'टाइगर जिंदा है' की तर्ज पर RAW और ISI के इन जासूसों की असल कहानी पर खिंची तलवारें
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'टाइगर जिंदा है' की तर्ज पर RAW और ISI के इन जासूसों की असल कहानी पर खिंची तलवारें

रॉ के पूर्व चीफ एएस दौलत और आईएसआई के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) असद दुर्रानी ने संयुक्‍त रूप से एक पुस्तक ''द स्पाई क्रानिकल्स: रॉ, आईएसआई एंड इल्यूजन आफ पीस'' लिखी है.

भारत और पाकिस्‍तान के रिश्‍तों में इस वक्‍त बर्फ जमी हुई है.(फाइल फोटो)

'टाइगर जिंदा है' फिल्‍म में रॉ और आईएसआई जासूसों की फंतासी लव स्‍टोरी को तो आपने देखा होगा लेकिन उसके बरक्‍स इन दोनों चिर दुश्‍मन एजेंसियों के पूर्व प्रमुखों ने अपने देशों, हुक्‍मरानों और अपनी एजेंसियों के असल किस्‍से एक किताब में बयान किए हैं. वह भी एक ऐसे दौर में जब भारत-पाकिस्‍तान के रिश्‍तों में बर्फ जमी है और सीमापर लगातार गोलाबारी के बीच भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज यह कह रही हों कि जब सीमा पर जनाजे उठ रहे हों तो वार्ता की बात नहीं की जा सकती. उसी दौर में भारत की प्रसिद्ध खुफिया एजेंसी रॉ(R&AW) और पाकिस्‍तान की कुख्‍यात एजेंसी आईएसआई(ISI) के पूर्व प्रमुखों यानी स्‍पाईमास्‍टरों ने एक साथ मिलकर एक किताब लिखी है. रॉ के पूर्व चीफ एएस दौलत और आईएसआई के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) असद दुर्रानी ने संयुक्‍त रूप से एक पुस्तक ''द स्पाई क्रानिकल्स: रॉ, आईएसआई एंड इल्यूजन आफ पीस'' लिखी है. इसको पिछले दिनों भारत में जारी किया गया.

  1. रॉ और आईएसआई के पूर्व प्रमुखों ने संयुक्‍त रूप से लिखी किताब
  2. पुस्‍तक का नाम द स्पाई क्रानिकल्स: रॉ, आईएसआई एंड इल्यूजन आफ पीस है
  3. भारत में इसके प्रकाशन के बाद पाकिस्‍तान में विवाद खड़ा हो गया है

उनकी इस किताब में कश्मीर, शांति का मौका चूकने, हाफिज सईद और 26/11, कुलभूषण जाधव, सर्जिकल स्ट्राइक्स, ओसामा बिन लादेन के लिए समझौता, भारत-पाकिस्तान के रिश्ते में अमेरिका और रूस की भूमिका और आतंकवाद दोनों देशों के बीच वार्ता के प्रयास को किस तरह कमजोर करता है जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है और कई राज से पर्दा उठाया गया है.

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एएस दौलत और असद दुर्रानी
दौलत 1999 से 2000 के बीच देश की बाह्य खुफिया एजेंसी रॉ के प्रमुख रहे हैं. दौलत साथ ही 2001 से 2004 के बीच कश्मीर मुद्दों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी सहयोगी रहे हैं. दौलत इससे पहले एक अन्य किताब 'कश्मीर: द वाजपेयी ईयर्स' भी लिख चुके हैं. असद दुर्रानी, अगस्‍त 1990 से मार्च 1992 के बीच आईएसआई के बॉस थे.

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भारत और पाकिस्‍तान के हालिया दौर में रिश्‍ते बेहद तल्‍ख रहे हैं.(फाइल फोटो)

पाकिस्‍तान में बवाल
इसके बाद से ही पाकिस्‍तान में 25 जुलाई को होने जा रहे आम चुनावों के बीच असद दुर्रानी के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया है. कहा जा रहा है कि उन्‍होंने अपनी एजेंसी के बारे में कई खुलासे किए हैं. इस कारण उनके खिलाफ कोर्ट आफ इंक्वायरी (जांच) के आदेश दे दिए गए हैं. साथ ही उनके देश से बाहर जाने पर रोक लगा दी गई है. दुर्रानी ने अपनी इस किताब को लेकर उनके ‘अपने ही लोगों’ पर निराशा जताई है. यह पुस्तक विवाद में आने के साथ ही सेना के सेवानिवृत्त कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने विभिन्न टीवी कार्यक्रमों में दुर्रानी पर हमला किया है.

