जस्टिस रमना ने ब्रिटेन में विक्टोरिया युग के अंग्रेजी के मशहूर लेखक चार्ल्स डिकेंस की किताब 'टेल ऑफ टू सिटीज' (Tale of Two Cities) का जिक्र किया.
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नई दिल्ली: आर्टिकल 370 (Article 370) हटने के बाद जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) पर लगी पाबंदियों के खिलाफ दायर अर्जियों पर फैसला सुनाने के दौरान जस्टिस रमना ने ब्रिटेन में विक्टोरिया युग के अंग्रेजी के महान लेखक चार्ल्स डिकेंस के क्लासिक 'टेल ऑफ टू सिटीज' (Tale of Two Cities) का जिक्र किया. जस्टिस रमना ने कहा कि मैं फैसला सुनाने से पहले इस क्लासिक की कुछ पंक्तियों का जिक्र करना चाहूंगा'- 'वह सर्वश्रेष्ठ दौर था, वह सबसे खराब दौर भी था. वह बुद्धिमत्ता का युग था, वह मूर्खता का भी युग था. वह विश्वास का युगारंभ था.' ('It was the best of times, it was the worst of times, It was the age of wisdom, It was age of foolishness, it was the epoch of belief!).
उसके बाद फैसला सुनाते हुए जस्टिस रमना ने कहा कि कश्मीर ने बहुत हिंसा देखी है. इंटरनेट पर पाबंदी असीमित समय के लिए नहीं की जा सकती. उन्होंने आदेश देते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट पर लगी पाबंदी को हटाने के लिए सरकार स्थिति की तत्काल समीक्षा करे. इंटरनेट पर प्रतिबंध की समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिए. इंटरनेट लोगों का मौलिक अधिकार है. SC ने कहा कि सरकार धारा 144 का इस्तेमाल विचारों की विविधता को दबाने के लिए नहीं कर सकती. इतना ही नहीं सरकार सभी पाबंदी संबंधी आदेश न दिखाने की छूट दिए जाने का दावा भी नहीं कर सकती. इंटरनेट के माध्यम से अभिव्यक्ति संविधान के आर्टिकल 19 के तहत हमारा मौलिक अधिकार है. जस्टिस रमना- इंटरनेट को बंद करने की कार्रवाई आर्टिकल 19(2) के सिद्धांतों के अनुरूप ही होनी चाहिए.
BREAKING NEWS: SC का आदेश- J&K में इंटरनेट अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता
इंटरनेट को बंद करने की कार्रवाई आर्टिकल 19(2) के सिद्धांतों के अनुरूप ही होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर सरकार को पाबंदियों से संबंधित आदेश की समीक्षा एक सप्ताह के भीतर करने का आदेश दिया. इंटरनेट पर अनिश्चित काल के लिए पाबंदी दूरसंचार नियमों का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी आदेशों को पब्लिक डोमेन में डालने का आदेश दिया जिसके तहत धारा 144 लगाई गई थी.
इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि कश्मीर ने बहुत हिंसा देखी. हम सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मानवाधिकारों और स्वतंत्रता के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करेंगे. कोर्ट का ये सुनिश्चित करना दायित्व है कि सभी नागरिकों को समान अधिकार और सुरक्षा मिलें. लेकिन ऐसा लगता है कि आजादी और सुरक्षा का मुद्दा कहीं उलझ जाता है.
दरअसल, पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था. आपको बता दें कि कांग्रेस नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद और कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर लगाई गई पाबंदियों को चुनौती दी थी.
70 लाख लोगों को इस तरह बंद करके नहीं रखा जा सकता- सिब्बल
सुनवाई के दौरान गुलाम नबी आजाद की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने नियंत्रण का विरोध करते हुए कहा था कि वह ये समझते हैं कि वहां राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला है, लेकिन 70 लाख लोगों को इस तरह बंद करके नहीं रखा जा सकता. यह जीवन के अधिकार का उल्लंघन है. राष्ट्रीय सुरक्षा और जीवन के अधिकार के बीच संतुलन होना चाहिए. कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन की ओर से पेश वकील वृन्दा ग्रोवर ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में जारी पाबंदियां असंवैधानिक हैं. ऐसे मामलों में संतुलन का ध्यान रखा जाना चाहिए.
तुषार मेहता ने इंटरनेट सेवा पर लगी रोक को जायज ठहराया
जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गत मंगलवार को अनुच्छेद 370 हटने के बाद से राज्य में इंटरनेट सेवा पर लगी रोक को जायज ठहराते हुए कहा था कि ऐसा न होने से अलगाववादी, आतंकी और पाकिस्तानी सेना सोशल मीडिया के जरिए लोगों को जिहाद के नाम पर भड़का सकती है. मेहता ने कहा था कि यहां सिर्फ अंदरूनी शत्रुओं से ही नहीं लड़ना है, बल्कि सीमा पार के दुश्मनों से भी लड़ना है और उन्होंने इस संबंध में कई उदाहरण भी दिए थे.