सितम्बर 2019 तक की स्थिति पर नज़र डालें तो इसके तहत 7581 करोड़ रुपये गरीबों के नि:शुल्क इलाज पर खर्च हुए, लेकिन इसमें से पचास फीसदी खर्च का लाभ तमिलनाडु, गुजरात, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के लोगों को मिला.
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पटना: बिहार में आयुष्मान भारत योजना की स्थिति चिंताजनक है. केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जाते रहे हैं, लेकिन बिहार में स्थिति संतोषजनक नहीं है. कार्ड होने के बाद भी मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. दक्षिण के राज्यों की तुलना में यहां बेहद कम लाभार्थी हैं. राज्य सरकार ढांचागत विकास की कमी को इसका कारण बता रही है.
आयुष्मान भारत योजना (Ayushman Bharat) की शुरुआत गरीबों के स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर किया गया था. इसके तहत गरीबों को इलाज के लिए सरकार की ओर से सुविधा दी जाती है. इसके तहत पांच लाख तक का इलाज मुफ्त में होता है.
सितम्बर 2019 तक की स्थिति पर नज़र डालें तो इसके तहत 7581 करोड़ रुपये गरीबों के नि:शुल्क इलाज पर खर्च हुए, लेकिन इसमें से पचास फीसदी खर्च का लाभ तमिलनाडु, गुजरात, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के लोगों को मिला. जबकि बिहार इस मामले में बेहद पीछे रहा. इन राज्यों की तुलना में बिहार का हिस्सा नगण्य जैसा है. बिहार में निजी अस्पतालों की बेरुखी से योजना ढीली पड़ी है. सरकारी अस्पतालों का हाल भी जान लीजिए. महेश्वर यादव अपनी बीमार पत्नी उर्मिला देवी का इलाज कराने आए. वह गरीब हैं, लेकिन उन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है.
आईजीआईएमएस (IGIMS) में आयुष्मान कार्ड लेकर मरीज और उनके परिजन घूम रहे हैं, लेकिन उन्हें कई तरह की समस्या का सामना करना पड़ रहा है. मज़बूरी में वे पैसा देकर इलाज करवा रहे हैं. सूर्यदेव प्रसाद के पास कार्ड तो मौजूद है और वे इस सेवा का लाभ लेना चाहते हैं, लेकिन उन्हें इसका लाभ यहां नहीं मिल पा रहा है. वे न सिर्फ मायूस हैं, बल्कि व्यवस्था से क्षुब्ध हैं.
आसिफ की मां बीमार है. इलाज कराने के लिए आईजीआईएमएस उन्हें लाया गया. लेकिन इन्हें भी आयुष्मान कार्ड से कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है. आसिफ का कहना है कि जब वो अपनी मां का सभी जांच बाहर से पैसा लगाकर करवा ही ले रहा है. दवा भी बाहर से खरीदना पड़ रहा है तो फिर इस कार्ड का क्या फायदा. आसिफ जैसे कई लोग हैं जिन्हें कार्ड होने के बावजूद इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है.
7581 करोड़ रुपए सितम्बर 2019 तक आयुष्मान भारत योजना में देश में खर्च हुए हैं, लेकिन बिहार का इसमें हिस्सेदारी मात्र 89 करोड़ 19 लाख रुपये की है. इस चिंताजनक स्थिति को लेकर स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार कहते हैं कि ढांचागत विकास में समय लग रहा है. इसके कारण से आशानुकूल प्रदर्शन इसमें नहीं हो पाया है.
बिहार में योजना शुरू होने में भी वक्त लगा. जबकि इस योजना को लेकर उत्साह की भी कमी देखी जा रही है. हालांकि इसे उपलब्धि के तौर पर गिनाने में नेता, मंत्री कोई कमी नहीं करते, लेकिन हकीकत इससे दूर है. ऐसे में मरीजों को योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. निजी हॉस्पिटल समय से भुगतान नहीं होने समेत हॉस्पिटल कर्मचारियों के पर्याप्त प्रशिक्षिण नहीं मिल पाने को वजह बताकर पल्ला झार ले रहा है.
बिहार में कार्ड को लेकर कई तरह की समस्या भी है. बड़ी संख्या में जरूरतमंदों को कार्ड नहीं मिला है. कई बार मरीज इलाज कराकर योजना का लाभ के लिए भी आ रहे हैं. राशन कार्ड में दर्ज नाम और सूचि में दर्ज नाम में अंतर से भी लाभार्थी को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.