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कश्मीर में 1988 से 1990 के बीच खुफिया ब्यूरो के संयुक्त निदेशक रह चुके दौलत ने किताब प्रकाशित होने के बाद पिछले दिनों न्‍यूज एजेंसी आईएएनएस को दिए एक इंटरव्‍यू में भारत-पाकिस्‍तान रिश्‍तों के बारे में कहा कि सात दशकों से चल आ रहे संघर्ष का सैन्य समाधान नहीं हो सकता, जिसमें दसियों हजार लोग मारे जा चुके हैं, दो युद्ध (1948 और 1965) लड़े जा चुके हैं और परमाणु हथियार संपन्‍न दोनों देशों के बीच लंबे समय से (1999 से) सैन्य संघर्ष चल रहा है. उन्होंने कहा, "सेना काफी कुछ कर सकती है, उसके बाद ही राजनेता अपनी भूमिका निभा सकते हैं."

इसके साथ ही एएस दौलत ने पाकिस्तानी सेना के प्रमुख कमर जावेद बाजवा को तनाव कम करने और शांति पर बात करने के लिए वार्ता के लिए आमंत्रित करने का प्रस्ताव रखा है. दौलत ने जनरल बाजवा की अप्रैल में की गई टिप्पणी को सही ठहराया कि कश्मीर मुद्दे समेत भारत और पाकिस्तान के बीच के सभी मुद्दों को केवल शांति वार्ता के जरिए ही सुलझाया जा सकता है.

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एएस दौलत 1999 से 2000 के बीच देश की बाह्य खुफिया एजेंसी रॉ के प्रमुख रहे हैं.(फाइल फोटो)

दौलत ने कहा, "हमें सेना प्रमुख जनरल बाजवा को आमंत्रित करना चाहिए. वह शांति की बात करते रहे हैं और पाकिस्तान के साथ बातचीत को लेकर हम इसलिए हताश हैं, क्योंकि हम सशस्त्र सेनाओं, यानी आईएसआई या सेना या जिन्हें हम 'डीप स्टेट' कहते हैं, उन्हें लेकर हताश हैं. इसलिए, हम सीधे सेना प्रमुख से ही बात क्यों नहीं करते? वह इस समय बेहद जायज बात कह रहे हैं. हम सेना प्रमुख को बातचीत के लिए आमंत्रित क्यों नहीं करते?"

भारत का कहना है कि वह पाकिस्तान के केवल निर्वाचित नेताओं से ही बातचीत करेगा. अपने इस रुख के तहत भारत ने पाकिस्तानी सेना से बातचीत पूरी तरह बंद कर दी है. हालांकि विदेश नीति, खासतौर पर भारत के संबंध में विदेश नीति और पाकिस्तानी प्रतिष्ठान की सुरक्षा से जुड़े मामलों के निर्णय लेने में पाकिस्तानी सेना की अहम भूमिका है.

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उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से बात न करना (समस्या के समाधान में) एक अड़चन है और वह भी ऐसे समय में जब भू-राजनीतिक परिदृश्य नई करवट ले रहा है. उन्होंने कहा, "हमारे आसपास की दुनिया में काफी कुछ हो रहा है और वे सब इस खास क्षेत्र में रुचि ले रहे हैं. अमेरिका का पाकिस्तान और अफगानिस्तान के साथ बड़ा हित जुड़ा है." उन्होंने कहा, "ठीक इसी तरह, चीन, रूस और ईरान ने भी इस क्षेत्र में रुचि दिखाई है और हमें इस बात पर गौर करना चाहिए. मुझे लगता है कि इस मामले में पाकिस्तान के साथ बात न करने से समस्या का हल नहीं निकलेगा."

