रधानमंत्री बनने तक भी उनके पास अपनी कोई कार नहीं थी . आज के ज़माने में कार को एक Status Symbol माना जाता है . लेकिन ये वो दौर था जब किसी व्यक्ति की ईमानदारी और नैतिकता ही उसका Status Symbol हुआ करती थी .शास्त्री जी जब प्रधानमंत्री बने तो उनके बच्चों ने उनसे कहा कि 'आप भारत के प्रधानमंत्री हैं आपके पास अपनी कार होनी चाहिए' 

इसके बाद शास्त्री जी ने अपने एक सचिव से पूछा कि 'उनके बैंक खाते में कितने रुपये हैं ?'  उस वक़्त उनके बैंक खाते में सिर्फ 7,000 रुपये थे . उस ज़माने में एक Fiat Car की कीमत 12 हज़ार रुपए थी . यानी शास्त्री जी को ये कार खरीदने के लिए 5 हज़ार रुपए की ज़रूरत थी . इसके बाद शास्त्री जी ने कार ख़रीदने के लिए पंजाब नैशनल बैंक से 5,000 रुपये का Loan लिया . इसके एक साल बाद.. शास्त्री जी का निधन हो गया. और उनकी मृत्यु के बाद Loan चुकाने की ज़िम्मेदारी उनकी पत्नी ललिता शास्त्री पर आ गई. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी ने सरकार की तरफ़ से.. शास्त्री जी का Loan माफ़ करने का आग्रह किया था. 
लेकिन उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने इंदिरा गांधी के इस आग्रह को स्वीकार नहीं किया और शास्त्री जी की मृत्यु के चार साल बाद तक.. पेंशन से उस लोन को चुकाया. 

लाल बहादुर शास्त्री की ये कार ईमानदारी और सत्यनिष्ठा का प्रतीक है . ये कार आज भी दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल में रखी हुई है और लोग दूर- दूर से इस कार को देखने आते हैं . आज Zee News की टीम ने दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल का दौरा किया है . आज आदर्शों और उसूलों वाली इस कार की तस्वीरें आप सबको देखनी चाहिए . 

लाल बहादुर शास्त्री देश के बहुत सशक्त प्रधानमंत्री थे . उन्होंने अपने ज़बरदस्त नेतृत्व से पाकिस्तान की अकड़ को भी ढीला कर दिया था . हार के बाद पाकिस्तान के ऊंचे कद वाले तानाशाह जनरल अयूब खान... ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री के सामने अपना सिर झुकाए खड़े थे. पूरा भारत लाल बहादुर शास्त्री का स्वागत करने के लिए उनका इंतज़ार कर रहा था. वो ऐसा दौर था.. जब एक Loan माफ करने के लिए उनका एक इशारा ही काफी था . लेकिन उन्होंने कभी भी सत्ता का दुरुपयोग नहीं किया . उनके मन में अपने पद और प्रतिष्ठा का अहंकार नहीं था. वो कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल थे. 
 आज के इस दौर में देश को शास्त्री जी से सीख लेने की बहुत सख्त ज़रूरत है . 

नीरव मोदी और विजय माल्या को देश का कानून सज़ा दे पाएगा या नहीं, ये तो हम नहीं कह सकते.. लेकिन ऐसे लोगों को हम एक तमाचा ज़रूर मार सकते हैं, और आज इस रिपोर्ट के ज़रिए हमने ऐसा ही करने की कोशिश की है.

देश के उच्च पदों पर बैठे वरिष्ठ अफसरों को और नेताओं को एक बार दिल्ली में मौजूद लाल बहादुर स्मारक का दौरा ज़रूर करना चाहिए . अपनी ज़िंदगी के कुछ कीमती पल उन्हें इस कार के करीब जाकर बिताने चाहिए और ये सोचना चाहिए कि इस देश की नींव कितने महान और तपस्वी लोगों ने रखी है . इससे उन्हें भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की प्रेरणा मिलेगी . 

PNB के भ्रष्ट अधिकारियों ने आम आदमी के विश्वास को तोड़ा है . साथ ही हमारे देश का स्वतंत्रता संग्राम लड़ने वाले क्रांतिकारियों की आत्मा को भी दुख पहुंचाया है . शायद बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि पंजाब नेशनल बैंक में सबसे पहला Account खोलने वाले व्यक्ति महान स्वतंत्रता सेनानी, लाला लाजपत राय थे . 

