PMO से मुआवजे की मांग वाली खेमका की याचिका CIC ने की खारिज
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PMO से मुआवजे की मांग वाली खेमका की याचिका CIC ने की खारिज

केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने आईएएस अधिकारी अशोक खेमका की एक याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री को लिखे पत्र को सार्वजनिक करने में देरी के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से मुआवजे और एक अधिकारी को दंडित करने की मांग की थी।

PMO से मुआवजे की मांग वाली खेमका की याचिका CIC ने की खारिज

नयी दिल्ली: केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने आईएएस अधिकारी अशोक खेमका की एक याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री को लिखे पत्र को सार्वजनिक करने में देरी के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से मुआवजे और एक अधिकारी को दंडित करने की मांग की थी।

खेमका का दावा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने नागपाल के निलंबन के विषय पर सोनिया द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे पत्र को 30 दिन की अनिवार्य अवधि में नहीं दिया इसलिए केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) को दंडित किया जाना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि कई टीवी चैनलों के पास वह पत्र है लेकिन उन्हें उसकी प्रति नहीं दी गयी।

पीएमओ ने कहा कि अपीलकर्ता को सूचना देने के लिए संबंधित कार्यालय की ओर से जानकारी मांगी गयी और कार्यालय से जानकारी मिलने के बाद उसकी एक प्रति अपीलकर्ता को मुहैया कराई गयी। पीएमओ के मुताबिक अखिल भारतीय सेवा के नियमों में बदलाव के लिए कैबिनेट में भी इस विषय पर विचार-विमर्श किया गया था और इसलिए इसे आरटीआई कानून से छूट प्राप्त थी।

खेमका का कहना है कि पीएमओ ने कभी उन्हें नहीं बताया कि कथित पत्र कैबिनेट के समक्ष रखे जाने वाले एजेंडा का हिस्सा रहा है या नहीं। उन्होंने कहा कि मांगी गयी जानकारी को प्रतिवादी ने गलत तरह से कैबिनेट पत्र की तरह पेश किया और यह खराब मिसाल पेश कर सकता है।

बहरहाल मुख्य सूचना आयुक्त आर के माथुर ने उच्च न्यायालय के आदेशों का हवाला देते हुए कहा, ‘इस आयोग की राय है कि दंड का प्रावधान उस स्थिति में है जब पीआईओ ने किसी मंशा से सूचना देने में अवरोध डाला हो या इस तरीके से जानबूझकर काम किया हो ताकि सूचना के प्रावधान को बाधित किया जा सके।’ उन्होंने कहा कि इस मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि पीआईओ ने दुर्भावना से काम किया या सूचना नहीं देने की मंशा से काम किया।

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