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DNA: बरेली हिंसा के पीछे मौलाना या सरकार? दंगाइयों को बेगुनाह बताने वाला का सच आया सामने

Bareilly Violence: जमात-ए-इस्लामी ने बरेली हिंसा के लिए यूपी पुलिस को जिम्मेदार ठहराया है. उनका कहना है कि हिंसा के लिए मौलाना तौकीर रजा नहीं, बल्कि पुलिस जिम्मेदार है. पुलिस ने कार्रवाई की है और दंगाइयों पर नकेल कसी है, लेकिन जमात-ए-इस्लामी इसका विरोध कर रहा है और पुलिस पर ही आरोप लगा रहा है.

 

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DNA: आंखों में धूल सिर्फ पाकिस्तान नहीं झोंक रहा हमारे देश में मजहब के नाम पर दुकान चलाने वाले कुछ संगठन भी धूल झोंक रहे हैं. बता दें, दंगाइयों का दुस्साहस बढ़ाने वाले संगठन जमात-ए-इस्लामी ने आरोप लगाया है कि बरेली हिंसा के लिए मौलाना तौकीर रजा नहीं यूपी पुलिस जिम्मेदार है. बरेली में 26 सितंबर को हुई हिंसा के बाद जैसे-जैसे पुलिस साजिश की तह तक पहुंच रही है, हिंसा में शामिल लोगों पर नकेल कस रही है, वैसे-वैसे इस नैरेटिव को तेजी से फैलाया जा रहा है. इस झूठे नैरेटिव के मुताबिक बरेली की हिंसा के लिए उपद्रवी नहीं बल्कि सरकार जिम्मेदार थी. इस सोच के मुताबिक पुलिस को हिंसक भीड़ पर लाठी नहीं चलाना चाहिए था बल्कि चुपचाप पत्थर खाना चाहिए था. इनके मुताबिक भीड़ पत्थर और गोली चलाए तो न्याय लेकिन पुलिस लाठी चलाए तो अन्याय. 

बरेली में पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई को लेकर जमात-ए-इस्लामी ने कैमरे के सामने आकर जो बातें कहीं उसके मुताबिक हिंसा के मास्टरमाइंड कहे जा रहे मौलाना तौकीर रजा मासूम हैं, उनके साथ ज़ुल्म हो रहा है. और पुलिस दोषी है. इनके मुताबिक, मुसलमानों का ग़ुस्सा स्वाभाविक है जबकि आत्मरक्षा में पुलिस का लाठी चलाना मुसलमानों पर ज़ुल्म है. इनके मुताबिक, गिरफ्तार लोगों को रिहा कर दिया जाए और पुलिसवालों को सजा दी जाए, क्योंकि जो लोग पत्थर फेंक रहे थे वो तो मासूम थे जो लोग गोली चला रहे थे, वो भी मासूम थे. जो लोग पुलिसवालों पर हमले कर रहे थे वो सारे के सारे मासूम थे. 

 

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जमात-ए-इस्लामी समाज के लिए खतरा: विजयन 

बता दें, जमात-ए-इस्लामी संगठन का एक लंबा इतिहास है. आजादी से पहले इस संगठन की स्थापना हुई थी और आजादी के बाद ये संगठन भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में अलग-अलग नाम से बना. पाकिस्तान और बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी को हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार और शरिया पर आधारित शासन के लिए जाना जाता है. बांग्लादेश में हिंदू विरोधी हिंसा को बढ़ावा देने में जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश की सबसे बड़ी भूमिका रही है. जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता का विरोध करती है. भारत में भी जमात-ए-इस्लामी पर आरोप लगते रहे हैं. केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने 2024 में आरोप लगाया था कि जमात-ए-इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था को महत्वपूर्ण नहीं मानती, उसके लिए दुनिया भर में इस्लामिक शासन अहम है. 2025 में विजयन ने जमात-ए-इस्लामी को समाज के लिए खतरा भी बताया था.  

बरेली हिंसा के कुछ दिन पहले से आई लव मोहम्मद के नाम पर बरेली का माहौल खराब किया जा रहा था. जिस मौलाना तौकीर रजा को जमात-ए-इस्लामी बेकसूर बता रही है, उन्हीं के दाहिने हाथ माने जाने वाले नफीस ने बरेली में एक पुलिस इंस्पेक्टर का हाथ काटने की धमकी दी थी. बता दें, बरेली में ज़ुमे की नमाज के बाद हजारों लोगों की भीड़ ने बिना अनुमति प्रदर्शन से रोके जाने पर अचानक पत्थर चलाना शुरू कर दिया. यहां तक कि पुलिसवालों पर फायरिंग भी की गई जिसमें 22 पुलिसवाले घायल हो गए. जब उपद्रव भड़कता है, उस समय जमात-ए-इस्लामी के लोग सामने क्यों नहीं आते. जब आई लव मोहम्मद के समर्थन में रैली के दौरान 'सर तन से जुदा' के नारे लगाए जाते हैं, उस समय जमात-ए-इस्लामी नफरती भीड़ को क्यों नहीं समझाती.