पंजाब नेशनल बैंक की नींव में क्रांतिकारियों का खून और पसीना मिला हुआ है . पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना 19 मई 1894 को हुई थी . ये वो समय था जब 1857 के खूनी विद्रोह को 35 वर्ष से ज़्यादा बीत चुके थे . क्रांतिकारियों के दिलों में अंग्रेज़ों से बदला लेने की चिंगारी सुलग रही थी . अंग्रेज बुरी तरह क्रांतिकारियों को कुचल रहे थे . आज़ादी की बात करने वालों को कैद कर लिया जाता था और क्रांतिकारियों की संपत्ति छीन ली जाती थी . तब देश में बहुत सारे ब्रिटिश बैंक अपना व्यापार कर रहे थे . देश के पास कोई विकल्प नहीं था इसलिए लोग इन्हीं विदेशी बैंकों में अपनी गाढ़ी कमाई जमा कर रहे थे . अंग्रेज़ खूब मुनाफा कमा रहे थे . देश का पैसा विदेशों में जा रहा था और भारत के लोगों को बहुत थोड़ा सा ब्याज़ मिल रहा था .

उस दौर में आर्य समाज के नेता मूलराज के मन में ये विचार आया कि भारत के लोगों का अपना स्वदेशी बैंक होना चाहिए . उन्होंने ये बात लाला लाजपत राय से कही . लाल लाजपत राय भी चाहते थे कि भारत के लोगों का पैसा भारत के पास ही रहे इसलिए भारत का अपना एक बैंक होना चाहिए . देश के कई बड़े भारतीय उद्योगपतियों ने क्रांतिकारियों की अपील पर पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना में मदद की . क्रांतिकारियों ने इस स्वदेशी बैंक को खड़ा करने के लिए अपनी संपत्ति को समर्पित कर दिया. 

पंजाब नेशनल बैंक को सबसे पहले लाहौर के अनारकली इलाक़े में शुरू किया गया . वर्ष 1900 में पहली बार रावलपिंडी में पंजाब नेशनल बैंक की पहली Branch खोली गई . देश के लोगों का विश्वास पंजाब नेशनल बैंक में बना रहे इसलिए बैंक ने लाला लाजपत राय के भाई को इस बैंक का मैनेजर नियुक्त किया . और आज आज़ादी के सत्तर साल बाद यही बैंक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है.. और देश के लोगों की गाढ़ी कमाई को नीरव मोदी जैसे बेईमान लोगों पर लुटाकर विदेशों में भेज रहा है.

जलियांवाला बाग कमेटी का अकाउंट भी पंजाब नेशनल बैंक में ही खोला गया था . महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू जलियांवाला बाग कमेटी को Operate करते थे .

वर्ष 1913 में आर्थिक संकट की वजह से देश के 78 बैंक बर्बाद हो गए लेकिन पंजाब नेशनल बैंक का बाल भी बांका नहीं हुआ . 

उस वक्त पंजाब के Financial Commissioner रहे J H Maynard ने कहा था कि 'पंजाब नेशनल बैंक इसलिए बर्बाद होने से बच गया क्योंकि इसका प्रबंधन बहुत अच्छा है .' इसके बाद भारत के लोगों के मन में पंजाब नेशनल बैंक ने अपनी धाक जमा ली थी . 

अब ज़रा आप विचार कीजिए एक तरफ वो क्रांतिकारी थे जिन्होंने पंजाब नेशनल बैंक का निर्माण करवाया. ताकि देश का पैसा विदेशों में ना जाए और दूसरी तरफ आज का भ्रष्ट System है जो भारत का पैसा विदेशों में भेज रहा है . लाल लाजपत राय के योगदान का, इस बैंक ने अपने परिचय में खूब गुण गान किया है . लेकिन उन जैसे क्रांतिकारियों ने जो सीख दी, उसे इस बैंक के भ्रष्ट अधिकारियों ने कभी नहीं माना . 

ब्रिटेन के इतिहासकार और राजनेता Lord Macaulay ने 2 फरवरी 1835 को ब्रिटेन की संसद में भारत के विषय में एक ऐतिहासिक भाषण दिया था . उन्होंने कहा था कि 'मैंने पूरे भारत की यात्रा की है, मैंने एक भी व्यक्ति को भिखारी नहीं देखा, मैंने कोई चोर नहीं देखा, यहां के लोगों के नैतिक मूल्य इतने ऊंचे हैं, यहां के लोग इतने योग्य हैं ? मुझे नहीं लगता कि हम कभी विजय प्राप्त कर पाएंगे' 

उस वक्त बतौर  प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को 5 हजार रुपए महीना वेतन मिलता था . 3 हजार रुपए बच्चों की परवरिश के लिए पत्नी को दे दिए जाते थे . उनकी पत्नी ने जब ये लोन चुकाया तो उनको बतौर पेंशन एक हजार रुपए मिलती थी 

