Begum Samru Sardhana: बेशुमार दौलत और हुस्न की वो 'मलिका', जिस पर मुगल हों या अंग्रेज, सब थे फिदा!
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Begum Samru Sardhana: बेशुमार दौलत और हुस्न की वो 'मलिका', जिस पर मुगल हों या अंग्रेज, सब थे फिदा!

Begum Samru Sardhana: मुगलिया दौर का हिंदुस्तान कई किस्सागोई और दास्तानों से भरा है. मेरठ से 24 किमी की दूरी पर स्थित सरधना का मशहूर चर्च, जहां खूबसूरती की मलिका बेगम समरू की रूह बसती है. ये जगह संजोए है एक ऐसी दिलेर महिला की कहानी जो तवायफ से प्रेमिका बनी, पत्नी बनी और फिर विधवा हुई तो एक रियासत की जागीरदार बन गई.

बेगम समरू सरधना (फोटो: सोशल मीडिया)

Most beautiful lady of Mughal period: भारत के इतिहास (History of India) में जब मुगलों (Mughals) का पतन हो रहा था और गोरी चमड़ी वाले बेरहम अंग्रेज अपनी हुकूमत जमाने की कोशिश कर रहे थे, तब एक ऐसी महिला सामने आई, जिसने दिल्ली से सटी सरधाना रियासत पर राज करने के साथ मुगलों और अंग्रेजों दोनों के बीच अपनी अपनी अलग पहचान बनाई. एक आम नर्तकी जिसे तवायफ भी कहा जाता था वो उस दौर की सबसे प्रभावशाली बेगम समरू कैसे बन गई आइए जानते हैं.

'मुगल दौर की सबसे खूबसूरत हसीना

दिल्ली के चांदनी चौक के एक कोठे में पली फरजाना देखते देखते अपने दौर की सबसे ताकतवर महिला बन गई. फरजाना बेहद खूबसूरत थीं. जाबांजी उनमें कूट-कूट कर भरी थी. फरहाना जब एक कोठे में बड़ी हो रही थीं, तब अंग्रेजों का भारत के एक बड़े हिस्से पर कब्जा हो चुका था. तब मुगलों ने यूरोप से भाड़े के लड़ाके बुलाए. साल 1760 के उस दशक में किराए के सैनिक अक्सर मनोरंजन के लिए चांदनी चौक के उसी कोठे में आते थे जहां फरजाना की खूबसूरती का सिक्का चलता था. तभी एक दिन फ्रांस की सेना में रह चुका सैनिक वॉल्टर रेनहार्ट वहां पहुंचा. उसकी नजर कोठे पर नाच रही फरजाना पर पड़ी तो वो हमेशा के लिए उसी का हो गया.  

फरजाना के समरू बनने की कहानी

बक्सर की लड़ाई के बाद रेनहार्ड बादशाह शाह आलम II के वजीर मिर्जा नजफ खान की सेना में शामिल हो गया. उसे मेरठ की सरधना जागीर इनाम में दी गई. रेनहार्ड फरजाना को अपने साथ मेरठ ले आया और यहीं से उसकी जिंदगी बदल गई. रेनहार्ट के साथ से ही फरजाना को नया उपनाम मिला, समरू. रेनहार्ट शादीशुदा था. फरजाना उससे शादी करती तो कभी तख्त तक न पहुंच पाती. मुगल भी उसकी खूबसूरती पर फिदा थे. उन्होंने ही फरजाना को 'बेगम' का खिताब दिया. रेनहार्ड का साथ मिलने के बाद उसे बेगम समरू कहा जाने लगा था.

सेना की ताकत से बनीं 'जेब-उन-निस्‍सा' 

1778 में जब रेनहार्ट की मौत के बाद जब फरजाना ने सरधाना का राज संभाला. तब फरजाना से बेगम समरू बनी रानी के पास 3000 से ज्‍यादा सिपाहियों, यूरोपियन अफसरों और बंदूकधारियों की सेना थी. ऐसे में कमजोर हो रहे मुगल जब हमले का शिकार होते, तो मदद के लिए दिल्ली से सटी मेरठ की रियासत की मालकिन बेगम समरू का रुख करते. तब बेगम समरू अपनी फौज की कुछ खास यूनिट्स को अपने सेनापति जॉर्ज थॉमस की निगरानी में भेज देती थीं. बेगम समरू ने इस यूनिट को हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहने का हुक्‍म दे रखा था. ऐसे में जब शाह आलम द्वितीय पर हमला हुआ तो बेगम समरू ने फौरन मदद भेजी. जिससे खुश होकर बादशाह ने बेगम समरू को 'जेब-उन-निस्‍सा' का खिताब दे दिया.

क्‍यों छोड़ा इस्‍लाम?

बेगम समरू का दिमाग बड़ा तेज था.उन्‍होंने करीब 50 सालों तक राज किया. वो बड़ी होशियार थीं. रेनहार्ट की मौत के बाद बेगम समरू ने इस्‍लाम छोड़ दिया. वो जीवन के आखिरी दौर में ईसाई बन गईं. तब उन्हें जोएना के नाम से नई पहचान मिली. सेना के एक इटैलियन अफसर से उन्‍होंने सरधना में एक चर्च बनवाया. 

करोड़ों की मालकिन थीं बेगम समरू

बेगम समरू ने जनवरी 1836 में आखिरी सांस ली. उनकी मौत के बाद सरधना की बेगम समरू की प्रॉपर्टी ईस्‍ट इंडिया कंपनी को मिल गई. कहा जाता है बेगम समरू के पास सोने की करीब 5.5 करोड़ मुहरें थीं. यानी वो करोड़ों रुपये की मालकिन थी. बेगम समरू से जोएना बनी फरजाना को सरधना के चर्च में ही दफनाया गया था.

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