राजधानी पटना स्थित न्यू पुलिस लाईन में जाति देखकर बैरक मिलते हैं. यह सुनने में थोड़ा अजीब जरुर लगे, लेकिन इस जमाने की ये तल्ख सच्चाई है.
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पटनाः राजधानी पटना स्थित न्यू पुलिस लाईन में जाति देखकर बैरक मिलते हैं. यह सुनने में थोड़ा अजीब जरुर लगे, लेकिन इस जमाने की ये तल्ख सच्चाई है. यहां ऊंची जातिवाले को अच्छे बैरक में जगह मिल जाती है. लेकिन जो कमजोर तबके से आते हैं, उसे या तो ट्वायलेट में रहना पड़ता है या फिर झोपड़े में बीताना पड़ता है.
जी हां, पटना न्यू पुलिस लाईन की यह कड़वी सच्चाई है. जिसे सहजता से स्वीकार करना आसान नही हैं. पुलिस लाइन में बैरक बांटने में भेदभाव होता है. ऊंची जाति के लोगों को अच्छे बैरक आसानी से मिल जाते हैं. लेकिन कमजोर तबके के पुलिसकर्मियों को काफी समझौता करना पडता है. उन्हें या तो झोपड़ी में रहना पडता है या फिर शौचालय में भी रहने को मजबूर होना पड़ता है. भेदभाव की पीड़ा झेल रहे ऐसे ही एक पुलिसकर्मी की दास्तान देखने को मिली है.
एक पुलिसकर्मी ने अनजाने में ही अपनी ऐसी सच्चाई बताई है जिसे खुलेआम बोलने की हिम्मत किसी भी पुलिसकर्मी के बस की बात नहीं है. इतना ही नहीं इस सख्स ने यह भी बताया कि कैसे न्यू पुलिसलाईन में परिवारवाद हावी है. यानी कोई रिटायर हो गया तो अपना बेड और कमरा विरासत के रुप में अपने बच्चे के लिए छोड़ जाता है. रिटायर पुलिसर्मी का बच्चा इसी पुलिसलाईन में रहकर अपनी पढाई पूरी करता है और नौकरी ढूंढता है. ऐसी सुविधा उसी पुलिसकर्मी को उपलब्ध है जो या तो ऊंची जाति से आता है या फिर दबंग हो.
इस हकीकत पर कोई पुलिसकर्मी मुंह खोलने को तैयार नहीं, लेकिन इस हकीकत को पटना के एसपी रह चुके किशोर कुणाल बखूबी मानते हैं. किशोर कुणाल का कहना है कि पुलिस लाईन में जाति के आधार पर किचन चला करता था. उनकी कोशिशों के बाद ये परिपार्टी खत्म हुई थी. लेकिन बाद के दिनों में ये बदस्तूर जारी रही. ऐसे में जाति के आधार पर बैरक की बात सामने आती है तो इस सच्चाई को भी झुठलाया नहीं जा सकता.
हालांकि पुलिस के आलाधिकारी इस तल्ख सच्चाई को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं. पटना एसएसपी मनु महाराज कहते हैं कि उन्हें इस तरह के भेदभाव की जानकारी नहीं, अगर शिकायत मिली तो कार्रवाई की जाएगी.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर किस-किस पर कार्रवाई की जाएगी. क्या कार्रवाई से सिस्टम में सुधार हो जाएगा, क्या जाति के जंजाल में फंसी पटना पुलिस बाहर निकल पाएगी. सवाल का जवाब ढूंढना इसलिए भी लाजमी है, क्योंकि समाज में समरसता लाने का जिम्मा पुलिस के कंधों पर भी है. लेकिन जब पुलिस ही जाति के जंजाल में फंसी रहेगी तो समाज में समरसता कैसे बनेगी.