जब अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि राजीव गांधी की वजह से जिंदा हूं
आजादी के बाद सबसे लंबे समय तक राज करने वाले नेहरू-गांधी परिवार के साथ अटल बिहारी वाजपेयी के रिश्ते सहज रहे.
नई दिल्ली: भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि वह 1952 से चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन कभी किसी पर कीचड़ नहीं उछाला. वह दरअसल राजनीति में मानवीय मूल्यों के पक्षधर थे. इसकी बानगी इसी बात से समझी जा सकती है कि उनके इस देश में आजादी के बाद सबसे लंबे समय तक राज करने वाले नेहरू-गांधी परिवार के साथ रिश्ते सहज रहे, जबकि विचारधारा के स्तर पर धुर विरोधी थे. नेहरू-गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों से जुड़े उनके किस्सों पर एक नजर:
जब राजीव गांधी का आभार प्रकट किया
1987 में अटल बिहारी वाजपेयी किडनी की समस्या से ग्रसित थे. उस वक्त उसका इलाज अमेरिका में ही संभव था. लेकिन आर्थिक साधनों की तंगी के कारण वह अमेरिका नहीं जा पा रहे थे. इस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को पता नहीं कैसे वाजपेयी की बीमारी के बारे में पता चल गया. उन्होंने अपने दफ्तर में वाजपेयी को बुलाया. उसके बाद कहा कि वे उन्हें संयुक्त राष्ट्र में न्यूयॉर्क जाने वाले भारत के प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रहे हैं. इसके साथ ही जोड़ा कि उम्मीद है कि वे इस मौके का लाभ उठाकर वहां अपना इलाज भी करा सकेंगे. इस घटना का जिक्र मशहूर पत्रकार करण थापर ने अपनी हाल में प्रकाशित किताब द डेविल्स एडवोकेट में किया है. थापर ने लिखा है कि 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने उनको याद करते हुए इस बात को पहली बार सार्वजनिक रूप से कहा. उन्होंने करण थापर को बताया, ''मैं न्यूयॉर्क गया और इस वजह से आज जिंदा हूं.''
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दरअसल न्यूयॉर्क से इलाज कराकर जब वह भारत लौटे तो इस घटना का दोनों ही नेताओं ने किसी से भी जिक्र नहीं किया. कहा जाता है कि इस संदर्भ में उन्होंने पोस्टकार्ड भेजकर राजीव गांधी के प्रति आभार प्रकट किया था. राजीव गांधी की मौत के बाद इस घटना के बारे में जब खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने करण थापर के प्रोग्राम Eyewitness में ये बात कही, तभी पूरी दुनिया को इस बारे में पता चला.
इंदिरा गांधी को कहा 'दुर्गा'?
कहा जाता है कि 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध की पृष्ठभूमि में संसद में अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने संबोधन में इंदिरा गांधी को 'दुर्गा' कहकर संबोधित किया. वह उस दौरान हालांकि विपक्ष के नेता थे लेकिन युद्ध में भारत की उल्लेखनीय सफलता और इंदिरा गांधी की भूमिका के कारण उनको 'दुर्गा' कहकर संबोधित किया. उस युद्ध में बांग्लादेश का उदय हुआ और पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को भारतीय सेना ने बंधक बनाया. हालांकि बाद के वर्षों में इस पर विवाद खड़ा हुआ कि क्या वाजपेयी ने ऐसा कहा था या नहीं?
इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी की किताब ‘हार नहीं मानूंगा- एक अटल जीवन गाथा’ में इस बात का जिक्र किया है. इस किताब में दावा किया गया है कि एक बैठक में वाजपेयी ने कहा था, "इंदिरा ने अपने बाप नेहरू से कुछ नहीं सीखा. मुझे दुख है कि मैंने उन्हें दुर्गा कहा."
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हालांकि इस घटना के तकरीबन ढाई दशक बाद जब वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने तो जाने-माने टीवी पत्रकार रजत शर्मा को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने दुर्गा वाले कथन से साफ इनकार किया. इंटरव्यू में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि मैंने इंदिरा को दुर्गा नहीं कहा था. लेकिन कुछ अखबारों ने कही-सुनी बातों के आधार पर इस तरह की खबर छाप दी. मैंने अगले दिन इसका खंडन किया, तो उसे कोने में समेट दिया गया.
नेहरू से नाता
1957 में जब अटल बिहारी वाजपेयी बलरामपुर से पहली बार लोकसभा सदस्य बनकर पहुंचे तो सदन में उनके भाषणों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को बेहद प्रभावित किया. विदेश मामलों में वाजपेयी की जबर्दस्त पकड़ के पंडित नेहरू कायल हो गए. उस जमाने में वाजपेयी लोकसभा में सबसे पिछली बेंचों पर बैठते थे लेकिन इसके बावजूद पंडित नेहरू उनके भाषणों को खासा तवज्जो देते थे.
इन स्टेट्समैन नेताओं के रिश्तों से जुड़े कुछ किस्सों का वरिष्ठ पत्रकार किंगशुक नाग ने अपनी किताब 'अटल बिहारी वाजपेयी- ए मैन फॉर ऑल सीजन' में जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि दरअसल एक बार जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री भारत की यात्रा पर आए तो पंडित नेहरू ने वाजपेयी से उनका विशिष्ट अंदाज में परिचय कराते हुए कहा, "इनसे मिलिए. ये विपक्ष के उभरते हुए युवा नेता हैं. मेरी हमेशा आलोचना करते हैं लेकिन इनमें मैं भविष्य की बहुत संभावनाएं देखता हूं."
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इसी तरह यह भी कहा जाता है कि एक बार पंडित नेहरू ने किसी विदेशी अतिथि से अटल बिहारी वाजपेयी का परिचय संभावित भावी प्रधानमंत्री के रूप में कराया.
नाग ने अपनी किताब में 1977 की एक घटना का जिक्र किया है जिससे पता चलता है कि पंडित नेहरू के प्रति वाजपेयी के मन में कितना आदर था. उनके मुताबिक 1977 में जब वाजपेयी विदेश मंत्री बने तो जब कार्यभार संभालने के लिए साउथ ब्लॉक के अपने दफ्तर पहुंचे तो उन्होंने गौर किया कि वह पर लगा पंडित नेहरू की तस्वीर गायब है. उन्होंने तुरंत अपने सेकेट्री से इस संबंध में पूछा. पता लगा कि कुछ अधिकारियों ने जानबूझकर वह तस्वीर वहां से हटा दी थी. वो शायद इसलिए क्योंकि पंडित नेहरू विरोधी दल के नेता थे. लेकिन वाजपेयी ने आदेश देते हुए कहा कि उस तस्वीर को फिर से वहीं लगा दिया जाए.