पटना: Dhumavati Story: गुप्त नवरात्रि में देवी धूमावती का भी एक नाम आता है. यह देवी विधवा स्वरूप वाली और बुजुर्ग अवस्था वाली हैं. इनका वाहन कौआ है. माता का स्वरूप ऐसा क्यों है, इसके पीछे एक कथा कही जाती है. 


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ऐसे हुई उत्तपत्ति
जब सती ने पिता के यज्ञ में स्वेच्छा से स्वयं को जला कर भस्म कर दिया तो उनके जलते हुए शरीर से जो धुआँ निकला, उससे धूमावती का जन्म हुआ. इसीलिए वे हमेशा उदास रहती हैं. 


सती का भौतिक सवरूप
धूमावती धुएँ के रूप में सती का भौतिक स्वरूप है. सती का जो कुछ बचा रहा- उदास धुआँ. धूमावती देवी की एक और कथा है. जिसमें वह अपने पति शिव को ही खा जाती हैं. 


एक और कथा
दूसरी कथा के अनुसार एक बार सती शिव के साथ हिमालय में विचरण कर रही थी. तभी उन्हें ज़ोरों की भूख लगी. उन्होने शिव से कहा- 'मुझे भूख लगी है. मेरे लिए भोजन का प्रबंध करें.' शिव ने कहा-'अभी कोई प्रबंध नहीं हो सकता.' 


पति को निगल गईं देवी
तब सती ने कहा- 'ठीक है, मैं तुम्हें ही खा जाती हूँ.' और वे शिव को ही निगल गयीं. शिव, जो इस जगत के सर्जक हैं, परिपालक हैं. फिर शिव ने उनसे अनुरोध किया कि 'मुझे बाहर निकालो', तो उन्होंने उगल कर उन्हें बाहर निकाल दिया. 


शिवजी ने दिया श्राप
निकालने के बाद शिव ने उन्हें शाप दिया कि 'अभी से तुम विधवा रूप में रहोगी.' तभी से वे विधवा हैं-अभिशप्त और परित्यक्त.भूख लगना और पति को निगल जाना सांकेतिक है. 


अतृप्त कामना का प्रतीक
यह इंसान की कामनाओं का प्रतीक है, जो कभी ख़त्म नही होती और इसलिए वह हमेशा असंतुष्ट रहता है. माँ धूमावती उन कामनाओं को खा जाने यानी नष्ट करने की ओर इशारा करती हैं.