शिवानंद तिवारी अपने बयान के जरिए जेडीयू एमएलए पप्पू पांडे और नीतीश कुमार को कठघरे में खड़ा कर रहे थे. लेकिन वो ये भूल गए कि उनकी पार्टी में भी कई ऐसे नेता हैं, जिनके सियासत की बुनियाद भी कहीं न कहीं दागदार रही है.
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पटना: आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी अपने बेबाक बयानों के लिए सुर्खियों में रहते हैं. बयानों के जरिए शिवानंद न केवल अपने विरोधियों के पसीने छुड़ाते हैं, बल्कि खुद के लिए भी मुसीबत खड़ी कर लेते हैं. इस बार का उनका दिया गया बयान भी कुछ ऐसे ही संकेत दे रहा है.
दरअसल, मामला बिहार में लॉ एंड आर्डर को दुरुस्त करने का है. बिहार में लॉ एंड आर्डर हमेशा से मुद्दा रहा है. सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सियासत की धूरी में लॉ एंड आर्डर का मुद्दा जरुर रहता है. इसी मुद्दे पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने शनिवार को पुलिस विभाग के आलाधिकारियों के साथ बैठक की.
बिहार कब होगा अपराध मुक्त! pic.twitter.com/A99YZZk619
— Zee Bihar Jharkhand (@ZeeBiharNews) November 29, 2020
इस दौरान नीतीश कुमार ने बिहार में कानून व्यवस्था की समीक्षा की और अधिकारियों को कई दिशा-निर्देश भी दिए. लेकिन विपक्ष की ओर से आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने जो बयान दिया वो वाकई कई सवाल खड़े करता है.
शिवानंद तिवारी ने कहा है कि अपराध की समीक्षा से क्या होगा. अपराध क्यों हो रहा जबतक नहीं इसको नहीं समझा जाएगा उसके कारणों को दूर नहीं कीजिएगा, तब तक कैसे अपराध पर नियंत्रण पाया जा सकता है. इतनी बेरोजगारी गरीबी, गैर बराबरी है जिसका कोई हिसाब नहीं है. दूसरी तरफ लोग ये देख रहे हैं कि अपराध के जरिए लोग कितने बड़े हो जाते हैं. कहां से कहां पहुंच गए.
अपराध के प्रति बढ़ रहा है आकर्षण
गोपालगंज में शनिवार को हुए हत्याकांड में ही जिनके करीबियों की हत्या हुई ये लोग कौन हैं. तीस साल पहले इनकी क्या हैसियत थी और आज ये कहां पहुंच गए. क्राइम में आकर्षण लोगों का बढ़ रहा है. हर तरफ से हताश निराश लोगों को लगता है कि इसके जरिए हम मुकाम हासिल कर सकते हैं. इसी के जरिये लोग बड़े-बड़े नेता बन रहे हैं, एमएलए बन जाते हैं. सीएम ऐसे लोगों के स्वागत में खड़े रहते हैं. इसलिए भी क्राइम को कंट्रोल करना आसान नहीं हैं.
दरअसल, शिवानंद तिवारी अपने बयान के जरिए जेडीयू एमएलए पप्पू पांडे और नीतीश कुमार को कठघरे में खड़ा कर रहे थे. लेकिन वो ये भूल गए कि उनकी पार्टी में भी कई ऐसे नेता हैं, जिनके सियासत की बुनियाद भी कहीं न कहीं दागदार रही है. शायद ही कोई ऐसा दल बचा हो जो दागी छवी के नेताओं की राजनीति से खुद को बचा सका हो. शिवानंद तिवारी ने मामला जरुर बहस का उठाया है. लेकिन इसका दायरा किसी एक दल तक सीमित नहीं रखा जा सकता है.