अपनी विकलांगता को नहीं बनने दी अपनी कमजोरी! पैरों से लिखकर बना डाली तकदीर
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अपनी विकलांगता को नहीं बनने दी अपनी कमजोरी! पैरों से लिखकर बना डाली तकदीर

हौसलों की पंख से उड़ा, करो दिव्यांग होकर भी सोचा बड़ा करो, ऐसा कैमूर जिले के दोनों हाथों से दिव्यांग पवन कहते है.

अपनी विकलांगता को नहीं बनने दी अपनी कमजोरी! पैरों से लिखकर बना डाली तकदीर

कैमूरः हौसलों की पंख से उड़ा करो दिव्यांग होकर भी सोचा बड़ा करो, ऐसा कैमूर जिले के दोनों हाथों से दिव्यांग पवन कहते है. दरअसल, कैमूर जिले में पवन जन्म से ही दोनों हाथों से विकलांग है. एक हाथ तो है ही नहीं दूसरा है भी तो बहुत छोटा है. जिससे सारे कार्य हो पाना संभव नहीं है. पवन जब छोटा था तो और बच्चों को स्कूल जाते देख उसके मन में भी जिज्ञासा हुई की वह भी स्कूल जाकर पढ़ेगा. 7 साल की उम्र में जब भी स्कूल गया तो देखा कि सारे बच्चे हाथों से कलम पकड़कर कॉपी पर लिख रहे हैं, पवन का हाथ नहीं होने के कारण काफी मायूस हुआ और फिर किसी तरह से उसने पैर से लिखने का हिम्मत जुटाया.

पवन ने 2017 में इंटर किया पास

फिर क्या था पवन ने अपने पैर से ही सुंदर अक्षरों में लिखना शुरू कर दिया और वहीं से पढ़ाई की शुरुआत हो गई. जहां 2015 में द्वितीय श्रेणी से मैट्रिक पास किया, 2017 में इंटर पास किया और अब पवन रामगढ़ के जीबी कॉलेज से बीकॉम का द्वितीय वर्ष का छात्र है. दुर्गावती प्रखंड के सारंगपुर गांव के मुंशी बिंद का पुत्र है. परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, जहां पांच भाई और एक बहन में दूसरे नंबर पर पवन है. पवन ने अभी अपना हौसला नहीं खोया है.

मुख्यमंत्री से मांगी थी मदद

बता दें कि 2 साल पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दुर्गावती प्रखंड क्षेत्र के धनेच्छा आए हुए थे तो मुख्यमंत्री से पवन ने मुलाकात की थी. पवन ने मुख्यमंत्री से कहा था कि उसे कुछ सरकार से मदद मिले की वह आगे बढ़ सके. मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया था कि पढ़ाई करिए सरकार मदद करेगी, लेकिन मदद के इंतजार में 2 से 3 साल बीत गए है. अब तक किसी भी प्रकार की पवन को सरकारी मदद नहीं मिल पाई है.

केवल मिलती है विकलांगता पेंशन

सरकारी मदद के नाम पर ₹400 विकलांगता पेंशन पवन को सिर्फ मिल रही है, लेकिन पवन ने संसाधनों को बाधा नहीं बनने दी. वह कर्ज लेकर मुर्गी फार्म चला रहा है. लेकिन इसमें भी उसे तकदीर साथ नहीं दे रही है. गर्मी के कारण कई मुर्गियां मर गई, लेकिन फिर भी हौसला नहीं खोया और वह आत्मनिर्भर बनने के लिए लगे हुए है. दिव्यांग पवन बताते है कि वह बचपन से ही दोनों हाथों से विकलांग है और बच्चों के पढ़ने की इच्छा को देखकर उसकी भी पढ़ने की इच्छा हुई. हम चाहते हैं कि सरकार हमें मदद करें जिससे कि मुझे भरण-पोषण के लिए अपने ही ब्लॉक में कोई सरकारी नौकरी मिल जाए जिससे कि मैं आत्मनिर्भर बन सकूं मैं जितना पढ़ सकता था उतना पढ़ रहा हूं लेकिन अब सरकारी मदद की जरूरत है.

आत्मनिर्भर बनना चाहते है पवन

वहीं पवन के पिता मुंशी बिंद बताते हैं पवन दोनों हाथों से जन्म से ही विकलांग है. जब तक मैं जिंदा हूं इनका देखरेख कर रहा हूं लेकिन मैं कब तक आखिर इनके देखरेख करने के लिए जिंदा रह पाऊंगा. मैं चाहता हूं कि सरकार मेरे बेटे को अपने ब्लॉक में ही कोई भी सरकारी नौकरी का पद दिला दें. जिससे कि वह आत्मनिर्भर बनकर अपना खर्चा चला सके.

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