इराक युद्ध में भारतीय सेना भेजने के लिए अमेरिका अटल जी पर लगातार दबाव बना रहा था. अटल जी की सूझबूझ से सेना को भेजने का फैसला भी टल गया और अमेरिका से संबंध भी खराब नहीं हुए.
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नई दिल्ली: पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को अमेरिका ने एक खास मकसद के तहत वापस ले लिया था. इस मकसद का खुलासा अमेरिका द्वारा इराक पर किए हमलों के बाद हुआ. दरअसल, आर्थिक प्रतिबंध हटाने के एवज में अमेरिका ने दबाव बनाया कि भारत अपनी सेना को इराक के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए भेजे. अमेरिका के इस दबाव ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को दुविधा में फंसा दिया था. एक तरफ अटल जी अमेरिका को दोबारा नाराज नहीं करना चाहते थे, वहीं दूसरी तरफ भारत से इराक की दोस्ती को भी निभाना चाहते थे. असमंजस की इस घड़ी में अटल जी को अपने कामरेड मित्र की याद आई. उनके कॉमरेड मित्र कोई और नहीं बल्कि सीपीआई (एम) के नेता हरकिशन सिंह सुरजीत थे.
अटल जी, ने हरकिशन सिंह सुरजीत को फोन किया और बोले - अरे कॉमरेड, कैसे हो, कहां हो आजकल, आज तुम्हारे साथ चाय पीने का मन कर रहा है. अटल जी की बात सुनकर हरकिशन सिंह सुरजीत को खटका लग गया. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि जरूर कोई न कोई बात हैं, यह पंडित (हरकिशन सिंह सुरजीत अनौपचारिक बातचीत में अटल जी को पंडित कहकर पुकारते थे.) बिना वजह चाय नहीं पिला सकता है. उन्होंने पूछा - पंडित क्या बात है बताओ, आज अचानक चाय पीने का मन कैसे हो गया. अटल जी बोले - ऐसी कोई बात नहीं है, जल्दी से घर आ जाओ, साथ में चाय पीते हैं. अटल जी की चाय का न्योता स्वीकार कर सुरजीत बोले कि मेरे साथ एवी वर्धन भी बैठे हुए हैं. अटल जी ने कहा - उन्हें भी साथ ले आओ.
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फोन रखने के साथ अटल जी ने निर्देश दिए जैसे ही सुरजीत और वर्धन पहुंचे, उन्हें तुरंत सूचित किया जाए. थोड़े इंतजार के बाद अटल जी के पास सूचना भेजी गई कि सुरजीत और वर्धन की कार सात रेस कोर्स में दाखिल हो गई है. दोनों नेताओं की अगुवानी करने के लिए अटल जी खुद गेट पर पहुंचे. कार से उतरते ही दोनों नेताओं को अटल जी ने ऐसे गले लगाया, जैसे वर्षों पहले बिछड़ा हुआ दोस्त आज मिला हो. अटल जी, दोनों को लेकर लॉन पर पहुंचे, जहां कुर्सियां पहले से उनका इंतजार कर रही थी. दोनों मित्रों को बैठालने के बाद अटल जी कुछ देर के लिए अंदर चले गए. अटल जी के अंदर जाते ही, सुरजीत और वर्धन में एक बार फिर कानाफूसी शुरू हो गई. सुरजीत बोले, मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा, पता नहीं चाय के बहाने पंडित हमसे क्या कराना चाहता था.
