गांधीजी की हत्या से ज्यादा गंभीर है बाबरी मस्जिद ढहाने की घटना : ओवैसी
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गांधीजी की हत्या से ज्यादा गंभीर है बाबरी मस्जिद ढहाने की घटना : ओवैसी

गांधीजी की हत्या से ज्यादा गंभीर है बाबरी मस्जिद ढहाने की घटना : ओवैसी

हैदराबादः एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने आज बाबरी मस्जिद ढहाने की घटना को महात्मा गांधी की हत्या से ‘‘ज्यादा गंभीर’’ बताते हुए सुनवाई पूरी होने में देरी की निंदा की. उन्होंने कहा कि वर्ष 1992 में ‘‘राष्ट्रीय शर्म’’ के लिए जिम्मेदार लोग आज देश चला रहे हैं.

हैदराबाद से लोकसभा सदस्य ने ट्वीट किया,   ‘‘महात्मा गांधी हत्याकांड की सुनवाई दो वर्ष में पूरी हुई और बाबरी मस्जिद ढहाने की घटना जो एमके गांधी की हत्या से ज्यादा गंभीर है, उसमें अब तक फैसला नहीं आया है।’’ 

 

उन्होंने कहा, ‘‘गांधी जी के हत्यारों को दोषी ठहराकर फांसी पर लटकाया गया और बाबरी :कांड: के आरोपियों को केन्द्रीय मंत्री बनाया गया, पद्म विभूषण से नवाजा गया, न्याय प्रणाली धीरे चलती है।’’

उन्होंने ये टिप्पणियां ऐसे समय कीं जब उच्चतम न्यायालय ने बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में भाजपा के शीर्ष नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती के खिलाफ आपराधिक साजिश का आरेाप बहाल करने के सीबीआई के अनुरोध को स्वीकार किया. 

शीर्ष अदालत ने हालांकि कहा कि राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह को संवैधानिक छूट मिली हुई है और उनके खिलाफ पद से हटने के बाद सुनवाई हो सकती है.  कल्याण सिंह वर्ष 1992 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. 

ओवैसी ने मीडिया से कहा, ‘‘इसमें 24 साल की देरी हुई. 24-25 साल गुजर चुके हैं. लेकिन आखिरकार उच्चतम न्यायालय ने फैसला किया कि साजिश का आरोप होना चाहिए.  लेकिन मुझे आशा है कि उच्चतम न्यायालय :वर्ष 1992 से लंबित: अवमानना याचिका पर भी फैसला करेगी.’’

उन्होंने कई ट्वीट में कहा, ‘‘क्या कल्याण सिंह इस्तीफा देकर सुनवाई का सामना करेंगे या राज्यपाल होने के पर्दे के पीछे छिपेंगे, क्या मोदी सरकार न्याय के हित में उन्हें हटाएंगे, मुझे संदेह हैं.’’

ओवैसी ने कहा कि उनको लगता है कि अगर उच्चतम न्यायालय ने कार सेवा की अनुमति नहीं दी होती तो बाबरी मस्जिद नहीं ठहायी जाती और उच्चतम न्यायालय का अभी भी अवमानना याचिका पर सुनवाई करना बाकी है.

उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार के हलफनामा देने के बाद 28 नवंबर 1992 में ‘सांकेतिक’ कार सेवा की अनुमति दी थी। उत्तर प्रदेश सरकार ने शांतिपूर्ण कार सेवा के लिये हलफनामा दिया था. इसके बाद 6 दिसंबर को कारसेवकों ने 16वीं सदी की यह मस्जिद गिरा दी थी.

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