अब इसी ख़बर को एक दूसरे नज़रिए से देखते हैं. भारत में वैसे तो लोकतंत्र है. लेकिन, हमारे देश के किसान इसी लोकतंत्र में 'लोनतंत्र' के सहारे जीते हैं. और यही 'लोनतंत्र' कई बार उनकी मौत का कारण भी बन जाता है. यानी एक तरफ वो रईस और धनवान लोग हैं, जो बैंकों से लोन लेते हैं और बिना लोन चुकाए, विदेश भाग जाते हैं. और दूसरी तरफ वो ग़रीब किसान हैं, जो मजबूरी में लोन लेते हैं और अगर किसी कारण-वश समय रहते लोन ना चुका पाएं, तो यही बैंक वाले उनके सम्मान की नीलामी कर देते हैं. आज हमने किसानों की इसी तकलीफ का एक विश्लेषण तैयार किया है. जिसमें आपको कई अनसुलझे सवालों के जवाब मिलेंगे. और इसमें मेरी मदद करेगा...ये Notice..

सबसे पहले मैं आपको उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक लिमिटेड द्वारा, मदनपाल नामक एक किसान को भेजे गए Notice को पढ़कर सुनाऊंगा. वैसे इस Notice में लिखे गए शब्दों को 'धमकी' की श्रेणी में डालना ज़्यादा उचित होगा.

अब आप खुद सोचिए, कि अगर एक किसान के पास बैंक की तरफ से इस तरह के धमकी भरे पत्र या Notice आएंगे, तो उसकी क्या हालत होती होगी ? अफसोस इस बात का है, कि ऐसे धमकी भरे लहजे में लिखे गए Notices, करोड़पति उद्योगपतियों के पास नहीं जाते. और जब तक ऐसे नोटिस भेजे जाते हैं, तब तक वो घोटालेबाज़...देश छोड़कर भाग चुका होता है. 
बेईमान उद्योगपतियों के पास इस तरह के नोटिस का जवाब देने के लिए वकीलों की लंबी चौड़ी फौज होती है.जबकि गरीब आदमी के पास ऐसा कोई कवच नहीं होता.

आज एक विरोधाभास का ज़िक्र करना भी ज़रुरी है. और इसके लिए हम अमिताभ बच्चन की फिल्म, मैं आज़ाद हूं के एक Scene की मदद लेंगे. ये फिल्म वर्ष 1989 में Release हुई थी. यानी ये वो वक्त था, जब भारत की आज़ादी को 42 साल हुए थे. लेकिन भारत की आज़ादी के 70 वर्ष बीत जाने के बावजूद, इस फिल्म के एक Scene में कही गई एक-एक बात आज भी प्रासंगिक नज़र आती है. 

कर्ज़ लेकर ऐश करने वाले उद्योगपति... बैंकों को पैसा वापस करना भूल जाते हैं...वो अपने रसूख से सिस्टम के नियमों को मोम की तरह पिघला देते हैं. जबकि किसानों को या तो कर्ज़ माफी के लिए आंदोलन करना पड़ता है...या फिर सिस्टम की वजह से आत्महत्या करनी पड़ती है. ये दो अलग अलग वर्गों से जुड़ी स्थितियां हैं... इसलिए, आज ये समझना ज़रुरी है, कि हमारे देश का सिस्टम एक किसान और उद्योगपति के बीच में किस तरह का भेदभाव करता है ? और किसानों का ये दुख कभी ख़त्म क्यों नहीं होता?

भारत में गरीबी की मार झेलने वाले देश के करोड़ों किसानों के प्रति सिस्टम की सूखी सोच, किसी से छिपी नहीं है. जो किसान, पसीना बहाकर पूरे देश का पेट भरते हैं, उन्हें हमारा समाज उचित सम्मान भी नहीं दे पाता. अगर आज लाल बहादुर शास्त्री ज़िंदा होते, तो अपने जय जवान..जय किसान वाले नारे को दम तोड़ते हुए देखकर बेहद दुखी होते. शास्त्री जी ने ये नारा वर्ष 1965 में दिल्ली के रामलीला मैदान में लाखों भारतीयों की मौज़ूदगी में दिया था. ये वो वक्त था जब जवाहर लाल नेहरु की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधानमंत्री पद संभाला था और पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया था. 

इसी दौरान देश में अनाज की भी भारी कमी थी, तब देश के जवानों और किसानों में उत्साह का संचार करने के लिए शास्त्री जी ने ये नारा दिया था. इस नारे का असर ये हुआ कि 1965 के युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को हरा दिया और देश के किसानों ने खाद्यान्न के मामले में देश को आत्मनिर्भर बना दिया. लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू ये है, कि देश को अनाज के अथाह भंडार देने वाले किसानों की ज़िंदगी में कभी बहार नहीं आई. जबकि, दूसरी तरफ, बैंक से कर्ज़ लेने वाले करोड़पतियों के जीवन में खुशियों की फसल उगती चली गई. कल भी ऐसा ही हो रहा था और आज भी ऐसा ही हो रहा है.

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