अब तक अटल जी वापस आ चुके थे. कुर्सी के बैठने के बाद अटल जी ने स्टाफ को चाय लाने का इशारा किया. जिसके बाद वहां पर पूरी तरह से खामोशी छा गई. इस खामोशी के बीच चाय भी आ गई. चाय आने के बाद अटल जी ने खुद अपने हाथों से चाय बनाई और एक-एक प्याला हरकिशन सिंह सुरजीत और एवी वर्धन की तरफ बढ़ा दिया. दोनों ने चाय ले ली, लेकिन दोनों तरफ से खामोशी बरकार रही. इस लंबी खामोशी ने हरकिशन सिंह सुरजीत और एवी वर्धन के पेट में मरोड़ पैदा करना शुरू की. अधीर होकर हरकिशन सिंह सुरजीत ने पूछ ही लिया - पंडित क्या बात है कुछ बोल नहीं रहे हो. अटल जी ने सिर्फ इतना कहा - कुछ नहीं, चाय कैसे लगी. अब हरकिशन सिंह सुरजीत को पूरा विश्वास हो गया कि अटल जी, एक कप चाय के बदले उनसे कुछ बड़ा कराना चाहते हैं.
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सुरजीत और वर्धन ने चाय की पहली चुश्की ली ही थी तभी अटल जी बोले - अमेरिका का बहुत दबाव है, सेना को इराक भेजना ही होगा. अटल जी की बात सुनकर वर्धन विफर पड़े. वर्धन का गुस्सा सातवें आसमान पर था. उन्होंने कहा - पंडित जी, यह संभव नहीं है. अब वर्धन लगातार बोले जा रहे थे और अटल जी बेहद शांति से उनकी बात सुनते जा रहे थे. इस बातचीत के दौरान वर्धन का गुस्सा इस कदर बढ़ गया कि उनके हाथ से चाय का कप छिटक कर दूर जा गिरा और चाय फैल गई. अटल जी ने बेहद शांति से घंटी बजाई और दूसरी चाय लाने के लिए बोला. दूसरी चाय गई. वर्धन ने जैसे ही चाय के कप को ओठों से लगाया, तभी अटल जी फिर बोले - कॉमरेड, बहुत दबाव है. इस बार हरकिशन सिंह सुरजीत का गुस्सा फूट पड़ा.
उन्होंने कहा - पंडित, तुम्हें क्या लगता है, एक चाय पिलाकर तुम किसी भी बात के लिए हामी भरवा लोगे. तुम अब दोस्ती का नाजायज फायदा उठा रहे हो. हरकिशन सिंह सुरजीत की बात सुनकर अटल जी मुस्कुराए और बोले - कॉमरेड, यहां मुझ पर चिल्लाने से कुछ नहीं होगा. सड़कों पर लेफ्ट की खामोशी अभी तक बरकरार है. अटल जी की यह बात सुनकर हरकिशन सिंह सुरजीत को ऐसा झटका लगा, जैसे वह गहरी नींद से जागे हों. उन्हें कहा - पंडित, तुम परेशान मत हो, आज से ही हमारा सड़कों पर प्रदर्शन शुरू हो जाएगा. अटल जी फिर बोले - कॉमरेड इतने से काम नहीं चलेगा. सोनिया जी और डॉक्टर साहब (डॉ.मनमोहन सिंह) से पूछो संसद बिना हल्ले के कैसे चल रही है.
अटल जी से इशारा मिलते ही हरकिशन सिंह सुरजीत ने तुरंत सोनिया गांधी और डॉ. मनमोहन सिंह से बात की. अगले ही दिन से संसद में इराक में सेना भेजने को लेकर हंगामा शुरू हो गया. इस हंगामे के चलते संसद की कार्रवाई को रोकना पड़ा. संसद और सड़क पर गतिरोध पैदा होने के बाद अटल जी ने अमेरिका को संदेश भेज दिया कि देश की संसद और सड़क में सेना को इराक भेजने के फैसले पर विरोध चल रहा है. देश की आंतरिक स्थिति इन दिनों ठीक नहीं है. लिहाजा, इन परिस्थितियों में उनके लिए सेना को इराक भेजना संभव नहीं होगा. इस तरह, अटल जी एक कुशल रणनीतिकार की तरह इस दुविधा से न केवल बाहर निकलने में कामयाब रहे, बल्कि सेना को इराक भेजने का फैसला भी टल गया.
(कुछ वर्षों बाद, हरकिशन सिंह सुरजीत ने पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत के दौरान इस घटनाक्रम को साझा किया था.)