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इतिहास का वो निर्णायक युद्ध, जब डर से थर्रा रहा था बाबर! महाराणा सांगा की ताकत से डरकर रातोंरात क्यों बदल दी थी अपनी रणनीति?

Rana Sanga: भारत में मुगलों का शासन काफी लंबे समय तक चला, लेकिन इसकी शुरूआत बाबर से हुई. पहले दिल्ली की गद्दी पर अफगानी राजा का शासन था, लेकिन बाबर ने इब्राहिम लोधी को हराकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया. हालांकि इस जीत के बाद बाबर ने मेवाड़ के महाराणा सांगा को धोखा दिया. 

इतिहास का वो निर्णायक युद्ध, जब डर से थर्रा रहा था बाबर! महाराणा सांगा की ताकत से डरकर रातोंरात क्यों बदल दी थी अपनी रणनीति?

Battle of Khanwa: 16वीं शताब्दी की शुरुआत भारतीय इतिहास का एक बहुत ही निर्णायक मोड़ थी. इस दौरान दो बड़ी शक्तियां मेवाड़ के महाराणा सांगा और मध्य एशिया के मुगल शासक ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर, एक-दूसरे के सामने खड़ी थीं. इन दोनों के बीच 1527 ईस्वी में 'खानवा का युद्ध' हुआ, जिसने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव को मजबूत करने का काम किया. इस युद्ध की शुरुआत और अंत दोनों ही नाटकीय थे, और इसने भारत की भावी राजनीति की दिशा तय कर दी थी.

यह कहानी 1517 ईस्वी से शुरू होती है, जब दिल्ली सल्तनत पर अफगान शासक इब्राहिम लोधी का राज था. लोधी के शासनकाल में कई क्षेत्रीय शासक उससे नाराज थे. इसी माहौल में, लाहौर के गवर्नर दौलत खान ने लोधी को हराने के लिए काबुल के शासक बाबर को भारत आने का न्योता भेजा. Maharana Sanga; The Hindupat, The Last Great Leader Of The Rajput Race नाम की एक किताब में इससे जुड़ी कई जानकारियां हैं. 

बताया जाता है कि बाबर के भारत आने के न्योते के बीच, मेवाड़ के महाराणा सांगा ने भी बाबर को एक संदेश भेजा था. बाबर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि सांगा चाहते थे कि जब बाबर दिल्ली पर कब्जा कर ले, तो वह उन्हें (सांगा को) आगरा सौंप दे. इस दावे की ऐतिहासिक पुष्टि अलग-अलग इतिहासकारों के बीच मतभेद का विषय रही है, लेकिन यह स्पष्ट है कि दोनों ही शक्तियां लोधी को सत्ता से हटाने में रुचि रखती थीं.

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पानीपत के बाद धोखा
1526 ईस्वी में, पानीपत के पहले युद्ध में बाबर ने इब्राहिम लोधी को हरा दिया और दिल्ली पर मुगलों का कब्जा हो गया. इस जीत के साथ ही भारत में अफगान शासन का अंत हो गया. इस जीत के बाद सांगा को उम्मीद थी कि बाबर समझौते के अनुसार आगरा उन्हें सौंप देगा, लेकिन बाबर ने ऐसा नहीं किया. उसने दिल्ली के साथ आगरा पर भी अपना कब्जा जमा लिया. जब बाबर की सेनाएं आगरा से आगे बढ़कर बयाना (जो रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र था) की तरफ बढ़ीं, तो महाराणा सांगा को लगा कि बाबर उनकी संप्रभुता (स्वतंत्रता) के लिए खतरा बन रहा है. यहीं से दोनों के बीच सीधी दुश्मनी शुरू हुई. सांगा ने मुगलों को भारत से बाहर खदेड़ने का संकल्प लिया.

