Makhana Making: ड्राई फ्रूटस के लड्डू हों या व्रत का फलाहार या फिर नमकीन, इन सब की कल्पना मखाने के बिना नहीं की जा सकती है. अक्सर हम अपनी कई सारी डिशेज में मखाने का प्रयोग करते रहते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा मखाना कहां पैदा होता है?
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पटना: Makhana Making: ड्राई फ्रूटस के लड्डू हों या व्रत का फलाहार या फिर नमकीन, इन सब की कल्पना मखाने के बिना नहीं की जा सकती है. अक्सर हम अपनी कई सारी डिशेज में मखाने का प्रयोग करते रहते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा मखाना कहां पैदा होता है? दरअसल, मखाने की सबसे ज्यादा पैदावार उत्तर- पूर्वी बिहार में होती है. आपको यह जानकर भी हैरत होगी कि देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के 100 में से 90 देशों के लोग उत्तर-पूर्वी बिहार में पैदा होने वाले मखानों को बड़े चाव से खाते है.
मखाने के लिए जाना जाता है पूर्वी बिहार
उत्तर-पूर्वी बिहार को मखाने के लिए ही दुनिया भर में जाना जाता है. उत्तर पूर्वी बिहार के दरभंगा, सहरसा, मधेपुरा, कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, मधुबनी, सुपौल और समस्तीपुर जिले मखाने के लिए ज्यादा जानें जाते हैं. मधुबनी जिले में ही 25 हजार से ज्यादा तालाब हैं, जहां मखाने की खेती होती हैं.
कैसे होता है बाजार में मिलने वाला मखाना तैयार
आप लोग जिस मखाने को बजार में देखते है उसे उस रूप तक पहुंचाने में किसानों की काफी मेहनत लगती है. पहले मखाने का बीज तैयार किया जाता है. जिसे स्थानीय भाषा में गुणी भी कहते है. ये बिल्कुल कमलगट्टा ही है. बीज तैयार करने के बाद उसमें से मखाने को निकालना फाइनल प्रॉसेसिंग है. वहीं अगर कोई अपने यहां मखाने के बीज पैदा करता है. तो वह लागत की तुलना में डबल कमाई कर लेता है. किसान अक्सर मखाने की फसल मार्च और अप्रैल में लगाते है और अगस्त- सितंबर में पैदावार देती है. यदि किसान चाहे तो सितंबर से मार्च तक किसान एक और पैदावार लगा सकता है. हालांकि इस वक्त पैदावार कम होती है.
किन-किन जिलों में होती है मखाने की पैदावार
बता दें कि बिहार सरकार की ओर से भी मखाने की खेती को बढ़ावा दिया जाता है. बिहार सरकार द्वारा मखाना विकास योजना को साल 2019 दिसंबर में लांच किया गया था. इस योजना को बिहार के नौ जिलों में संचालित किया जा रहा है. बिहार के दरभंगा, सहरसा, मधेपुरा, कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, मधुबनी, सुपौल और समस्तीपुर जिलों में मखाने की सबसे ज्यादा पैदावार होती हैं.
2006 से 2021 के बीच पांच गुना बढ़ी पैदावार
एक आकलन के मुताबिक बिहार में मखाना के कुल उत्पादन में 2006 से 2021 के बीच पांच गुना से अधिक की वृद्धि हो चुकी है. बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा कहते हैं कि सरकार द्वारा शुरू की गई 'मखाना विकास योजना' के तहत मखाना के उच्च प्रजाति के बीज को अपनाने पर लागत मूल्य का 75 प्रतिशत (अधिकतम 72,750 रुपये प्रति हेक्टेयर) सहायता अनुदान प्रदान किया जाता है. उच्च प्रजाति का बीज अपनाने से मखाना की उत्पादकता 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से बढ़ कर 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है.
मखाने खाने से मिलते है कई फायदे
मखाने का प्रयोग हम अक्सर ड्राई फ्रूटस के लड्डू हो या व्रत का फलाहार या फिर नमकीन में करते ही है. इससे इन सब चीजों का स्वाद तो बढ़ ही जाता है, साथ ही उनमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, आयरन, कैलोरी जैसी कई चीजे बढ़ जाती है. मखानों में कैल्शियम मैग्नीशियम प्रोटीन भी पाया जाता है. साथ ही साथ मखाने ग्लूटेन फ्री भी होते हैं. इसलिए जिनको ग्लूटेन से एलर्जी होती है. वह भी मखानों का सेवन आराम से कर सकते हैं. मखाने में कोलेस्ट्रॉल और सोडियम की मात्रा काफी कम होती है ,इसलिए यह सेहत को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.