जमात-ए-इस्लामी से जुड़े लोगों ने बरेली जाकर गिरफ्तार आरोपियों के परिवार से बात की लेकिन क्या उन पुलिसवालों के यहां भी गए जिन्होंने हिंसक भीड़ की पत्थरबाजी का सामना किया, उनकी गोली खाई. जमात-ए-इस्लामी ने यूपी पुलिस और यूपी सरकार के खिलाफ तो कई आरोप लगाए लेकिन हिंसा के मुख्य आरोपी बताए जा रहे मौलाना तौकीर रजा को ये क्लीन चिट देते हैं. क्लीन चिट देने का काम जांच एजेंसियों और कोर्ट का है जमात-ए-इस्लामी कोई जांच एजेंसी नहीं है. लेकिन इसके बावजूद संभल से लेकर बरेली तक हर बार यही पैटर्न दिखाई देता है. हिंसा के बाद इसी तरह आरोपियों को बेकसूर और मासूम बताया जाता है जबकि पुलिस को पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया जाता है.

एक तरफ बरेली में हिंसा को लेकर झूठे नैरेटिव गढ़े जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ SIT की छानबीन में हिंसा को लेकर नई-नई जानकारी सामने आ रही है. अब बरेली में पत्थरबाजी को लेकर समाजवादी पार्टी के एक पूर्व पार्षद का नाम सामने आ रहा है. सूत्रों के मुताबिक समाजवादी पार्टी के पूर्व पार्षद वाजिद बेग के बारात घर में 26 सितंबर की हिंसा की साजिश रची गई थी. पुलिस की जांच तेज होने के बाद वाजिद बेग फरार हो गया है.

 

लेकिन जांच के हवाले से जो खबर आ रही है उसके मुताबिक हिंसा से 1 हफ्ते पहले यानी 19 सितंबर को वाजिद बेग के बारात घर में मौलाना तौकीर रजा की पार्टी IMC के नेताओं ने बैठक की थी. बारात घर हिंसा की जगह से करीब 8 किलोमीटर दूर है. इस बैठक में वाजिद बेग के अलावा तौकीर रजा के करीबी नदीम, नफीस, और अनीस सकलैनी भी मौजूद थे. स्थानीय लोग ये भी बताते हैं कि उस मीटिंग में तौकीर रजा भी मौजूद थे. फिलहाल बरेली विकास प्राधिकरण ने बारात घर को सील कर दिया है.

आरिफ बिल्डर के घर रची गई थी साजिश

19 सितंबर के बाद बरेली हिंसा की साजिश रचने के लिए दूसरी बैठक आरिफ बिल्डर के स्काई लार्क होटल में हुई. स्काई लार्क वाली मीटिंग में ही तय हुआ था कि अपराधी मानसिकता के लोगों को ज़ुमे वाले दिन बरेली में कैसे बुलाना है. सूत्रों के मुताबिक बरेली हिंसा में शामिल और शाहजहांपुर के रहने वाले 2 आरोपी इदरीस और इकबाल ने कबूल किया है कि ज़ुमे वाले दिन तौकीर रजा के करीबी नदीम ने उन्हें बरेली आने के लिए कहा था. इदरीस और इकबाल को पिछले दिनों एनकाउंटर के बाद बरेली पुलिस ने गिरफ्तार किया था. नदीम को गिरफ्तार कर लिया गया है जबकि वाजिद बेग की तलाश में पुलिस जुटी हुई है. लेकिन अगर कल वो गिरफ्तार किया जाता है तो इस बात की पूरी संभावना है कि जमात-ए-इस्लामी उसका बचाव करने के लिए सामने आ सकती है, उसे बेकसूर बता सकती है. जमात-ए-इस्लामी जिस तरह मौलाना तौकीर रजा को क्लीन चिट दे रही है, ठीक उसी तरह वाजिद बेग को भी मासूम बता सकती है. इस बात पर ध्यान नहीं देगी कि उसके बारात घर में हिंसा की साजिश रची गई थी.

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Shashank Shekhar Mishra

ज़ी न्यूज में बतौर सब एडिटर कार्यरत. देश की राजनीति से लेकर दुनिया के बनते-बिगड़ते सत्ता समीकरणों एवं घटनाओं को कवर करते हैं. पत्रकारिता में 5 वर्षों का अनुभव है. इससे पहले टाइम्स नाउ नवभारत, जागरण...और पढ़ें

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