बिहार में इस रीत से मनाया जाएगा जितिया व्रत, जानिए 36 घण्टे चलने वाले इस व्रत की असली कहानी
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बिहार में इस रीत से मनाया जाएगा जितिया व्रत, जानिए 36 घण्टे चलने वाले इस व्रत की असली कहानी

अश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत का बड़ा महात्म्य है. गोबर-मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है. 

 

बिहार में  मनाया जाएगा जितिया व्रत(फाइल फोटो)

Patna: इस वक़्त बिहार में माताएं एक खास व्रत की तैयारी में जुटी हैं. इस व्रत को जितिया, ज्यूतिया और शुद्ध रूप में कहें तो जीवित्पुत्रिका व्रत कहा जाता है. अपनी संतान के लिए रखा जाने वाला यह व्रत कुछ- कुछ अहोई अष्टमी और हलछठ की तरह होता है, लेकिन बिहार में इसके मनाए जाने की रीत अलग ही है. 

ऐसे होती है पूजा
अश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत का बड़ा महात्म्य है. गोबर-मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती हैं.  कुश के जीमूतवाहन व मिट्टी-गोबर से सियारिन व चूल्होरिन की प्रतिमा बनाकर व्रती महिलाएं जिउतिया पूजा करती हैं. 

इस तरह निभाई जा रही है परम्परा
इस व्रत में सरपुतिया की सब्जी का विशेष महत्व है. रात को बने अच्छे पकवान में से पितरों, चील, सियार, गाय और कुत्ता का ग्रास निकाला जाता है.मिथिला में मड़ुआ रोटी और मछली खाने की परंपरा जिउतिया व्रत से एक दिन पहले सप्तमी को मिथिलांचलवासियों में भोजन में मड़ुआ रोटी के साथ मछली भी खाने की परंपरा है. व्रत से एक दिन पहले आश्विन कृष्ण सप्तमी को व्रती महिलाएं भोजन में मड़ुआ की रोटी व नोनी की साग बनाकर खाती हैं. 

36 घण्टे का व्रत, जानिए कब है पारण
28 सितंबर की शाम 06 बजकर 16 मिनट से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि शुरू होगी. यह 29 सितंबर की रात 8 बजकर 29 मिनट तक रहेगी.अष्टमी तिथि के साथ व्रत समाप्त नहीं होगा. व्रत का पारण 30 सितंबर को किया जाएगा. 30 सितंबर को सूर्योदय के बाद दोपहर 12 बजे तक पारण होगा. मान्यता है कि जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण दोपहर 12 बजे तक कर लेना चाहिए. 

ये है वास्तविक कथा
बहुत समय पहले की बात है कि गंधर्वों के एक राजकुमार हुआ करते थे, नाम था जीमूतवाहन. बहुत ही पवित्र आत्मा, दयालु व हमेशा परोपकार में लगे रहने वाले जीमूतवाहन को राजपाठ से बिल्कुल भी लगाव न था. अब एक दिन ऐसे ही वन में भ्रमण करते-करते जीमूतवाहन काफी दूर निकल आया. उसने देखा कि एक वृद्धा काफी विलाप कर रही है. जीमूतवाहन उससे पूछा तो पता चला कि वह एक नागवंशी स्त्री है और पक्षीराज गरुड़ को बलि देने के लिए आज उसके इकलौते पुत्र की बारी है.

जीमूतवाहन ने उसे धीरज बंधाया और कहा कि उसके पुत्र की जगह पर वह स्वयं पक्षीराज का भोजन बनेगा. अब जिस वस्त्र में उस स्त्री का बालक लिपटा था उसमें जीमूतवाहन लिपट गया.  जैसे ही समय हुआ पक्षीराज गरुड़ उसे ले उड़ा. जब उड़ते उड़ते काफी दूर आ चुके तो पक्षीराज को हैरानी हुई कि आज मेरा यह भोजन चीख चिल्ला क्यों नहीं रहा है. अपने ठिकाने पर पंहुचने के पश्चात उसने देखा तो उसमें बच्चे के स्थान पर जीमूतवाहन था. जीमूतवाहन ने सारा किस्सा कह सुनाया. पक्षीराज जीमूतवाहन की दयालुता व साहस से प्रसन्न हुए व उसे जीवन दान देते हुए भविष्य में कभी बलि न लेने का वचन दिया. कहते हैं कि इसी समय ब्रह्म वाणी हुई, जिसमें जीमूतवाहन को देव का दर्जा दिया गया. 

मान्यता है कि यह सारा वाकया आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था इसी कारण तभी से इस दिन को जिउतिया अथवा जितिया व्रत के रूप में मनाया जाता है ताकि संतानें सुरक्षित रह सकें. इसके अलावा एक चील और सियारिन की भी कथा है जो कि इस व्रत को किये जाने के दौरान सुनाई जाती है.

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