राणा ने खाई मुगलों को भगाने की कसम
बाबर ने बयाना में राजपूतों पर निर्णायक हमला करने के लिए अपनी सेना भेजी, जिसे निज़ाम के भाई अलीम खान ने भी अपनी सेना के साथ समर्थन दिया. हालांकि, शुरुआती दौर में मुगल सेना को करारी हार का सामना करना पड़ा और निज़ाम की सेना पीछे हटने लगी. इसके बावजूद, निजाम ने अंततः बाबर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. बाबर ने उसकी अधीनता स्वीकार करते हुए उसे एक महत्वपूर्ण जागीर सौंप दी. यह घटना महाराणा सांगा के लिए एक बड़ी निराशा साबित हुई. इस विश्वासघात से आहत होकर, सांगा ने कसम खाई कि वह मुग़लों को भारत से बाहर खदेड़कर ही रहेंगे.

इसके बाद, 11 फरवरी 1527 ईस्वी को, बाबर ने आगरा से प्रस्थान किया और महाराणा सांगा के विरुद्ध युद्ध की औपचारिक घोषणा कर दी. बाबर ने मेधाकुर से फतेहपुर सीकरी तक अपनी सेना को संगठित किया और ज़रूरी युद्ध-सामग्री जुटाई. दूसरी ओर, महाराणा सांगा भी चित्तौड़ से अपनी विशाल सेना के साथ रवाना हुए. इस युद्ध में उन्हें अफ़ग़ान शासक राजकुमार महमूद खान लोधी का समर्थन मिला, क्योंकि राणा ने उन्हें शरण दी थी. सांगा शीघ्र ही रणथंभौर पहुंचे. बाबर इस खतरे से पूरी तरह अवगत था. उसने अपनी आत्मकथा में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया था कि महाराणा सांगा एक अत्यंत शक्तिशाली शासक हैं, जिन्होंने अपनी तलवार के बल पर पूरे विश्व में ख्याति अर्जित की है.

खानवा के मैदान में तैयारी
महाराणा सांगा ने चित्तौड़ से अपनी विशाल सेना के साथ कूच किया. उन्हें कई राजपूत राजाओं और अन्य सहयोगियों का समर्थन मिला. बाबर, जो सांगा की ताकत से वाकिफ था, इस युद्ध के लिए बहुत चिंतित था. बाबर ने अपनी सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए. उसने सार्वजनिक रूप से शराब छोड़ने की घोषणा की और शराब के बर्तन तोड़ दिए. उसने अपनी सेना से कहा कि यह युद्ध उनके धर्म की रक्षा के लिए लड़ा जा रहा है और उन्हें कुरान की कसम दिलाई कि वे भागेंगे नहीं. इस कदम से उसकी सेना में नया जोश भर गया. दूसरी ओर, महाराणा सांगा की सेना बहुत बड़ी थी, लेकिन उनके सहयोगियों के उद्देश्य अलग-अलग थे, जिससे उनकी एकजुटता में कमी थी.

युद्ध और परिणाम
12 मार्च 1527 को फतेहपुर सीकरी के पास खानवा के मैदान में दोनों सेनाएं टकराईं. इस युद्ध में बाबर ने उस्मानी युद्ध नीति (तुलगमा) और तोपों का इस्तेमाल किया, जो उस समय भारतीय सेनाओं के लिए नई थीं. युद्ध के दौरान सांगा को सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब उनके एक महत्वपूर्ण सहयोगी राजा Silhiddi ने विश्वासघात करते हुए अपनी सेना के साथ बाबर का साथ दिया. इसके तुरंत बाद, युद्ध लड़ते समय महाराणा सांगा गंभीर रूप से घायल होकर बेहोश हो गए. उन्हें तुरंत युद्ध क्षेत्र से बाहर ले जाया गया. नेतृत्व विहीन होने और नई युद्ध तकनीकों के कारण, सांगा की सेना अंततः हार गई. हालांकि इस युद्ध में बाबर को यह भी एहसास हो गया है कि सांगा काफी ताकतवर है.

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Lalit Kishor

ट्रैवल और वायरल स्टोरीज करते हैं. इन्हें स्पोर्ट्स, लाइफस्टाइल, एजुकेशन और पॉलिटिकल विषयों पर भी लिखने का अनुभव है. पत्रकारिता की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की है. भारत स्काउट्स ए...और पढ़ें

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