'पाकिस्तान को भारत से रिश्ते सुधारने से रोकेगी नहीं फौज'
इस बारे में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल असद दुर्रानी का कहना है कि पाकिस्तानी फौज और यहां की खुफिया एजेंसी इस्लामाबाद को भारत के साथ संबंध सुधारने से कभी नहीं रोकेगी. वह कहते हैं कि बशर्ते संबंधों में सुधार अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए. दुर्रानी ने आईएएनएस को ईमेल साक्षात्कार में बताया, "आम धारणाओं (पेचीदी विदेश नीतियों में पाकिस्तान की सरकारें सेना के अधीन रही हैं) में गंभीर कमियां रही हैं. किसी ने भी भारत के साथ संबंधों में सुधार के लिए पाकिस्तान सरकार को नहीं रोका है. बशर्ते कि दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतों के अनुरूप हो. अन्यथा, परवेज मुशर्रफ जैसे सैन्य शासक की तरह प्रयास असफल ही होंगे."

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आईएसआई के पूर्व प्रमुख को उनकी किताब 'द स्पाइ क्रॉनिकल्स: रॉ आईएसआई एंड द इल्युजन ऑफ पीस' के विमोचन के लिए भारत ने वीजा देने से इनकार कर दिया गया था. इस किताब को 23 मई को नई दिल्ली में भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने संयुक्त रूप से विमोचित किया था.

नई दिल्ली में किताब के विमोचन में दुर्रानी के प्री-रिकॉर्डिड वीडियो में उन्होंने वीजा नहीं मिलने के लिए भारत के 'डीप स्टेट' यानी भारत की आंतरिक शक्तियों के प्रभाव को जिम्मेदार ठहराया था. इसके बारे में पूछने पर दुर्रानी कहते हैं, "हर देश की अपनी आतंरिक शक्तियों के प्रभाव होते हैं." उन्होंने कहा, "भारत और अमेरिका जैसे देशों में इन आंतरिक शक्तियों के प्रभाव सर्वाधिक होते हैं."

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असद दुर्रानी, अगस्‍त 1990 से मार्च 1992 के बीच आईएसआई के बॉस थे. (फाइल फोटो)

भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा सीमा तनाव की वजह से वार्ता स्थगित होने और सभी तरह के खेल एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के थमने के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि दोनों परमाणु संपन्न देशों के बीच कुछ भी चिरस्थायी नहीं है. उन्होंने कहा, "दोनों देशों के संबंधों में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे, लेकिन महत्वपूर्ण कारक जो भारत के विश्वास को नियंत्रित रखता है, वह उसकी यथास्थिति है. किसी भी तरह के बड़े बदलाव, जो बेशक अच्छे लग रहे हों, वह गतिशीलता पैदा करेगा और भारत शायद उसे संभाल पाने में सक्षम नहीं होगा." दुर्रानी ने किताब में कहा है कि हर प्रधानमंत्री का विश्वासपात्र बनने के बजाए विदेश विभाग और सेना को दीर्घावधि की प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिए वार्ता में शामिल रहना चाहिए.

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यह पूछने पर कि दोनों देशों की पड़ोस नीति में अपनी व्यवस्था में बदलाव की वजह से बदलाव होने पर यह कैसे संभव है, दुर्रानी ने कहा, "यदि दोनों देशों की भागीदारी अधिक व्यापक है तो इस बात की संभावना अधिक है कि नीतियों में अधिक परिवर्तन नहीं होगा. वास्तव में मौजूदा सरकार के पास विशेषाधिकार है लेकिन अधिकतर मामलों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरह नीतियों पर रुख अपनाने से काम नहीं चलेगा."

यह पूछने पर कि क्या वह भारत के इस पक्ष से सहमत हैं कि भारत को पाकिस्तानी सेना से प्रत्यक्ष बात करनी चाहिए? इसके जवाब में पूर्व आईएसआई प्रमुख ने कहा, "वार्ताएं कई स्तरों पर होती हैं, आधिकारिक और अनाधिकारिक, लेकिन इस प्रक्रिया के लिए राजनीतिक छत्रछाया सफलता के लिए जरूरी शर्त है.

पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा का बयान कि 'भारत और पाकिस्तान को कश्मीर सहित अपने सभी विवादों के समाधान के लिए बात करने की जरूरत है' पर दुर्रानी ने कहा कि किसी भी सैन्य प्रमुख के लिए शांति वार्ता की वकालत करना अप्रत्याशित नहीं है. उन्होंने कहा, "मैं उनका (बाजवा) दिमाग नहीं पढ़ सकता, लेकिन कोई भी सैन्य प्रमुख उनके वक्तव्य से अलग नहीं कहता. पूर्व सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने तो क्रिकेट कूटनीति का भी इस्तेमाल किया था."

(इनपुट: एजेंसी IANS से भी)

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